ब्‍लॉगर

ये पॉलिटिक्स है प्यारे

जब राजेश सोनकर (Rajesh Sonkar) विधायक थे तब उनके नजदीकी समर्थकों की भोपाल में तूती बोलती थी, लेकिन जब से विधायकी गई और सिलावट (Silavat) यहां के विधायक बनकर मंत्री बन बैठे हैं, उसके बाद से सोनकर समर्थकों की चल नहीं रही है। पहले कोई भी काम होता था तो बस भोपाल (Bhopal) जाना होता था और विधायकजी का फोन संबंधित अधिकारी तक पहुंच जाता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। किसी भी काम के लिए उन्हें अब या तो जानकी नगर का मुंह देखना पड़ता है या सामान्य आदमी की तरह एमवाय के सामने ममता होटल के ऊपर वाले ऑफिस में दस्तक देना पड़ती है। काम होगा या नहीं, इसकी ग्यारंटी कोई नहीं देता। सोनकर के कुछ नजदीकी तो भोपाल के चक्कर काट-काटकर परेशान हैं। बेचारे कर भी क्या सकते हैं, मन मसोस कर रह गए हैं। कुछ समर्थक बोलने लगे हैं भैया जब विधायक थे तब अच्छे दिन थे या ये वाले अच्छे दिन है, जब हाथ-पैर जोडक़र काम चलाना पड़ रहा है।

भैया दिल्ली चले गए, अब उत्तराधिकारी कौन?
शहर में अजा वर्ग के एक नेता को दिल्ली में बड़ी पोस्ट मिलने के बाद अब उनके उत्तराधिकारियों में जंग छिड़ गई है। उत्तराधिकारी किसी भी अजा सीट से पार्षद का चुनाव लडऩा चाहते हैं और अपनी-अपनी दावेदारी ठोंक रहे हैं। कोशिश हो रही है कि ये सीट परिवार के हाथ से छूट नहीं जाए, लेकिन नेताजी के एक भाई की करतूत सबको मालूम है, जिन्होंने उनके कार्यकाल में लोगों के ठेले-गुमटी लगवाकर खूब वसूली की और अब भी कर रहे हैं। देखते हैं पार्टी ऐसे को टिकट देती है या?


बैकफुट पर आ गए स्मार्ट पार्षद पति
निगम परिषद की अंतिम बैठक में अपने पिता की स्मृति में मार्ग का नामकरण करवाने वाले एक पार्षद पति बैकफुट पर आ गए। बिना किसी जानकारी के उन्होंने परिषद में प्रस्ताव तो पास करवा लिया, लेकिन उस मार्ग का नाम पहले से ही महाराणा प्रताप के नाम पर निकला। राजपूतों ने विरोध के स्वर बुलंद कर दिए हैं। पार्षद पति तथा पूर्व पार्षद बचाव की मुद्रा में आ गए हैं। उनका कहना है कि इसकी जानकारी नहीं थी कि इस मार्ग का नामकरण पहले से ही हो चुका है।

गौरव की गैरमौजूदगी में रेसीडेंसी में मीटिंग?
करीब 17 दिनों बाद दीनदयाल भवन ( Deendayal Bhavan) की सीढिय़ां चढ़े भाजपा नगर अध्यक्ष गौरव रणदिवे (Gaurav Ranadive) को मालूम पड़ा कि उनकी गैरमौजूदगी में रेसीडेंसी कोठी में एक बार शहर के एक बड़े नेता तो दूसरी बार मंत्रीजी की मौजूदगी में अफसरों की कोरोना को लेकर बैठक हुई। हालांकि दोनों बैठक के विषय अलग-अलग थे, फिर भी देखने और सुनने वालों ने गौरव तक खबर पहुंचा दी कि वहां क्या-क्या हुआ। गौरव ने सार्वजनिक नाराजगी तो जाहिर नहीं की, लेकिन क्राइसिस मैनेजमेंट कमेटी की बैठक में जिस तरह से वे पीछे रहे और मीडिया के सामने न आकर सांसद शंकर लालवानी को आगे कर निकल गए, उससे लग रहा है कि कहीं न कहीं ये दोनों बैठक उनके दिमाग में तो खटक रही है।

