
कॉटन पर मंडी टैक्स का मामला…
सफेद सोना पर लग रहा 1.20 रुपए मंडी टैक्स, इसमें 20 पैसा बांग्लादेशी शरणार्थी टैक्स भी
इंदौर । देश (India) में कपास (Cotton) का उत्पादन बढ़ाने और कपड़ा उद्योग (textile industry) को मजबूती प्रदान करने के लिए केंद्र सरकार (Central government) ने बजट में 5 साल का मिशन तय किया है। मप्र के मुख्यमंत्री (CM) डॉ. मोहन यादव (Dr. Mohan Yadav) भी ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट को लेकर निवेशकों के समक्ष अपने प्रजेंटेशन में कपास और कपड़ा उद्योगों को बढ़ावा देने की बात कह रहे हैं। लेकिन विडंबना यह है कि खुद मप्र सरकार ही कपास और कपड़ा उद्योग के लिए नकरात्मक माहौल बना रही है। वर्तमान में मप्र में कपास पर एक रुपए मंडी टैक्स के साथ 20 पैसे बांग्लादेशी शरणार्थी टैक्स भी लगाया जा रहा है। इस प्रकार मप्र में कपास पर मंडी टैक्स 1.20 रुपए प्रति सैकड़ा है, जो देश के अन्य कपास उत्पादक राज्यों के मुकाबले सबसे ज्यादा है।
कपास कारोबारियों के अनुसार महाराष्ट्र में मात्र 30 से 50 पैसा और गुजरात में 15 से 25 पैसा मंडी टैक्स लगता है। मंडी टैक्स में प्रदेश सरकार 70 पैसे की छूट देती रही है, लेकिन इस छूट की समयसीमा 30 जून 2024 को समाप्त हो गई। 1 जुलाई 2024 से कपास पर 1.20 पैसा ही मंडी टैक्स लग रहा है। इस टैक्स में 20 पैसा बांग्लादेशी शरणार्थी टैक्स भी लगाया जा रहा है। 8 माह बीत जाने के बाद भी प्रदेश सरकार ने मंडी टैक्स में छूट को जारी रखने का नोटिफिकेशन जारी नहीं किया। इस मंडी टैक्स के चलते मध्यप्रदेश में जिनिंग कारखाने तेजी से बंद हो रहे हैं। आलम ये है कि पिछले 10 साल में 40 फीसदी से ज्यादा कारखानों पर ताला लग चुका है। वहीं जो कारखाने संचालित हो रहे हैं उनकी स्थिति भी कमजोर हैं और वे भी बंद होने के कगार पर हैं। वैसे तो मंडी टैक्स का भुगतान व्यापारियों को करना होता है, लेकिन व्यापारी इस मंडी टैक्स की राशि को काटकर किसानों को भुगतान करते हैं, जिससे अप्रत्यक्ष रूप से मंडी टैक्स का बोझ किसानों पर आ रहा है।
कर दी थी हड़ताल
मध्यांचल कॉटन एसोसिएशन के अनुसार प्रदेश के व्यापारियों ने साल 2023 में मंडी टैक्स कम करवाने के लिए अनिश्चितकालीन हड़ताल की थी। हड़ताल को समाप्त करवाने के लिए उस समय के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने मंडी टैक्स की दर 50 पैसे करने का आश्वासन दिया था। 5 अगस्त 2023 को मंडी टैक्स की दर 50 पैसे 31 मार्च 24 तक कर दी गई थी। व्यापारियों के वापस मिलने पर मुख्यमंत्री ने आश्वासन दिया था कि 1 अप्रैल 2024 से हम इस दर को 5 वर्ष तक बढ़ा देंगे। फिर मुख्यमंत्री मोहन यादव ने भी 50 पैसे दर 30 जून 2024 तक की और कहा कि 1 जुलाई 2024 से हम इस दर को 5 वर्ष के लिए बढ़ा देंगे, लेकिन 1 जुलाई 2024 से मंडी टैक्स 50 पैसे करने की अवधि को बढ़ाया नहीं गया।
