
नई दिल्ली: पूर्व नौकरशाहों (Former Bureaucrats) के एक समूह ने भारत (India) के मुख्य न्यायधीश (Chief Justice) को पत्र (Letter) लिखकर दावा किया है कि सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की ओर से नियुक्त केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (Central Empowered Committee) में हितों का टकराव वन संरक्षण अधिनियम, 2023 को चुनौती देने वाले मामलों के नतीजों को प्रभावित कर सकता है.
पूर्व सचिवों, राजदूतों, पुलिस प्रमुखों और वन अधिकारियों समेत अन्य पूर्व अधिकारियों ने 30 जून को लिखे अपने खुले पत्र में कहा कि चार सदस्यीय सीईसी में वर्तमान में भारतीय वन सेवा के तीन पूर्व अधिकारी और एक सेवानिवृत्त वैज्ञानिक शामिल हैं, जिन्होंने कई सालों तक पर्यावरण मंत्रालय के साथ भी काम किया है. उन्होंने कहा कि समिति में कोई स्वतंत्र विशेषज्ञ नहीं हैं.
पत्र में कहा गया है कि सीईसी के दो सदस्य हाल में वन महानिदेशक और पर्यावरण मंत्रालय में विशेष सचिव के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं. पत्र में कहा गया है, ‘पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में उच्च पदों पर रह चुके और नीति-निर्माण में करीबी रूप से शामिल रहे अधिकारियों वाली सीईसी से शायद ही यह उम्मीद की जा सकती है कि वह सुप्रीम कोर्ट को स्वतंत्र सलाह दे, ऐसी सलाह जो उस सलाह से अलग हो जो उन्होंने सरकार में रहते हुए दी थी.’
उन्होंने कहा कि पहले की सीईसी में न सिर्फ सरकारी विशेषज्ञ शामिल थे, बल्कि दो स्वतंत्र सदस्य भी शामिल थे, जिनमें से एक वन्यजीव विशेषज्ञ और एक सुप्रीम कोर्ट के वकील थे. उन दोनों ने न तो उच्च सरकारी पदों पर कार्य किया था और न ही वन नीति निर्णयों में शामिल रहे थे, इस प्रकार निष्पक्षता सुनिश्चित हुई और हितों के टकराव को रोका गया.’
कुछ लोगों के एक समूह ने 2023 में वन संरक्षण संशोधन अधिनियम (FCAA) को सुप्रीम में चुनौती देते हुए कहा था कि इससे वनों की संख्या में तेजी से कमी आएगी. इस मामले में कोर्ट ने चार आदेश जारी किए हैं, जिनमें से एक आदेश गोदावर्मन आदेश, 1996 के अनुसार वनों की परिभाषा को बरकरार रखता है. मामले की अंतिम सुनवाई लंबित हैं.
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