
नई दिल्ली। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Finance Minister Nirmala Sitharaman) ने मंगलवार को लोकसभा में बहुप्रतीक्षित ‘सबका बीमा सबकी रक्षा विधेयक, 2025 (Insurance for all, protection for all bill 2025) पेश किया। वित्त मंत्री ने यह विधेयक पेश करते हुए बीमा क्षेत्र में विदेशी निवेश और घरेलू कंपनियों की कार्यक्षमता बढ़ाने का हवाला दिया। यह विधेयक में तीन प्रमुख कानूनों- बीमा अधिनियम (1938), जीवन बीमा निगम अधिनियम (1956) और बीमा नियामक व विकास प्राधिकरण अधिनियम (1999) में व्यापक संशोधन का प्रस्ताव है।
विधेयक पेश करते हुए केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा, “आम लोगों का बीमा हमेशा से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्राथमिकता रही है और केंद्र सरकार ने कोविड महामारी के दौरान भी समाज के हाशिए पर रहने वाले वर्गों को बीमा प्रदान किया है।” सरकार के इस विधेयक के अनुसार बीमा कंपनियों में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) की सीमा को 74% से बढ़ाकर 100% करने का प्रस्ताव है। इस कदम से भारतीय बीमा बाजार में विदेशी पूंजी और तकनीक का प्रवाह बढ़ने की उम्मीद है।
अब तक भारतीय बीमा कंपनियों में विदेशी निवेश की सीमा 74% थी। इस विधेयक के पारित होने के बाद विदेशी कंपनियां 100% स्वामित्व के साथ भारत में काम कर सकेंगी। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे न केवल विदेशी मुद्रा का प्रवाह बढ़ेगा, बल्कि ग्लोबल बीमा कंपनियां अपनी आधुनिक तकनीक और नए उत्पाद (Products) भारतीय ग्राहकों तक पहुंचा सकेंगी।
विधेयक में एलआईसी अधिनियम, 1956 में संशोधन कर सरकारी बीमा कंपनी के बोर्ड को अधिक शक्तियां देने का प्रस्ताव है। अब एलआईसी को नए जोनल ऑफिस खोलने के लिए सरकार की पूर्व अनुमति की जरूरत नहीं होगी। इससे सरकारी बीमा कंपनी बाजार में निजी कंपनियों का मुकाबला तेजी से कर सकेगी।
नए बिल के कानून में बदलने के बाद बीमा एजेंट्स और इंटरमीडियरीज के लिए ‘वन-टाइम रजिस्ट्रेशन’ की व्यवस्था लागू की जाएगी। इसका मतलब है कि उन्हें बार-बार लाइसेंस रिन्यू कराने के झंझट से मुक्ति मिलेगी, जो ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ की दिशा में उठाया गया एक एक बड़ा कदम है।
विधेयक का मुख्य उद्देश्य पॉलिसीधारकों के हितों की रक्षा करना है। इसमें बीमा कंपनियों द्वारा नियमों का उल्लंघन करने पर भारी जुर्माने का प्रावधान किया गया है। साथ ही, दावों (Claims) के निपटान को तेज और पारदर्शी बनाने के लिए बीमा नियामक आईआरडीएआई को और अधिक मजबूत करने का प्रस्ताव है। विदेशी री-इंश्योरेंस कंपनियों के लिए ‘नेट ओन्ड फंड’ की अनिवार्यता को 5,000 करोड़ रुपये से घटाकर 1,000 करोड़ रुपये करने का प्रस्ताव है। इससे भारत में री-इंश्योरेंस का बाजार बड़ा होगा और जोखिम प्रबंधन बेहतर होगा।
सरकार का कहना है कि भारत में बीमा की पहुंच अभी भी वैश्विक औसत से कम है। 2047 तक हर भारतीय को बीमा सुरक्षा देने के लिए भारी निवेश की जरूरत है, जो 100% एफडीआई से संभव होगा। हालांकि, कुछ विपक्षी सांसदों और कर्मचारी यूनियनों ने LIC में सरकारी नियंत्रण कम होने और विदेशी कंपनियों के एकाधिकार को लेकर चिंता जाहिर की है। विधेयक में यह सुनिश्चित करने का प्रावधान भी है कि भले ही 100% एफडीआई हो, लेकिन कंपनी के प्रमुख पदों (जैसे सीईओ या एमडी) पर भारतीय नागरिक की नियुक्ति अनिवार्य हो सकती है, ताकि घरेलू हितों की रक्षा की जा सके।
बीमा क्षेत्र में 100 एफडीआई की खबरों के बाद शेयर बाजार में लिस्टेड बीमा कंपनियों (जैसे एलआईसी, एसबीआई, एचडीएफसी लाइफ) के शेयरों में हलचल देखने को मिल सकती है। विश्लेषकों के अनुसार, यह सुधार अगले एक दशक में भारतीय बीमा सेक्टर की तस्वीर पूरी तरह बदल सकता है।
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