
नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)ने शुक्रवार को एक अर्जी पर नाराजगी जताते हुए याचिकाकर्ता (Petitioner)को फटकार लगाई और एक लाख रुपये का जुर्माना भी ठोक दिया। यह याचिका अल्पसंख्यक स्कूलों को शिक्षा के अधिकार अधिनियम के प्रावधानों (Provisions)के तहत छूट देने के सुप्रीम कोर्ट के पुराने आदेश के खिलाफ दायर की गई थी। कोर्ट ने कहा कि इस तरह की याचिका दायर करके न्यायपालिका को बदनाम न करें।
जस्टिस बीवी नागरत्ना और आर महादेवन की पीठ यूनाइटेड वॉयस फॉर एजुकेशन फोरम एनजीओ द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में कहा गया था कि अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को दी गई छूट असंवैधानिक है, क्योंकि यह उन्हें आरटीई दायित्वों से पूरी तरह से छूट देती है। पीठ ने कहा कि अगर वकील इस तरह की सलाह दे रहे हैं तो उन्हें भी दंडित करना होगा। कोर्ट ने जुर्माना लगाते हुए कहा कि सख्त संदेश देना जरूरी है। आप कानून के जानकार और पेशेवर हैं और आप अनुच्छेद 32 के तहत इस न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए रिट याचिका दायर करते हैं? आप कोर्ट के महत्व को समझते नहीं हैं। 2014 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले में आरटीई एक्ट को आर्टिकल 30(1) के तहत अल्पसंख्यक स्कूलों पर लागू नहीं माना था।
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उस याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया, जिसमें दावा किया गया था कि ‘म्यूचुअल फंड सही है’ जैसे लोकप्रिय विज्ञापन अभियान निवेशकों को गुमराह करते हैं। जस्टिस विक्रम नाथ और संदीप मेहता की पीठ इस साल सितंबर में बॉम्बे हाई कोर्ट के एक आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी। हाईकोर्ट ने उस जनहित याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें एसोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फंड्स इन इंडिया को निवेशक शिक्षा और जागरूकता कार्यक्रम चलाने के लिए दी गई छूट को रद्द करने का निर्देश देने की मांग की गई थी।
याचिकाकर्ता ने जापान में हाल ही में आए भूकंप का जिक्र किया। उन्होंने ऐसी स्थिति से निपटने के लिए वहां पर होने वाले विशेष किस्म के भवन निर्माण पर चर्चा करनी चाही, लेकिन पीठ ने उन्हें रोका। कोर्ट ने कहा कि मीडिया में कौन सी रिपोर्ट प्रकाशित हो रही है, उसके आधार पर कोर्ट में सुनवाई नहीं होती। यह विषय नीतिगत है।
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