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आजाद के इस्तीफे से घाटी की राजनीति में आया भूचाल, नई पार्टी से क्षेत्रीय दलों को होगा नुकसान

August 27, 2022

जम्मू। दिग्गज नेता (veteran leader ) गुलाम नबी आजाद (Ghulam Nabi Azad) के इस्तीफे (resignation) से जम्मू-कश्मीर की राजनीति (Politics of Jammu and Kashmir) में भूचाल आ गया है। आजाद के प्रदेश के समर्थकों की शनिवार को दिल्ली में बैठक प्रस्तावित है। अगले महीने सितंबर में उनके जम्मू-कश्मीर आने की संभावना है। आजाद नई पार्टी के गठन की घोषणा कर सकते हैं। यदि ऐसा हुआ तो सबसे अधिक प्रभाव कश्मीर आधारित पार्टियों पर पड़ने के आसार हैं।

मुस्लिम वोट बैंक वाली नेकां, पीडीपी, अपनी पार्टी का वोट बैंक खिसक सकता है। इसका पूरे प्रदेश में भाजपा को फायदा मिलने की उम्मीद है। कांग्रेस को तो स्वाभाविक रूप से नुकसान झेलना पड़ेगा।आजाद समर्थक पूर्व विधायक जुगल किशोर शर्मा ने बताया कि दिल्ली में शनिवार को अनौपचारिक बैठक प्रस्तावित है।

इसके लिए कई नेता दिल्ली पहुंच चुके हैं। कुछ और शनिवार सुबह तक पहुंच जाएंगे। इसके बाद आजाद के साथ बैठक कर आगे की रणनीति तैयार की जाएगी। जम्मू-कश्मीर आने पर जगह-जगह सभाएं व बैठकें आयोजित कर पार्टी के स्वरूप पर रायशुमारी की जाएगी।

ज्ञात हो कि आजाद समर्थक पूर्व मंत्री व डोडा की इंद्रवाल सीट से विधायक रहे जीएम सरूरी समेत छह पूर्व विधायक दिल्ली में कैंप कर रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आजाद यदि नई पार्टी बनाते हैं तो मुस्लिम मतों का विभाजन होगा। इसका असर न केवल प्रदेश के विधानसभा चुनाव पर पड़ेगा, बल्कि लोकसभा चुनाव में भी असर दिखेगा।

कश्मीर केंद्रित पार्टियों नेकां, पीडीपी, अपनी पार्टी आदि को आजाद की पार्टी से चुनौती मिल सकती है, क्योंकि इसमें शामिल होने वाले पूर्व विधायक तथा प्रमुख नेता इन्हीं सब पार्टियों के होंगे। ऐसे में मुस्लिम मतों का विभाजन होगा और इन सभी दलों के बीच जबर्दस्त चुनौती रहेगी।


मुस्लिम वोट बैंक में सेंधमारी का सीधा फायदा भाजपा को मिल सकता है क्योंकि जितना मुस्लिम वोट बंटेगा उतनी ही भाजपा की स्थिति मजबूत होगी। राजनीतिक विश्लेषक प्रो. हरि ओम का मानना है कि आजाद की नई पार्टी को सीटें भले ही कम मिलें, लेकिन वोट मिलेगा।

जम्मू संभाग की 30 से 31 सीटों पर भाजपा का प्रभाव हो सकता है। इसके बाद उसे मुस्लिम वोटों के बंटने का फायदा मिल सकता है। हिंदू बाहुल्य मतदाता वाली सीटों पर जीत का अंतर बड़ा हो सकता है। उनका मानना है कि डोडा, रामबन, किश्तवाड़, पुंछ, राजोरी और घाटी की कुछ सीटों पर आजाद का असर दिख सकता है।

डैमेज कंट्रोल में जुटी पार्टी
आजाद के इस्तीफे के बाद पार्टी डैमेज कंट्रोल में जुट गई है। पार्टी से आजाद के इस्तीफे के तत्काल बाद जम्मू स्थित पार्टी मुख्यालय में हुई बैठक में पूरी स्थिति पर चर्चा की गई। सूत्रों ने बताया कि आजाद समर्थकों की गतिविधियों पर पैनी नजर रखने और उनके बीच जाकर माहौल को साजगार बनाने पर रणनीति बनाई गई। कहा गया कि उन सभी लोगों से ज्यादा से ज्यादा संपर्क बनाया जाए जो आजाद के समर्थक माने जाते हैं। खासकर चिनाब वैली, राजोरी, पुंछ और कश्मीर में।

चिनाब वैली और घाटी की राजनीति ले सकती है करवट
यों तो दिग्गज नेता गुलाम नबी आजाद का पूरे जम्मू-कश्मीर में सम्मान है और लोगों का समर्थन प्राप्त है, लेकिन चिनाब वैली में उनका खासा असर है। डोडा, किश्तवाड़ व रामबन जिलों में उनका जबर्दस्त प्रभाव है। पहाड़ी इलाकों में भी उनकी पैठ रही है। यही वजह है कि चिनाब वैली में लंबे समय तक कांग्रेस की मजबूत किलेबंदी रही। घाटी के भी कुछ हिस्सों में उनके समर्थकों की कमी नहीं है। माना जा रहा है कि पूरे प्रदेश की 20 से 25 सीटों पर उनका जबर्दस्त असर है।

ऐसे में चिनाब वैली और घाटी की राजनीति करवट ले सकती है। आजाद के कांग्रेस से अलग होने का पार्टी को भारी खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। खासकर चिनाब वैली और घाटी में। ब्लॉक कांग्रेस से लेकर यूथ कांग्रेस और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी तक सक्रिय राजनीति में उन्होंने लोगों को जोड़ा। सभी धर्मों और सभी वर्गों के बीच उनकी पकड़ थी।

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