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लैंड पूलिंग में घोषित प्राधिकरण की 7 योजनाओं में शामिल 3 हजार एकड़ जमीन के राजस्व रिकॉर्ड संशोधन और नामांतरण प्रक्रिया उलझी पड़ी

September 19, 2025

  • 50 फीसदी जमीन देने के अधिकार पत्र ही सौंपे, मगर मालिकाना हक नहीं मिल सका, अभिन्यास मंजूरी सहित अन्य अनुमतियां नहीं मिल पा रही हैं जमीन मालिकों को
  • प्रमुख सचिव राजस्व दो साल पहले जारी कर चुके हैं आदेश
  • तहसीलदारों की समस्या ये है कि रिकॉर्ड में अमल कैसे करें
  • तीन हजार से ज्यादा किसान और जमीन मालिक हो रहे हैं परेशान
  • नवागत सीईओ ने कल सम्पदा के साथ भू-अर्जन शाखा की प्रक्रिया भी समझी
  • प्राधिकरण के पास एमपीआईडीसी की तरह सिंगल विंडो अधिकार भी नहीं

इंदौर। प्राधिकरण (IDA) की 7 टीपीएस योजनाओं (7 TPS schemes) में शामिल तीन हजार एकड़ (3,000 acres) जमीन (land) के राजस्व रिकॉर्ड (revenue record) की समस्या बीते 3 वर्षों से जारी है। लगभग3 हजार जमीन मालिकों को प्राधिकरण लैंड पूलिंग प्रावधान के तहत 50 फीसदी जमीन के अधिकार-पत्र सौंप चुका है। मगर प्राधिकरण के साथ-साथ इन जमीन मालिकों को अभी तक मालिकाना हक इसलिए नहीं मिल पा रहा है क्योंकि राजस्व रिकॉर्ड में संशोधन के साथ नामांतरण की प्रक्रिया उलझी पड़ी है। तहसीलदारों को यह समझ नहीं आ रहा कि राजस्व रिकॉर्ड के कॉलम 5 में किस तरह से प्रविष्टि करें। कल नवागत सीईओ द्वारा ली बैठक में भी यह मामला उठा।


प्राधिकरण की टीपीएस -1, 3, 4, 5, 8, 9 और 10 में 1176 हेक्टेयर यानी लगभग 3 हजार एकड़ जमीन शामिल है, जिसमें 45 किलोमीटर लम्बाई की मास्टर प्लान की सडक़ें भी निर्मित की जा रही है और इन सभी सातों योजनाओं को विकसित करने पर प्राधिकरण 3300 करोड़ रुपए से अधिक की राशि खर्च कर रहा है। चूंकि लैंड पूलिंग एक्ट के तहत इन योजनाओं को घोषित किया गया है, जिसमें नियम के मुताबिक 50 फीसदी जमीन वापस किसान या उसके मालिक को सौंप दी जाती है। हालांकि अभी इंदौर-उज्जैन सहित प्रदेश के की कई जिलों में लैंड पूलिंग एक्ट के विरोध में किसानों द्वारा प्रदर्शन भी किए जा रहे हैं। प्राधिकरण की इन सातों योजनाओं में लगभग 3 हजार से अधिक किसान व जमीन मालिक शामिल हैं। 2 साल पहले तत्कालीन राजस्व सचिव निकुंज श्रीवास्तव ने तीन पेज का एक आदेश भी सभी कलेक्टरों के लिए जारी किया था, जिसमें धारा 50 के तहत घोषित की गई योजनाओं में मध्यप्रदेश भू-राजस्व संहिता के तहत कार्रवाई किए जाने के निर्देश दिए। वहीं तत्कालीन कलेक्टर ने भी प्राधिकरण की समस्या हल करने के लिए कॉलम 12 में नाम दर्ज करने का रास्ता निकाला, मगर उससे भी बात नहीं बन सकी, क्योंकि जब तक कॉलम 5 में मूल भूमिस्वामी के रूप में प्राधिकरण का नाम दर्ज नहीं होता तब तक नामांतरण सहित अन्य प्रक्रिया तहसीलदार पूरी नहीं कर पाता है। यही कारण है कि जमीन मालिकों को अधिकार-पत्र तो सौंप दिए, मगर राजस्व रिकॉर्ड में संशोधन के साथ उनके नामांतरण की प्रक्रिया उलझी पड़ी है, जिसके चलते अभिन्यास मंजूरी, डायवर्शन से लेकर अन्य काम भी नहीं हो पा रहे हैं। कल प्राधिकरण के नवागत सीईओ डॉ. परीक्षित झाड़े ने सम्पदा शाखा के साथ-साथ भू-अर्जन शाखा की समीक्षा भी की, जिसमें राजस्व रिकॉर्ड संशोधन और नामांतरण की उक्त समस्या भी सामने आई, जिसके निराकरण के निर्देश दिए गए। दरअसल, इस संबंध में भू-प्रबंधन मुख्यालय को पोर्टल में भी आवश्यक संशोधन करना पड़ेंगे, ताकि सिस्टम उसे स्वीकार कर सके। अभी तो तहसीलदार रिकॉर्ड में अमल नहीं कर पा रहे हैं।

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