
इंदौर। रिंग रोड की योजना 97 में प्राधिकरण ने कुल 562 हेक्टेयर यानी लगभग डेढ़ हजार एकड़ जमीन शामिल की थी, जिसमें से 200 हेक्टेयर अलग-अलग कारणों से छोड़ दी गई। अभी अग्रिबाण ने ज्योति गृह निर्माण का जो मामला उजागर किया उससे भोपाल तक हल्ला मच गया और जांच एजेंसियों के साथ-साथ सीएमओ ने भी रिपोर्ट बुलवाई, तो प्राधिकरण दफ्तर में इससे जुड़ी फाइलों की पड़ताल शुरू हुई और आज संभागायुक्त व प्राधिकरण अध्यक्ष दीपक सिंह ने भी सारे रिकॉर्डों के साथ अधिनस्थों को तलब किया है।
इसके साथ ही सहकारिता विभाग से भी ज्योति गृह निर्माण के बारे में जानकारी बुलवाई है। इस मामले में चौंकाने वाली बात यह भी सामने आई कि सुप्रीम कोर्ट आदेश के बाद प्राधिकरण ने 210 एकड़ जमीन हासिल होना बताई। वहीं दूसरी तरफ शर्तों का पालन ना करने वाली जमीनों का कब्ज लेने के बजाय उन्हें मुक्त रखा गया और संचालक नगर तथा ग्राम निवेश ने ज्योति गृह निर्माण संस्था की जमीन छोडऩे और निजी विकास की अनुमति भी दे डाली। हालांकि संस्था के कर्ताधर्ताओं ने इसका भी पालन नहीं किया।
सुप्रीम कोर्ट ने ना सिर्फ योजना 97 पार्ट-2 और 4 की जमीनों का मालिकाना हक प्राधिकरण का बताया, बल्कि इस मामले में दायर पुनरीक्षण याचिका तक खारिज कर डाली। सुप्रीम कोर्ट ने दो साल पहले बुरहानी गृह निर्माण संस्था के मामले में उक्त फैसला सुनाया और इस बेशकीमती जमीन को लेकर भी जो डील की जा रही थी उसका भी भंडाफोड़ अग्रिबाण ने जून-2023 में कर दिया था और प्रधानमंत्री कार्यालय तक से इसकी रिपोर्ट मांगी गई थी, क्योंकि धर्मगुरु सैय्यदना साहब तक इसकी शिकायत पहुंची और उन्होंने इस बारे में प्रधानमंत्री से चर्चा की थी।
दूसरी तरफ प्राधिकरण सुप्रीम कोर्ट आदेश मिलने के बावजूद जमीनों का कब्जा लेने में फिसड्डी साबित हुआ। जबकि दावा किया गया था कि जो एनओसी भी गलत जारी हुई है उन्हें भी निरस्त किया जाएगा। दूसरी तरफ कई जमीनों को छुड़वाने के लिए रसूखदारों ने प्रयास शुरू किए। मगर प्राधिकरण में काबिज अफसरों के बोर्ड ने सर्वे के आधार पर लगभग 210 एकड़ जमीन सुनिश्चित की और उसी आधार पर नगर तथा ग्राम निवेश से अभिन्यास भी मंजूर करवाया। मगर प्राधिकरण ज्योति गृह निर्माण सहित अन्य उन जमीनों की जांच से चूक गया जिनमें निजी विकास की अनुमति का भी उल्लंघन किया गया। उसी में ज्योति गृह निर्माण संस्था की 10 एकड़ जमीन का भी मामला शामिल है।
जबकि इस जमीन का अवॉर्ड भी पारित हो चुका है और कृषि भूमि के रूप में जहां कई टुकड़े कर संस्था ने बेच डाले, तो एक जॉडियक शॉपिंग मॉल भी बनना शुरू हुआ, जो अभिन्यास निरस्ती के चलते अधूरा पड़ा है। इस मामले में यह तथ्य भी उजागर हुआ कि संस्था की ओर से प्राधिकरण के समक्ष आपत्तियों की सुनवाई के वक्त जमीन छोडऩे का आवेदन लगाया गया। मगर प्राधिकरण ने संकल्प क्रमांक 185, दिनांक 14.09.1985 के जरिए यह निर्णय लिया कि संस्था का आवेदन निर्धारित अवधि में प्रस्तुत नहीं हुआ है।
लिहाजा उस पर विचार किया जाना संभव नहीं है, जिसके बाद संस्था ने संचालक नगर तथा ग्राम निवेश के समक्ष धारा 51 में अपील की, जिस पर संचालक ने निर्देश दिए कि शीतल नगर गृह निर्माण संस्था को जिन आधारों पर निजी विकास की अनुमति दी गई उसी आधार पर ज्योति गृह निर्माण को भी निजी विकास की छूट दी जाए, जिसके चलते ज्योति गृह निर्माण की जमीन तत्समय छूट गई मगर बाद में शर्तों का उल्लंघन करने पर प्राधिकरण ने जमीन का कब्जा हासिल नहीं किया और अभी जब अग्रिबाण ने इस पूरे घोटाले का खुलासा किया तो प्राधिकरण दफ्तर से लेकर भोपाल तक हल्ला मच गया। संभागायुक्त और प्राधिकरण अध्यक्ष दीपक सिंह का कहना है कि उन्होंने इस मामले से जुड़ी सारी फाइलें बुलवाई है और इसकी पूरी जांच की जाएगी और कोई दोषी पाया गया तो कार्रवाई भी करेंगे। वहीं प्राधिकरण सीईओ आरपी अहिरवार का भी कहना है कि इस मामले में सभी दस्तावेजों का गंभीरता से परीक्षण किया जा रहा है और सहकारिता विभाग से भी जानकारी ली जा रही है।
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