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प्राधिकरण की गुगली पर क्लीन बोल्ड हुआ नगर निगम… 115 करोड़ की लेनदारी के बदले अब उल्टा 39 करोड़ का निकला देनदार

August 07, 2025

  • योजना में शामिल पूरी जमीन पर ठोक डाला सम्पत्ति कर
  • नगर तथा ग्राम निवेश से मंजूर अभिन्यास को भी बनाया आधार
  • 50 फीसदी लौटाई जमीनें भी प्राधिकरण के खाते में डाल दी
  • धारा ५६ में आवंटित भूखंडों पर भी कर डाला करारोपण
  • वेतन बांटने के लिए भी कई बार हासिल किए एडवांस चैक

इंदौर, राजेश ज्वेल
सालों से नगर निगम (Municipal Corporation) और प्राधिकरण (IDA) के बीच सम्पत्ति कर (property taxes) का विवाद चल रहा था और कई मर्तबा दिन-दिनभर की बैठकें तक हुईं, मगर कोई निराकरण नहीं निकल सका। मगर अपर मुख्य सचिव नगरीय प्रशासन और विकास विभाग ने जब अपने सामने बैठाकर हिसाब-किताब करवाया तो प्राधिकरण की गुगली (googly) पर नगर निगम क्लिन बोल्ड हो गया। 115 करोड़ रुपए की लेनदारी निकालने वाले नगर निगम पर अब प्राधिकरण को 37 करोड़ रुपए उल्टे देना निकल आए और प्राधिकरण ने इस राशि को आगामी वर्षों के सम्पत्ति कर में समायोजित करने का पत्र भी निगमायुक्त को भिजवा दिया। अपर मुख्य सचिव ने दो टूक कहा कि म्यूजिकल चेयर रेस खेलना बंद करो और जो वास्तविक कर है उसकी राशि वसूल करो। उल्टे बांस बरेली होने पर कलेक्टर ने भी निगमायुक्त की चुटकी ले ली कि उनके अफसरों ने सही आंकड़ेबाजी नहीं की और क्लिनबोल्ड हो गए।


नगर निगम को जब भी वित्तीय संकट आता है और यहां तक कि कई बार वेतन बांटने के भी लाले पड़ जाते हैं, तब वह प्राधिकरण के पास राशि मांगने पहुंच जाता है और प्राधिकरण द्वारा दिए गए चेक की बदौलत ही कई बार निगम में वेतन बंट सका है। निगम की माली हालत लगातार खस्ता ही रही है और अभी खुद महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने जो अपनी 3 साल के कार्यकाल की उपलब्धियां गिनाईं उसमें उन्होंने स्वीकार भी किया कि 450 करोड़ रुपए की राशि वर्तमान में ठेकेदारों की देना शेष है। दूसरी तरफ नगर निगम कई सरकारी विभागों से सम्पत्ति और जल कर की राशि वसूल करने में असफल रहा है। उसका सबसे अधिक जोर प्राधिकरण पर ही चलता रहा है और वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देश पर प्राधिकरण हर बार मदद करता रहा। मगर प्राधिकरण में पदस्थ राजस्व अधिकारियों ने मनमाने तरीके से सम्पत्ति कर का निर्धारण कर डाला। यहां तक डि टीपीएस योजनाओं में प्राधिकरण ने जितनी जमीन पर योजना घोषित की उस पूरी जमीन पर करारोपण कर डाला। जबकि इसमें से 50 फीसदी जमीन उसके मालिक को प्राधिकरण द्वारा लौटा दी जाती है और शेष बची 50 फीसदी जमीन में से उसके हिस्से भूखंडीय विकास के लिए सिर्फ 20 प्रतिशत जमीन ही मिलती है। शेष 30 फीसदी जमीन सडक़ों के निर्माण, ग्रीन बेल्ट, गार्डन सहित सार्वजनिक उपयोग में इस्तेमाल होती है। इतना ही नहीं, पुरानी योजनाओं में प्राधिकरण ने धारा छप्पन के तहत अनुबंध कर जमीन मालिकों को विकसित भूखंड दिए हैं, जो 20 फीसदी से लेकर अधिकतम 30 फीसदी तक रहे हैं। मगर नगर निगम ने प्राधिकरण द्वारा इन योजनाओं के जो अभिन्यास नगर तथा ग्राम निवेश से मंजूर करवाए उसके आधार पर शत-प्रतिशत भूखंडीय विकास पर सम्पत्ति कर ठोंक डाला, जबकि अनुबंध के तहत जमीन मालिक को दिए गए भूखंड पर सम्पत्ति कर चुकाने की जिम्मेदारी उसकी रहेगी। इस तरह की कई विसंगतियां नगर निगम ने की। अभी जब अपर मुख्य सचिव संजय दुबे निगम और प्राधिकरण की समीक्षा के लिए इंदौर आए तो उनके समक्ष भी जब यह मामला आया तो उन्होंने दो टूक कहा कि मेरे सामने बैठकर हिसाब-किताब करो। लिहाजा निगम की ओर से अपर आयुक्त राजस्व नरेन्द्रनाथ पांडे ने जानकारी देना शुरू की। मगर दूसरी तरफ से प्राधिकरण सम्पदा अधिकारी मनीष श्रीवास्तव ने मोर्चा संभाला और योजनावार लेखा-जोखा प्रस्तुत करते हुए बताया कि वास्तविक सम्पत्ति कर इससे कई गुना कम बनता है। इतना ही नहीं, अपर मुख्य सचिव ने यह भी कहा कि म्युजिकल चेयर रेस खेलना बंद करो और जो वास्तविक राशि निकल रही है उसे ही लो। प्राधिकरण ने योजना वार वस्तु स्थिति और तथ्य रखे, जिसे निगम आयुक्त शिवम वर्मा को भी स्वीकारना पड़े और निगम ने लगभग 115 करोड़ रुपए प्राधिकरण पर लेना बताए थे तो जब हिसाब-किताब पूरा हुआ तो 37 करोड़ रुपए उल्टा प्राधिकरण के लेना निकल आए। इस पर कलेक्टर आशीष सिंह ने भी चुटकी लेते हुए कहा कि प्राधिकरण की गुगली पर नगर निगम को क्लिन बोल्ड हो गया।

योजनावार इस तरह हिसाब-किताब हुआ सम्पत्ति कर का
नगर निगम ने जो 115 करोड़ रुपए का सम्पत्तिकर बकाया निकाला उशमें योजना 151 और 169 बी में 91.19 करोड़ बताए, तो योजना 166 में 19.74 करोड़, 31 नवलखा कॉम्प्लेक्स में 5.40 लाख, योजना 59 में 5.14 लाख, योजना 134 में 1.41 करोड़ और योजना 97 पार्ट-4 में 2.19 करोड़ की बकाया राशि प्राधिकरण से मांगी गई, जिसके जवाब में प्राधिकरण ने 49.19 करोड़ का ही सम्पत्ति कर असल में बनना बताया। इसके अलावा 45 करोड़ रुपए की राशि शहर की दो मुख्य लिंक रोड के लिए निगम को दी गई, तो प्राधिकरण ने निगम के अलग-अलग मांग पत्रों के विरुद्ध 41.11 करोड़ का भुगतान भी किया। पूरा हिसाब-किताब करने के बाद प्राधिकरण ने 36.92 करोड़ की राशि नगर निगम में अतिरिक्त जमा बताई और सीईओ आरपी अहिरवार ने निगमायुक्त को अब पत्र लिखकर इस अतिरिक्त जमा लगभग 37 करोड़ रुपए को वित्त वर्ष 2025-26 में समायोजित करने को कहा है।

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