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इस राज्य के स्कूलों में अब नहीं होंगे ‘बैकबेंचर’, फिल्म के एक सीन से बदली केरल सरकार की सोच

August 06, 2025

नई दिल्‍ली । अब क्लासरूम (Classroom)में आखिरी बेंच पर बैठने वाले ‘बैकबेंचर’ (‘Backbencher’)छात्र सिर्फ़ किस्सों की बात होंगे। केरल सरकार(Kerala Government) राज्य के स्कूलों में पारंपरिक(Traditional) रो-सीटिंग व्यवस्था( row seating arrangement) खत्म करने जा रही है। चौंकाने वाली बात यह है कि इस फैसले की प्रेरणा किसी रिपोर्ट या शोध से नहीं, बल्कि एक फिल्म के सीन से मिली है। सरकार का मानना है कि ‘बैकबेंचर’ जैसी सोच बच्चों के आत्मविश्वास और सीखने की क्षमता को नुकसान पहुंचाती है और अब वक्त आ गया है कि हर बच्चा क्लासरूम में बराबरी से देखे और सुना जाए।


केरल सरकार राज्य के सरकारी स्कूलों में एक अहम बदलाव करने जा रही है। अब क्लासरूम में ‘बैकबेंचर’ यानी पिछली बेंच पर बैठने वाले छात्रों की अवधारणा खत्म होने वाली है। 5 अगस्त को राज्य के जनरल एजुकेशन मंत्री वी. शिवनकुट्टी ने फेसबुक पोस्ट के ज़रिए ऐलान किया कि केरल के स्कूलों में पारंपरिक कतारबद्ध बैठने की व्यवस्था को समाप्त किया जाएगा। इसके पीछे मकसद है – छात्रों के आत्मविश्वास और सीखने के अनुभव को बेहतर बनाना।

क्यों हट रही बैकबेंच?

‘बैकबेंचर’ शब्द अक्सर उन छात्रों के लिए इस्तेमाल होता रहा है जो या तो बहुत शरारती होते हैं, पढ़ाई में पीछे माने जाते हैं या शिक्षक की नजर से दूर रहते हैं। लेकिन अब केरल सरकार का मानना है कि ये व्यवस्था छात्रों में हीनभावना पैदा करती है और उन्हें पढ़ाई में पीछे धकेलती है। मंत्री ने लिखा, “बैकबेंचर की धारणा का छात्रों के आत्मविश्वास और सीखने की प्रक्रिया पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। कोई भी बच्चा पढ़ाई या जीवन में पीछे न रह जाए, यही हमारा लक्ष्य है।”

नया क्लासरूम मॉडल?

सरकार ने विशेषज्ञों की एक समिति गठित करने का फैसला किया है जो यह तय करेगी कि केरल के शैक्षणिक ढांचे के लिए कौन-सा बैठने का मॉडल सबसे उपयुक्त रहेगा। कुछ स्कूलों में पहले से ही ‘U’ शेप की बैठने की व्यवस्था अपनाई गई है, जहां सभी छात्र एक-दूसरे की ओर और शिक्षक की ओर सीधे देख सकते हैं। इससे सहभागिता बढ़ती है और क्लासरूम में समानता आती है।

इस बदलाव की प्रेरणा मलयालम फिल्म स्थानार्थी श्रीकुट्टन से भी मानी जा रही है, जिसमें एक छात्र पिछली बेंच पर बैठने की वजह से अपमानित महसूस करता है और फिर क्लासरूम के डिजाइन को बदलने की मांग करता है। फिल्म ने सामाजिक बहस को जन्म दिया, जिससे स्कूलों में बदलाव की प्रक्रिया तेज़ हुई।

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