
उस दौर में नगर के साथ अफसर भी कहते थे…प्राउड आफ यू
नाम बड़ा (Name is big) उसी शख्सियत (Personality) का होता है, जो काम बड़ा करते हैं… काम बड़़ा तभी होता है, जब इरादे आसमां (sky) को छूने वाले होते हैं। जिसे खुद की फिक्र न हो, केवल लक्ष्य (Goal) पर निगाह हो और लक्ष्य पर तेज व धीमी दोनों चाल से सफर शुरू कर दे, ऐसे इंसान जरूर मंजिल पा लेते हैं। चाहे मार्ग में कितने ही तूफां आएं, कांटों से कदम लहूलुहान हो जाएं, लेकिन लक्ष्य को ठान चुके इंसान तमाम आफत, संकट को ठोकर मारते हुए अपने सपने को सच में बदलने की राह पर निकल पड़े…इस सोच के साथ अपने सफर पर निकल पड़े कि सुना है आज समंदर को बड़ा गुमान आया है, उधर ही ले चलो कश्ती जहां तूफान आया है। उस दौर में अखबाररूपी कश्ती को तूफान में चलाने जैसा था। अग्निबाण के जनक उस कश्ती को तूफान में ही अथक रूप से चलाते रहे, जो आज अखबार सबसे अधिक प्रसार संख्या वाला देश का प्रथम अखबार बना हुआ है। ऐसे व्यक्ति ही पूज्य बाबूजी नरेशचंद्रजी चेलावत (Naresh Chandraji Chelawat) बनते हैं। बाबूजी के नाम से उन्हें जमाना पहचानने लगा। उनका स्वभाव, आचरण सब कुछ बाबूजी जैसा ही मुझे नजर आया। आज के दौर में आचरण का बड़ा संकट है। चरित्र रंग बदलता है, ऐसे में बाबूजी कर्म व समर्पण के पक्के नजर आए। बाबूजी के अधीन जिन-जिन लोगों ने काम किया है, हरेक इंसान यही कहेगा कि वो तो राजा इंसान थे, मुफलिसी में भी इंसान को राजा का तगमा मिल जाए, ये सबसे बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है। उस दौर में बाबूजी शहर को बेहतरीन सौगात दे गए, जिस दौर में न तो वर्कर मिलते थे, न पत्रकार। उस दौर में अत्याधुनिक छपाई की मशीनों का भी आविष्कार नहीं हुआ था। ऐसे विकट दौर में विकेट पर टिके रहकर बल्लेबाजी यदि कोई एकला चलो की राह पर कर रहे थे तो वो बाबूजी ही थे। सुबह से अखबार निकालने के लिए किला लड़ाते वो देखे जाते थे। शाम को यार-दोस्त भी कार्यालय में आ जाते थे। वो भी बाबूजी की फौलादी हिम्मत को देखकर दंग रह जाते थे। बाबूजी सारे काम खुशमिजाजी से करते देखे जाते थे। संकट में अखबार निकालने में वो खुद तकलीफ में रहते थे, लेकिन लगता ही नहीं था कि वो संकट में हैं। ऐसा लगता है कि सन् 70-80 के दशक में ही उन्होंने जीवंत व कर्मशील इंदौर शहर को भांप लिया था कि आने वाले समय में इंदौर औद्योगिक नक्शे पर ही नहीं, अपितु शिक्षा, चिकित्सा, विश्वविद्यालयों का हब बन जाएगा, रोजगार की बाढ़ आएगी, समस्याओं का अंबार आने वाला है, जिसके समाधान के लिए शहर को बेहतरीन, जनता की खरीद क्षमता के अनुरूप अखबार की सौगात देना है। वो अपना काम पूरी निष्ठा, ईमानदारी व मेहनत से कर गए। उन्हीं के पदचिह्नों पर चलते हुए उनके ज्येष्ठ पुत्र राजेश भैया ने भी अखबार को ऐसी गति दी कि प्रसार संख्या चंद वर्षों में ही 25 हजार से लेकर 1 लाख की संख्या को पार कर गई। ये तो प्रसार संख्या है, लेकिन एक अखबार को संस्थानों, दुकानों एवं परिवार में यदि 5 लोग भी पढ़ते हैं तो पाठक संख्या देखते ही देखते लाखों में पहुंच गई…इतना बड़ा पाठक वर्ग जोडऩा आसान नहीं था, लेकिन पूरे अग्निबाण परिवार ने प्रसार संख्या बढ़ाने के लिए अपनी ताकत झोंकी, जिस कारण दैनिक अग्रिबाण प्रदेश ही नहीं, देश का लीड अखबार बन गया। लोग आश्चर्य के बजाय ये अग्निबाण की मेहनत मानते हैं। पाठक वर्ग को समर्पित अखबार बन गया, जहां खबरों में धार देखी जाती है, क्रांतिकारी विचारों का भी समावेश रहता है, जिसमें संपादकीय दिलों को छू जाती है, नेताओं, अफसरों को आईना दिखाती कलम चलती है तो वो भी समझ जाते हैं कि सच्चाई की आवाज है। जब अग्निबाण का प्रकाशन शुरू हुआ था, उस दौर में इंदौर काफी छोटा था, लेकिन आज महानगर की दहलीज पर पहुंच गया है, मेट्रोपॉलिटन