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सुप्रीम कोर्ट का SIR प्रक्रिया पर रोक लगाने से इनकार, कहा- “बिहार में कोई नकारात्मक असर नहीं देखा, लेकिन..”

November 27, 2025

नई दिल्‍ली । सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बुधवार को स्पष्ट शब्दों में कहा कि चुनाव आयोग (EC) को देशभर में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को संचालित करने का संवैधानिक और वैधानिक अधिकार प्राप्त है। कोर्ट ने यह भी साफ किया कि वह इस प्रक्रिया पर रोक नहीं लगाएगा, हालांकि अगर किसी तरह की अनियमितता सामने आती है तो सुधारात्मक निर्देश देने में अदालत पीछे नहीं हटेगी। शीर्ष अदालत ने ये भी स्पष्ट किया कि बिहार में पूरी हुई SIR कवायद के बाद जमीनी स्तर पर कोई नकारात्मक असर नहीं दिखा।

मुख्य न्यायाधीश (CJI) सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने SIR की आवश्यकता और औचित्य पर उठ रहे सवालों को खारिज करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद जब मतदाता सूची अपडेट की गई थी, तब किसी ने भी इस प्रक्रिया पर एक भी आपत्ति दर्ज नहीं कराई।

सिब्बल: करोड़ों अशिक्षित लोग फॉर्म नहीं भर पाते, यह बहिष्करण का हथियार बन रहा
आरजेडी सांसद मनोज झा की ओर से दलील पेश करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने SIR की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि देश में करोड़ों ऐसे लोग हैं जो मतदाता पंजीकरण के दौरान दिए जाने वाले एन्यूमरेशन फॉर्म भर नहीं पाते। उन्होंने कहा कि देश में लाखों-करोड़ों निरक्षर लोग हैं जो फॉर्म नहीं भर सकते इसलिए यह प्रक्रिया बहिष्कार का औजार बन रही है।

सिब्बल ने तर्क दिया- आखिर एक मतदाता से यह फॉर्म भरवाने की जरूरत ही क्यों है? चुनाव आयोग कौन होता है यह तय करने वाला कि कोई व्यक्ति भारतीय नागरिक है या नहीं? आधार कार्ड में निवास और जन्म तिथि लिखी होती है- 18 वर्ष से अधिक उम्र का व्यक्ति सिर्फ स्व-घोषणा दे कि वह भारतीय नागरिक है, तो उसे मतदाता सूची में शामिल किया जाना चाहिए।

CJI कांत: ग्रामीण इलाकों में चुनाव पर्व की तरह, हर कोई मतदाता की पहचान जानता है
इस पर CJI सूर्यकांत ने कहा- सिब्बल साहब, आपने दिल्ली में चुनाव लड़े हैं, वहां कई लोग वोट नहीं डालते। लेकिन ग्रामीण इलाकों में चुनाव उत्सव की तरह होते हैं। वहां हर व्यक्ति को अपने वोट की चिंता रहती है। गांव में हर कोई जानता है कि गांव का निवासी कौन है और कौन नहीं। कपिल सिब्बल ने जवाब दिया कि आजादी के बाद से भारत में कभी इतने बड़े पैमाने पर ऐसा संशोधन नहीं हुआ, क्योंकि हमारा ‘पूर्ण स्वराज’ का नारा समावेशी था, बहिष्कारी नहीं।

पहले भी मतदाता संख्या वयस्क आबादी से ज्यादा थी, सुधार जरूरी- न्यायमूर्ति बागची
जस्टिस बागची ने कहा कि 2012 और 2014 में कई राज्यों में मतदाताओं की संख्या वयस्क आबादी से भी अधिक पाई गई थी। उन्होंने सवाल किया कि अगर चुनाव आयोग को किसी मतदाता की नागरिकता को लेकर संदेह हो, तो क्या उसे जांच करने का अधिकार नहीं होना चाहिए? अगर आक्रामक पुनरीक्षण होगा, तो कुछ नाम हटेंगे ही।

बिहार का उदाहरण देकर कोर्ट ने कहा- बड़ी संख्या में हटाए गए नाम मृत या पलायन कर चुके थे
CJI कांत ने बताया कि बिहार में SIR को लेकर शुरुआत में कहा गया कि लाखों-करोड़ों नाम हटाए जा रहे हैं। CJI ने कहा- शुरुआत में कहा गया था कि करोड़ों मतदाताओं के नाम काटे जा रहे हैं। हमने कुछ दिशा-निर्देश दिए। अंत में क्या हुआ? जिनके नाम कटे, उनमें मृत लोग और बाहर चले गए लोग शामिल थे। किसी ने भी आपत्ति नहीं की। जमीन पर इसका कोई असर नहीं दिखा।

