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इलाहाबाद HC के जज शेखर यादव के महाभियोग प्रस्ताव पर फंसा पेच, जानें क्या है मामला?

June 25, 2025

प्रयागराज। राज्यसभा सचिवालय (Rajya Sabha Secretariat) ने पुष्टि की है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) के जज शेखर यादव (Judge Shekhar Yadav) को उनकी ‘हेटस्पीच’ के लिए पद से हटाने के संबंध में प्रस्ताव लाने का नोटिस देने वाले 55 सांसदों में से 44 सदस्यों के हस्ताक्षर का सत्यापन हो गया है जबकि कपिल सिब्बल (Kapil Sibal) और नौ अन्य ने अब तक अपने हस्ताक्षरों का सत्यापन नहीं किया है। सिब्बल नोटिस पर शीघ्र कार्रवाई के लिए मुखर रहे हैं। उन्होंने दावा किया कि राज्यसभा सचिवालय से ऐसा कोई ईमेल नहीं मिला है, जिसमें पुष्टि की गई हो कि पिछले छह महीनों के दौरान उनके आधिकारिक ईमेल पर तीन बार नोटिस भेजा गया है।


सिब्बल ने हस्ताक्षरों के सत्यापन की आवश्यकता और मार्च में देरी से प्रक्रिया शुरू करने में पर भी सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि इस संबंध में नोटिस 13 दिसंबर 2024 को प्रस्तुत किया गया था। न्यायमूर्ति यादव को हटाने के लिए 55 सांसदों ने प्रस्ताव के नोटिस पर हस्ताक्षर किए हैं, लेकिन उनमें से एक सदस्य सरफराज अहमद के हस्ताक्षर नोटिस पर दो बार दिखाई दे रहे हैं। राज्यसभा सचिवालय जांच कर रहा है कि नोटिस पर उनके हस्ताक्षर दो बार कैसे दिखाई दे रहे हैं और क्या वे जाली हैं।

सूत्रों ने बताया कि झारखंड से झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के सांसद अहमद इस मुद्दे पर पहले ही राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ से मिल चुके हैं और इस बात की पुष्टि की है कि उन्होंने दो बार नहीं बल्कि केवल एक बार हस्ताक्षर किए हैं। सूत्रों ने बताया कि न्यायमूर्ति यादव को हटाने के लिए 55 विपक्षी सांसदों द्वारा प्रस्तुत नोटिस पर तारीख नहीं है और ये किसी को संबोधित नहीं है।

संविधान के अनुसार उच्च न्यायापालिका के किसी न्यायाधीश को सेवा से तभी हटाया जा सकता है जब संसद के दोनों सदनों द्वारा प्रस्ताव को वर्तमान सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से मंजूरी दे दी जाए। इसके बाद राष्ट्रपति को इसे मंजूरी देनी होती है। राज्यसभा में ऐसा प्रस्ताव तभी लाया जा सकता है जब 50 सदस्यों के हस्ताक्षर हों। लोकसभा के लिए 100 सदस्यों के हस्ताक्षर की जरूरत होती है।

सूत्रों के अनुसार, पूर्व केंद्रीय मंत्री और अब निर्दलीय राज्यसभा सदस्य सिब्बल ने पिछले छह महीनों में अपने आधिकारिक ईमेल पर तीन बार अनुस्मारक भेजने के बाद भी अब तक राज्यसभा सचिवालय के समक्ष अपने हस्ताक्षर का सत्यापन नहीं कराया है। सिब्बल ने कहा, ‘मैंने सभापति धनखड़ से कई बार मुलाकात की है, लेकिन उन्होंने न्यायमूर्ति यादव को हटाने के नोटिस पर मेरे हस्ताक्षरों के सत्यापन का मुद्दा कभी नहीं उठाया जबकि पूरी प्रक्रिया का प्रस्तुतकर्ता और शुरुआत करने वाला मैं ही हूं’’

उन्होंने यह भी कहा कि हस्ताक्षर सत्यापन की आवश्यकता तभी पड़ती है जब नोटिस पर किए गए हस्ताक्षरों पर सवाल उठाया गया हो। निर्दलीय राज्यसभा सदस्य ने देरी पर भी सवाल उठाया और कहा कि सदन के सभापति को नोटिस को स्वीकार या अस्वीकार करना चाहिए और प्रक्रिया में देरी नहीं करनी चाहिए। सिब्बल ने कहा है कि ऐसे न्यायाधीश को संरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए। सिब्बल ने पिछले वर्ष एक कार्यक्रम में कथित सांप्रदायिक टिप्पणी करने के लिए न्यायमूर्ति यादव को हटाने की मांग की है।

उन्होंने हस्ताक्षर सत्यापन के लिए छह महीने की अवधि निर्धारित करने पर भी सवाल उठाया है। हालांकि, सूत्रों का कहना है कि कम से कम 10 सांसदों ने अब तक राज्यसभा सचिवालय के समक्ष अपने हस्ताक्षर सत्यापित नहीं कराए हैं, जिसने उन्हें सात मार्च, 13 मार्च और एक मई को ऐसा करने के लिए अनुस्मारक भेजे हैं। पी चिदंबरम ने कहा कि मंगलवार को पहली बार उन्हें उनके हस्ताक्षर के सत्यापन के लिए भौतिक दस्तावेज (नोटिस) दिखाया गया था। चिदंबरम ने बताया कि उन्होंने अपने हस्ताक्षर सत्यापित किए लेकिन राज्यसभा सचिवालय ने इसकी पुष्टि नहीं की है।

सूत्रों के मुताबिक जिन सांसदों के हस्ताक्षर सत्यापित नहीं हुए हैं और जिन्होंने अब तक राज्यसभा सचिवालय के ईमेल प्रश्नों का जवाब नहीं दिया है, उनमें आम आदमी पार्टी (आप) के राघव चड्ढा और संजीव अरोड़ा, तृणमूल कांग्रेस की सुष्मिता देव, केरल से कांग्रेस सदस्य जोस के मणि, अजीत कुमार भुइयां, जी सी चंद्रशेखर और फैयाज अहमद शामिल हैं। राज्यसभा के सभापति धनखड़ ने पिछले सत्र के दौरान सदन में इस मुद्दे पर बात की थी और पुष्टि की थी कि सांसदों के हस्ताक्षर का सत्यापन किया जाना है और प्रक्रिया चल रही है।

धनखड़ ने 21 मार्च 2025 को सदन में कहा था, ‘मैंने सभी प्रक्रियागत कदम उठाये हैं, लेकिन मैं आपके साथ एक चिंता साझा करना चाहता हूं जो मेरा ध्यान आकर्षित कर रही है। 55 सदस्यों में से, जिन्होंने इस अभ्यावेदन पर हस्ताक्षर किये थे, एक सदस्य के हस्ताक्षर दो अवसरों पर दिखाई देते हैं और संबंधित सदस्य ने अपने हस्ताक्षर से इनकार किया है।’ राज्यसभा सूत्रों ने कहा कि सदन में न्यायमूर्ति शेखर यादव को हटाने की मांग करने वाले नोटिस के संबंध में आचार समिति और विशेषाधिकार समिति द्वारा आपराधिक जांच की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि दस्तावेज पर ‘जाली’ हस्ताक्षर हैं।

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