
नई दिल्ली: क्रूड यानी कच्चे तेल (Crude Oil) का खेल बहुत पुराना है. ऐसे ही नहीं, इसे तरल सोना कहा जाता है और अमेरिका (America) ने इसके लिए दर्जनभर देशों को बर्बाद कर दिया. अब तेल के बहाने वह भारत (India) को निशाना बना रहा है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने पिछले दिनों भारत पर यह कहते हुए 50 फीसदी टैरिफ (Tariff) लगा दिया कि वह रूस (Russia) से तेल खरीदकर उससे मुनाफा कमा रहा है और रूस इन पैसों से यूक्रेन में तबाही मचा रहा है. भारत सरकार ने वैसे तो इसका विरोध किया, लेकिन दबे स्वर में रूस से खरीदारी कम करने की भी बात कही. भारत में ईंधन की बढ़ती खपत को देखें तो यह काम आसान नहीं होगा और अगर रूस से तेल खरीद कम की जाती है तो अर्थव्यवस्था पर इसका गंभीर असर पड़ सकता है.
एक रिसर्च में खुलासा किया है कि ग्लोबल मार्केट में चल रही उथल-पुथल के बीच भारत के लिए क्रूड की मुश्किल का रास्ता निकालना आसान नहीं होगा. रिसर्च में बताया गया है कि भारत की ईंधन खपत लगातार बढ़ती जा रही है, जबकि घरेलू उत्पादन में गिरावट आ रही है. जाहिर है कि उसे ज्यादातर जरूरतें आयात के जरिये हल करनी होंगी और ग्लोबल मार्केट में फिलहाल जो हालात पैदा हो रहे हैं, उसमें भारत के लिए अपने हित साधना उतना भी आसान नहीं होने वाला है, वह भी अमेरिका के मौजूदा रुख के बाद.
रिपोर्ट को देखें तो पता चलता है कि भारत की तेल एवं गैस की खपत साल 2024 में 56.4 लाख बैरल प्रतिदिन थी, जो 2030 तक बढ़कर 66.60 लाख प्रतिदिन हो जाएगी. यह पूरे ग्लोबल मार्केट में आने वाली बढ़ोतरी का करीब 33 फीसदी हिस्सा है. हालांकि, हालात तब और भयावह दिखते हैं जबकि घरेलू उत्पादन लगातार घटता जा रहा है. साल 2023 में घरेलू उत्पादन जहां 7 लाख बैरल प्रतिदिन का था, वहीं 2030 के आखिर तक यह आंकड़ा गिरकर 5.40 लाख बैरल प्रतिदिन रह जाएगा.
भारत क्रूड प्रोडक्शन वित्तवर्ष 2020 में जहां 3.22 करोड़ टन था, वहीं 2025 में यह गिरकर महज 2.87 करोड़ टन रहा है. इस दौरान आयात बढ़कर 2.43 करोड़ टन पहुंच गया, जो देश की कुल जरूरत का 85 फीसदी है. सबसे बड़ी दुविधा हमारे सप्लायर्स को लेकर है, क्योंकि कम देशों से ही ज्यादातर तेल खरीदे जा रहे हैं. रूस, इराक, सऊदी अरब, यूएई, अमेरिका और कुवैत से भारत अपने कुल आयात का 86 फीसदी तेल खरीद रहा है, जो वित्तवर्ष 2020 में महज 65 फीसदी था. तब रूस से तेल खरीद महज 2 फीसदी थी, जो आज 35 फीसदी पहुंच गई है. इसकी वजह रूस से मिलने वाला बड़ा डिस्काउंट है.
भारत ने पिछले 5 साल में सिर्फ रूस से ही आयात बढ़ाया है, जबकि अन्य सभी देशों से तेल खरीदारी कम कर दी है. इराक से वित्तवर्ष 2020 में जहां 22 फीसदी क्रूड खरीदा जाता था, वहीं 2025 में यह घटकर 18 फीसदी रह गया. सऊदी अरब से भी तेल खरीद 5 साल में 20 फीसदी से घटकर 14 फीसदी पर आ गई. यूएई से 11 की जगह 10 फीसदी तो कुवैत और अमेरिका से 5 और 3 फीसदी पर बरकरार रखा है.
भारत ने रूस से सस्ता क्रूड खरीदा है, जिसका फायदा देश के तेल निर्यात को भी मिला है. पिछले वित्तवर्ष में देश का तेल निर्यात 3.4 फीसदी बढ़कर 6.51 करोड़ टन पहुंच गया. हालांकि, ग्लोबल मार्केट में कीमतें घटने की वजह से इसकी वैल्यू 7 फीसदी कम रही. भारत ने यूरोप खासकर नीदरलैंड में अपना निर्यात दोगुना बढ़ाकर 21 फीसदी कर दिया है. भारत ने क्रूड ही नहीं, पेंट व अन्य रसायनों में इस्तेमाल होने वाले नेफ्था का आयात भी रूस से बढ़ाकर आधा कर दिया, जो 2024 में 15 फीसदी था. रूस इस पर प्रति टन के हिसाब से 15 डॉलर का डिस्काउंट देता है.
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