
डेस्क: पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान से भले ही इस वक्त हमारे रिश्ते अबतक के सबसे निचले स्तर पर हों लेकिन वहां से एक दिल को छू लेने वाली खबर सामने आई. कराची में दो हथिनियों हैं जो रोजाना 400-400 दवाई की गोलियां खा रहे हैं. इन्हें ठीक रखने के लिए युद्ध स्तर पर काम हो रहा है. दरअसल, इन दो हाथियों को टीबी की बीमारी हुई है. ऐसे में करीब 4000 हजार किलो वेट वाले हाथी को उसके शरीर के साइज के हिसाब से ही भर-भरकर 400 दवाई की गोलियां दी जा रही हैं. यह वही गोलियां है, जो इंसानों को दी जाती हैं. यहां बड़ी बात है कि भारत से ट्रेड बंद होने के बाद पाकिस्तान में खुद दवाइयों की बड़ी शॉर्टेज है. ऐसे में वहां 2 हथिनियों को जिंदा रखने के लिए खूब दवाई दी जा रही है. यह बड़ी बात है.
कराची सफारी पार्क में यह दोनों हथिनियां रह रहे हैं. हर दिन सूरज उगने से पहले 22 वर्षीय महावत अली बलोच चावल और दाल की खिचड़ी बनाते हैं, उसमें गुड़ की चाशनी मिलाते हैं और उसे दर्जनों गोलों में बाँधते हैं. लेकिन ये कोई आम नाश्ता नहीं. हर बॉल में छिपी होती है कड़वी एंटी-टीबी की गोली, जो हाथियों के जीवन को धीरे-धीरे मौत से खींच कर वापस ला रही है. इन हाथियों के नाम मधुबाला और मलिका हैं. दोनों अफ्रीकी हथिनियां हैं. वो एक साल लंबी टीबी की बीमारी से जंग लड़ रही हैं. हर दिन उन्हें 400 से ज्यादा दवाइयां दी जाती हैं, जो फलों और मिठाइयों में छिपाकर खिलाई जाती हैं. ये वही दवाएं हैं जो इंसानों को दी जाती हैं, लेकिन यहां खुराक 4,000 किलो वजनी जानवरों के हिसाब से तय की जाती है.
श्रीलंका से आए डॉक्टर का कहना है कि जब पहली बार दवा दी गई, तो हथिनियों ने उसे थूक दिया, गुस्से में अपने देखभाल करने वालों पर हमला भी किया. टीबी का इलाज हाथियों को देना हमेशा चुनौती होता है. वो पहले दर्जनों हाथियों को इसी तर्ज पर ठीक कर चुके हैं. उनका कहना है कि हाथियों में ये बीमारी इंसानों से फैली है. पाकिस्तान में हर साल पांच लाख से ज़्यादा लोग टीबी से संक्रमित होते हैं. यही कारण है कि दवा देने वाले चारों महावत मास्क और स्क्रब पहनते हैं, ताकि खुद सुरक्षित रह सकें.
मधुबाला और मलिका अकेली नहीं हैं. वे चार हाथियों में बची दो आखिरी हैं, जिन्हें 2009 में तंजानिया से लाया गया था. 2023 में नूर जहां की मौत हुई और 2024 के अंत में सोनिया भी चल बसी. बाद में पता चला कि उसे भी टीबी हुआ था. इसी चिंता के चलते शहर प्रशासन ने इन दोनों हथिनियों के लिए एक विशेष टीम तैयार की, जिसमें डॉक्टर, पशु चिकित्सक और महावत शामिल हैं. इस टीम का हिस्सा बनीं नसीम सलाउद्दीन, इंडस हॉस्पिटल में संक्रामक रोग विभाग की प्रमुख हैं. उन्होंने कहा कि हाथियों को टीबी है, ये मेरे लिए भी चौंकाने वाला था. मेरे छात्र भी इस केस में गहरी दिलचस्पी ले रहे हैं.
कराची सफारी पार्क की छवि पहले पशुओं के साथ खराब व्यवहार को लेकर खराब रही है, लेकिन अब शायद यही जगह एक उम्मीद की मिसाल बन सकती है. ये सिर्फ एक इलाज नहीं, बल्कि इंसानियत और जिम्मेदारी का प्रतीक बन रहा है. एक ऐसा प्रयास जिसमें जानवरों को केवल दर्शनीय चीज नहीं, बल्कि जीने का हक दिया जा रहा है.
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