
नई दिल्ली। सरकार (Government) ने संसद (Parliament) में कहा है कि जजों की भारी कमी (shortage of judges) की वजह से ऊपरी अदालतों में लंबित मामलों (cases pending in courts) की संख्या चिंता का विषय है लेकिन उनकी नियुक्ति के लिए जब तक कॉलेजियम प्रणाली (collegium system) की जगह नई व्यवस्था (new order) नहीं लागू हो जाती, तब तक इस मुद्दे का समाधान नहीं होगा।
केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू (Law Minister Kiren Rijiju) ने गुरुवार को राज्यसभा में कहा कि जब तक जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया में बदलाव नहीं होता, उच्च न्यायिक रिक्तियों का मुद्दा उठता रहेगा। देश भर में लंबित मामलों की बढ़ती संख्या के लिए न्यायिक रिक्तियों को जिम्मेदार ठहराते हुए, केंद्रीय कानून मंत्री ने कहा कि सरकार के पास न्यायिक रिक्तियों को भरने की सीमित शक्ति है, हालांकि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों से यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया है कि वे गुणवत्तापूर्ण जजों के नामों की सिफारिश करें।
उच्च न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया को लेकर केंद्र सरकार और न्यायपालिका के बीच चल रहे मतभेद के बीच केंद्रीय कानून मंत्री के ये बयान आए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कॉलेजियम प्रणाली के खिलाफ सरकारी अधिकारियों द्वारा की गई टिप्पणियों पर नाराजगी व्यक्त की है। कोर्ट ने कहा था सरकार को नया कानून बनाने से कोई नहीं रोक सकता लेकिन जब तक नियुक्तियों का मौजूदा कानून है उसका पालन होना चाहिए।
जजों की रिक्तियों के प्रस्ताव नहीं मिले:
कानून मंत्री ने कहा कि उन्होंने हाल में ही 20 जजों के नाम सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को वापस भेजे हैं। 9 दिसंबर 2022 तक हाईकोर्ट के जजों की अधिकृत संख्या 1108 के एवज में 777 जज कार्य कर रहे हैं जिससे 331(30 फीसदी) की रिक्तियां बनी हुई हैं। इन 331 रिक्तियों के नाम पर हाईकोर्ट से 147 प्रस्ताव प्राप्त हुए हैं। शेष 184 रिक्तियों के बारे में सरकार को कोई प्रस्ताव नहीं मिला है। उन्होंने कहा कि 9 दिसंबर तक सरकार ने हाईकोर्ट में 165 जजों की नियुक्तियां की हैं जो एक रिकार्ड है।
फालतू के मुकदमे न सुने सुप्रीम कोर्ट :
कानून मंत्री ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को उन्हीं केसों को सुनना चाहिए जो प्रासंगिक हों तथा संविधान कोर्ट के लिए विचार योग्य हों। यदि सुप्रीम कोर्ट जमानत याचिकाएं और अन्य फालतू पीआईएल सुनना शुरु करेगा तो निश्चित रूप से माननीय अदालत पर यह अतिरिक्त बोझ डालेगा।
कानून मंत्री ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में 70,000 केस लंबित हैं। वहीं निचली अदालतों में 4.5 करोड केस लंबित हैं। हमें न्यायपालिका से यह पूछना चाहिए कि वह यह सुनिश्चित करे कि सभी योग्य लोगों को न्याय मिले और ऐसे लोग जो प्रक्रिया को बाधित कर रहे हैं उन पर भी ध्यान दिया जाए।
केन्द्रीय विधि एवं न्याय राज्य मंत्री एस पी सिंह बघेल ने एक सवाल के जवाब में कहा कि उच्चतम न्यायालय में सर्दियों तथा गर्मियों में अवकाश का मामला न्यायपालिका के दायरे में आता है और सरकार इसे समाप्त करने के बारे में अपनी ओर से नर्णिय नहीं ले सकती। हालांकि उन्होंने कहा कि इस बारे में मुख्य न्यायाधीश के साथ सरकार को बात करने में कोई हर्ज नहीं है।
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