सिटी में बदलने जा रहा है। बढ़ते इंदौर में अखबारों की भूमिका और मायने रखेगी। जिस दौर में अग्रिबाण निकला था, उस दौर की राजनीति में मेवा कम सेवा अधिक हुआ करती थी, अपराधों का ग्राफ बेहद कम था, इसलिए खबरें जुटाना काफी मुश्किलभरा होता था, पत्रकारों का भी टोटा था। आज तो सब सहज-सुलभ होते जा रहा है। संचार साधनों की क्रांति ने भले ही खबरें आसान कर दी हों, लेकिन सच्ची खबर तो मेहनत के बूते ही बनती है, जो अग्रिबाण में आज भी बाबूजी की परंपरा से चली आ रही है। किसी प्रकार की लफ्फाजी व मिर्च-मसाला नहीं होता, केवल सच्चाई से सरोकार होता है। उस दौर को याद करो तो पता चलता है कि चाकूबाजी कभी-कभार ही होती थी, हत्याएं भी कभी-कभार हुई हैं, लेकिन आज तो हत्याएं ऐसे हो रही हैं, मानो घोर कलियुग आ गया हो। उस दौर में भी पत्रकारिता कठिन थी, जब समाचार को जुटाने के लिए थानों का सहारा लेना पड़ता था और नगर के नेता विज्ञप्ति लेकर आ जाते थे, लेकिन आज तो पल-पल पर समाचार है, लेकिन उसमें कितनी सच्चाई है…? ये पाठक जानते हैं औरकेवल विश्वसनीय अखबार पर भरोसा करते हैं और यह भरोसा अग्र्रिबाण ने सालों की मेहनत, नीति के दम पर जीता है। उस दौर में अफसर भी आश्चर्य में थे कि साधनों की कमी के बावजूद अग्रिबाण शाम तक कैसे बाजार में आ जाता है। एक बार तो तत्कालीन संभागायुक्त राजकुमार खन्ना आए और बाबूजी के प्रयासों की खुलकर सराहना करते हुए कह गए कि प्राउड आफ यू…सोशल मीडिया से लेकर खबरिया चैनलों की आंधी के बावजूद यदि अग्निबाण की लहर चल रही है तो उसका श्रेय पूज्य बाबूजी की सोच को जाता है। सोशल मीडिया व खबरिया चैनलों में हवाहवाई मामले अधिक रहते हैं, जो हवा में उड़ जाते हैं, जबकि अखबार को जनता सच मानती है, जिसका कारण अखबार आज भी जनता को सच परोसते हैं, जनता के बीच रहकर खबरें बनाई जाती हैं। ये बाबूजी की पाठशाला रही है। फील्ड के लिए पत्रकार उस दौर में भी लगाए जाते थे, जिस कारण लोगों को अपने आसपास की खबरें आसानी से सस्ते न्यूज पेपर में मिल जाती हंै। खैर, बाबूजी वक्त कैसे बदला जा सकता है, सफलता की सीढिय़ां कैसे चढ़ा जा सकता है, ये जरूर सीखा गए। देश के बड़े औद्योगिक घरानों के संस्थापकों को भी कठिन रास्तों पर चलना पड़ा है। ये एक बड़ी सच्चाई होती है। बाबूजी प्रेरक शक्ति केंद्र जरूर बने रहेंगे, चाहे अखबार को 50 साल हो जाएं या 100 बरस। मदन सवार
आज अग्निबाण के संस्थापक का जन्मदिन भी है…
व्यक्ति जन्म से नहीं कर्म से जाना जाता है…लोग अपने जन्मदिन पर तोहफे लेेते हैं… लेकिन अग्निबाण के प्राण-पुरुष नरेशचंद्रजी चेलावत ने अपने जन्मदिन पर इस शहर को शाम के अखबार का तोहफा दिया…लोग उन्हें अपनेपन से बाबूजी के नाम से संबोधित करते थे…अपनी कर्मस्थली के लिए युवावस्था से ही समर्पित बाबूजी ने लोगों के दु:ख-दर्द दूर करते हुए अपने यार-मित्रों की इतनी बड़ी शृंृखला बना ली थी कि उन्हें भरोसा था कि अग्निबाण का उनका सपना साकार होगा…जब अग्निबाण का प्रादुर्भाव नहींं था, तब भी शहर में उनकी बड़ी धमक थी…अफसरों से लेकर नेताओं तक में उनका रौब था कि यदि वो किसी तकलीफ में फंसे व्यक्ति की मदद के लिए जाते थे तो हाथोहाथ उसे निजात दिलाते थे… वो दौर ऐसा था, जब राजनीतिक कुनबे में महेश जोशी, चंद्रप्रभाष शेखर, सुरेश सेठ से लेकर होमी दाजी की तूती बोलती थी… आज की भाजपा उस समय जनसंघ के दौर में संघर्ष कर रही थी…राजेंद्र धारकर से लेकर निर्भयसिंह पटेल जैसे नेता विपक्ष की बागडोर संभालते थे…छोटा सा इंदौर था… सबमें अपनापन था…इस अपनेपन के विस्तार के लिए अग्निबाण का जन्म हुआ… अग्निबाण ने इसी अपनेपन की धरोहर से आगे बढ़ते हुए आज पूरे शहर में विश्वास का मुकाम हासिल किया है…
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