कभी 200 फैक्ट्रियां थीं…
लगभग 20 साल पहले मप्र में 200 से ज्यादा जिनिंग फैक्ट्रियां थीं, जिनमें से 150 से अधिक फैक्ट्रियां मालवा-निमाड़, विशेषकर निमाड़ क्षेत्र में थीं, लेकिन सरकार की नकारात्मक नीतियों के चलते यह फैक्ट्रियां गुजरात और महाराष्ट्र में शिफ्ट होती गईं। पिछले 10 साल के दौरान ही 40 फीसदी फैक्ट्रियां बंद हो गई हैं। वहीं यदि प्रदेश सरकार ने मंडी टैक्स कम नहीं किया तो जिनिंग फैक्ट्रियों का पलायन और बंद होना जारी रहेगा है।
किसानों पर पड़ रहा बोझ
मान लें कि किसी किसान ने 20 क्विंटल कपास का उत्पादन किया है। मंडी में 6500 रुपए प्रति क्विंटल पर कपास का सौदा तय हुआ। इस हिसाब से 1 लाख 30 हजार रुपए का बिल बना, जिसका भुगतान व्यापारी द्वारा किसान को किया जाना चाहिए। लेकिन होता यह है कि व्यापारी इस एक लाख 30 हजार रुपए में से 1.20 फीसदी, अर्थात 1560 रुपए काटकर किसान को देता है। यानी मंडी टैक्स की राषि किसानों से ही वसूली जा रही है। छोटे किसान परिवहन लागत बढऩे से अन्य राज्यों की मंडी या प्राइवेट जिनिंग में माल बेचने से बचते हैं। वहीं बड़े किसान महाराष्ट्र या गुजरात में कपास बेचते हैं, क्योंकि उन्हें वहां अधिक दाम मिलता है। लेकिन ऐसा करने से मप्र के जिनर्स को कपास की उपलब्धता कम हो जाती है।
मध्यप्रदेश की जिनिंग इंडस्ट्री गुजरात और महाराष्ट्र की जिनिंग फैक्ट्रियों का मुकाबला करने में अक्षम साबित हो रही है, क्योंकि गुजरात और महाराष्ट्र की जिनिंग फैक्ट्री को कम कीमत पर कपास मिल रहा है। इसका दुष्परिणाम यह हो रहा है कि मध्यप्रदेश से बड़ी संख्या में जिनिंग फैक्ट्रियों का पलायन महाराष्ट्र और गुजरात में हो चुका है और लगातार हो रहा है। कपास पर मंडी टैक्स को कम करने के संबंध में कई बार प्रदेश सरकार को प्रतिवेदन दिया है। मुख्यमंत्री से मिलकर भी समस्या से अवगत कराया गया है, लेकिन मंडी टैक्स में छूट का आदेश अब तक जारी नहीं किया गया।
-कैलाश अग्रवाल, अध्यक्ष, मप्र कॉटन एसोसिएशन
मंडी टैक्स कम करने के लिए कई बार सरकार से गुजारिश की है, लेकिन परिणाम कुछ भी नहीं निकला। मंडी टैक्स के चलते हमारी लागत महाराष्ट्र और गुजरात की जिनिंग इंडस्ट्री से अधिक पड़ती है, जिसके कारण हमारा कारोबार मारा जाता है। कई फैक्ट्रियां मप्र छोडक़र इन राज्यों में शिफ्ट हो गई हैं। इससे मप्र में बेरोजबारी भी बढ़ रही है।
-विनोद जैन, अध्यक्ष, मध्यांचल कॉटन एसोसिएशन
मंडी टैक्स के कारण हम बुरी तरह से पिटा रहे हैं। अन्य राज्यों के मुकाबले मप्र में कपास की 100 गांठ (एक गांठ में 170 किलो होता है) करीब 30 हजार रुपए महंगी पड़ती है। देश में कपास पर सबसे ज्यादा मंडी टैक्स मप्र में लग रहा है। मंडी टैक्स को कम नहीं किया गया तो हम अन्य प्रदेशों की जिनर्स फैक्ट्रियों से प्रतियोगिता नहीं कर पाएंगे।
-संजय लुनिया, जिनर्स
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