सिब्बल बोले- नागरिकता सिद्ध करने की जिम्मेदारी मतदाता पर क्यों?
पीठ की टिप्पणियों के बाद सिब्बल ने SIR के प्रभाव के बजाय उसके संवैधानिक पहलू पर जोर दिया। उन्होंने कहा- प्रक्रिया समावेशी होनी चाहिए। नागरिकता साबित करने का बोझ मतदाता पर नहीं डाला जा सकता। अगर किसी मतदाता पर संदेह है तो उसका मामला सक्षम प्राधिकारी को भेजा जाए। बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) को किसी की नागरिकता जांचने का कोई अधिकार नहीं है। पीठ ने सभी पक्षों को सुनने के बाद कहा कि वह प्रक्रिया को नहीं रोकेगी, लेकिन अगर कोई वास्तविक शिकायत आएगी तो तुरंत हस्तक्षेप किया जाएगा। मामले की आगे की सुनवाई गुरुवार को होगी।

यह दलील कि मतदाता सूची के एसआईआर की कवायद पहले कभी नहीं हुई, चुनौती का आधार नहीं: न्यायालय
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि यह तर्क कि देश में पहले कभी मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण की कवायद नहीं हुई, उन राज्यों में इस प्रक्रिया को शुरू करने के निर्वाचन आयोग के फैसलों की वैधता पर सवाल उठाने का आधार नहीं बन सकता। कई राज्यों में एसआईआर करने के निर्वाचन आयोग के फैसले की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अंतिम सुनवाई शुरू करते हुए प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि आयोग के पास फॉर्म 6 में प्रविष्टि की शुद्धता निर्धारित करने की अंतर्निहित शक्ति है।

किसी व्यक्ति को स्वयं को मतदाता के रूप में पंजीकृत कराने के लिए फॉर्म छह भरना होगा। पीठ ने यह भी दोहराया कि आधार कार्ड नागरिकता का पूर्ण प्रमाण नहीं देता है और इसीलिए हमने कहा कि यह दस्तावेजों की सूची में से एक दस्तावेज होगा… यदि किसी को हटाया जाता है तो उसे हटाने का नोटिस देना होगा। प्रधान न्यायाधीश ने कहा- आधार लाभ प्राप्त करने के लिए क़ानून द्वारा बनाया गया एक प्रावधान है। क्या सिर्फ इसलिए कि किसी व्यक्ति को राशन के लिए आधार दिया गया, उसे मतदाता भी बना दिया जाना चाहिए? मान लीजिए कोई पड़ोसी देश का निवासी है और मजदूरी करता है?



पीठ एक विशेष दलील से सहमत नहीं दिखी और कहा,- आप कह रहे हैं कि निर्वाचन आयोग एक डाकघर है, जिसे प्रस्तुत किए गए फॉर्म 6 को स्वीकार करना चाहिए और आपका नाम शामिल करना चाहिए। कुछ याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा- प्रथम दृष्टया, हां…जब तक कि कोई विपरीत सामग्री न हो।

पीठ ने कहा- दस्तावेजों की सत्यता निर्धारित करने के लिए निर्वाचन आयोग के पास हमेशा अंतर्निहित संवैधानिक अधिकार रहेगा…। इस बीच, शीर्ष अदालत ने तमिलनाडु, केरल और पश्चिम बंगाल में एसआईआर को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई का कार्यक्रम भी तय कर दिया।

पीठ ने निर्वाचन आयोग से तमिलनाडु में एसआईआर को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर एक दिसंबर तक जवाब दाखिल करने को कहा और याचिकाकर्ताओं को अपना प्रत्युत्तर दाखिल करने के लिए दो दिन का समय दिया। याचिकाएं चार दिसंबर को सूचीबद्ध होंगी। केरल में एसआईआर के खिलाफ याचिकाओं पर निर्वाचन आयोग को एक दिसंबर तक अपना जवाब दाखिल करना होगा और याचिकाओं पर दो दिसंबर को सुनवाई होगी।

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