
इंदौर। नगर निगम द्वारा अब तक बीआरटीएस कॉरिडोर को तोडऩे का वर्कआर्डर जारी नहीं किया गया है। ऐसे में बार-बार बीआरटीएस कारिडोर तोडऩे का काम बस शुरू होने वाला है, ऐसी बात करते हुए जनता को गफलत में रखा जा रहा है।
नगर निगम में कामकाज की गति कितनी धीमी है, वह बीआरटीएस कॉरिडोर को तोडऩे के मामले को देखने से ही समझ में आ जाता है। वैसे तो शहर में कई सडकें ऐसी हैं, जिनका निर्माण करने के लिए भूमिपूजन किए हुए महीनों बीत गए, लेकिन अब तक सडक़ का निर्माण शुरू नहीं हो सका। जिस तरह की स्थिति निर्माण कार्य करने में है, उसी तरह की स्थिति निर्माण को तोडऩे में भी है।
राज्य सरकार द्वारा तो फरवरी के महीने में इंदौर के बीआरटीएस कॉरिडोर को तोडऩे का फैसला लिया गया था। उसके बाद में इस फैसले पर मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा भी मोहर लगा दी गई थी। फिर नगर निगम द्वारा तीन बार टेंडर जारी किए गए, लेकिन इस काम को करने के लिए कोई ठेकेदार नहीं आया। जब नगर निगम ने चौथी बार टेंडर जारी किया तो एक फर्म इस काम को करने के लिए आ गई। इस टेंडर में तोडफ़ोड़ करने वाली फर्म को नगर निगम को कुछ पैसा नहीं देना है। तोडफ़ोड़ में से निकलने वाले मलबे और लोहा-लंगर की मालिक यह फर्म ही होगी। ऐसी स्थिति में इस फर्म द्वारा ही नगर निगम को पैसा दिया जाएगा।
पिछले कुछ दिनों से लगातार नगर निगम के पदाधिकारियों की ओर से यह दावा किया जा रहा है कि बस बीआरटीएस तोडऩे का काम शुरू होने वाला है। फिर कहा गया कि हम चाहते हैं कि बीआरटीएस तोड़ा जाए तो उसके साथ में नया रोड डिवाइडर बनाने का काम भी हो जाए, ताकि इस स्थान पर किसी तरह की दुर्घटना की स्थिति नहीं बन सके। इन सारे दावों के बीच में कल ही यह जानकारी सामने आई कि नगर निगम द्वारा ठेकेदार एजेंसी को अब तक वर्कआर्डर ही जारी नहीं किया गया है।
यह जानकारी सामने आने के बाद अग्निबाण द्वारा इस मामले के प्रभारी अपर आयुक्त अभय राजनगांवकर से चर्चा की गई तो उन्होंने बताया कि महापौर परिषद की बैठक में इस टेंडर को मंजूर करने का फैसला लिया गया था। इसके बाद में इस बारे में तैयार किए गए संकल्प पर महापौर के हस्ताक्षर होकर भी आ गए हैं। अभी यह फाइल निगम आयुक्त के पास गई हुई है। वहां से जब फाइल आएगी तो उसके बाद में ठेकेदार एजेंसी के नाम पर वर्कआर्डर जारी किया जाएगा। उसके साथ ही इस एजेंसी को काम चालू करने के बारे में चर्चा करने के लिए बुलाया जाएगा। यह एक ऐसा काम हो गया है, जो कि निगम की प्राथमिकता में नहीं आ पा रहा है।
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