
यह मौत नहीं खुदकुशी है… इस पर आक्रोश नहीं अफसोस जताया जाना चाहिए और सवाल सरकार से नहीं देश से पूछा जाना चाहिए…क्यों लोग भीड़ बनते हैं… क्यों मौत नजर आने वाली भीड़ में शामिल होते हैं… क्यों इस तरह की दीवानगी की हद से गुजरते हैं कि जिंदगी लाश बन जाती है… क्यों उन्हें अपनों का ख्याल नहीं आता है…क्यों उनमें जिम्मेदारियों का अहसास नजर नहीं आता है… वो जश्न मनाते हैं और आप मातम घर लाते हैं… वो खुशियां बिछाते हैं और आप अर्थी सजाते हैं… वो रोशनी से आसमां जगमगाते हैं और आप घर को अंधेरों में डुबाते हैं… था क्या वो…आईपीएल के एक मैच की जीत…एक ऐसा खेल, जिसमें देश ही नहीं विदेशी भी शामिल होते हैं…एक ऐसा खेल, जिस पर सट्टे के आक्षेप लगाए जाते हैं… एक ऐसा खेल, जिसमें खिलाड़ी खेलते नहीं, बल्कि बाजार के इशारों पर नचाए जाते हैं… इसीलिए विराट जैसा खिलाड़ी, जो देश को जिताता है, वो 18 साल तक हारकर भी खुश नजर आता है…एक ऐसा खेल, जो देश को बांटता है…देश में मुंबई, बैंगलोर, चेन्नई की टीमें बनाता है और क्रिकेट के दीवानों को ठगा जाता है…उस खेल की जीत के जश्न में आप शामिल होने की ऐसी दीवानगी दिखाते हैं कि 30 हजार लोगों की जगह पर 3 लाख जमा हो जाते हैं… कोई झाड़ पर चढ़ जाता है, कोई नाले पर खड़ा हो जाता है…कोई बिजली के खंभों पर चढक़र खतरों का खिलाड़ी बन जाता है…और सरकार से अपेक्षा से की जाती है कि वो सुरक्षा का बोझ उठाए और मौतों की जिम्मेदार मानी जाए… कौन सी सरकार ऐसे पागलपन को रोक सकती है और कौन सी सरकार ऐसी भीड़ के लिए व्यवस्थाएं झोंक सकती है…उन्हें रोका जाता तो भगदड़ मचाते और जमा होने दिया जाता तो भी एक-दूसरे पर चढक़र मातम का कारण बन जाते…ऐसा हादसा खेल की दीवानगी में ही नहीं जगह-जगह नजर आता है…कोई कुंभ में मारा जाता है…कोई मेलों में जान गंवाता है…कोई मंदिरों के दर्शन करने जाता है और स्वर्ग सिधार जाता है…ऐसे लोगों की मौतें मात्र चंद दिनों की खबर बनती हैं और फिर लोग भूल जाते हैं…लेकिन जिन घरों के चिराग बुझ जाते हैं वो कभी रोशन नहीं हो पाते हैं…जिम्मेदारी हर घर की बनती है कि वो दीवानगी की आंधी से अपने घर के दीपकों को बचाए…जहां भीड़ हो वहां कदापि नहीं जाए… भगवान को दिल में बसाए और दीवानगी की जगह जेहन में बनाए…
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