सदाशिव ने अब पकड़ी गांव की राह
सदाशिव यादव (Sadashiv Yadav) गांव की कांग्रेस के अध्यक्ष हैं, लेकिन जब तक सत्ता में कांग्रेस थी तब शहर में सक्रिय थे, लेकिन अब शहर में होने वाले कार्यक्रमों में वे कम ही नजर आ रहे हैं। बताया जा रहा है कि शहर में ज्यादा चलती न देख उन्होंने अब गांव की राह पकड़ ली है और गांव की राजनीति में ही सक्रिय हो गए हैं। पूछो तो कहते हैं कि ग्रामीण क्षेत्र में कांग्रेस को मजबूत करने में लगे हुए हैं। हालांकि ग्रामीण क्षेत्र में तो कांग्रेस का ही दबदबा है, लेकिन यादवजी अपनी जड़े भी मजबूत करने में लगे हैं।

मिठाई के डिब्बे तक बनवा लिए दावेदार ने
चुनाव भले ही टल गए हो, लेकिन सामान्य वार्ड से पत्नी को लड़ाने की इच्छा रखने वाले एक कांगे्रसी ने इस बार दिवाली पर मिठाई और रंग के डिब्बे बनवाकर बड़े नेताओं को भिजवाए। वैसे नेताजी पत्नी को तीन नंबर विधानसभा से इसलिए टिकट की प्रबल दावेदार बता रहे हैं, क्योंकि वे पूर्व विधायक अश्विन जोशी के नजदीकियों में गिने जाते हैं। हालांकि जिस वार्ड से लडऩे का वो दावा कर रहे हैं, वहां कुछ दूसरे और कद्दावर कांग्रेसियों की भी नजर है जो अपनी पत्नी या बहू को लड़वाना चाह रहे हैं।


जल्दी कर दी कांगे्रसियों ने, भाजपा ने ले लिया श्रेय
शहर में जब होली दहन की बात आई तो जिला प्रशासन सख्त था। यहां तक कि क्राइसिस मैनेजमेंट कमेटी (Crisis Management Committee ) की बैठक में शहर में बढ़ते कोरोना संक्रमण को लेकर कलेक्टर और अधिकारियों ने सदस्यों को मना लिया था और प्रतिबंध के आदेश जारी हो गए थे। भाजपा नेता चुप थे, लेकिन उमेश शर्मा मुखर हुए, उसके बाद सुबह कैलाश विजयवर्गीय के ट्वीट ने आग में घी का काम किया। कांग्रेसी मांजा सूतकर बैठ गए कि अब इसका विरोध करना ही है। दोपहर तक ये आग पूरे शहर में फैल गई थी कि भाजपा सरकार हिन्दू विरोधी काम कर रही है और त्यौहार नहीं मनाने दे रही है। कांग्रेसियों ने इसे सोशल मीडिया पर खूब भुनाया, लेकिन जब रेसीडेंसी कोठी में कलेक्टर से मिलने गए तो कलेक्टर ने उन्हें समझा दिया कि अनुमति संभव नहीं तो उन्होंने हां में हां मिला दी, लेकिन भाजपा के नेता और जनप्रतिनिधियों ने भोपाल फोन घनघनाए और त्यौहार मनाने का आर्डर पास करवा लिया। कांग्रेसियों के पास अब हाथ मलने के लिए कुछ बचा भी नहीं था।

महापौर चुनाव लडऩे की आस रखने वाले कुछ लोग अब बिल्ली के भाग्य से छींका टूटने का रास्ता देख रहे हैं। उनको लग रहा है कि हाईकोर्ट में विचाराधीन याचिका में अगर फिर से आरक्षण का फैसला हुआ तो यह पद पिछड़ा पुरूष हो सकता है। -संजीव मालवीय

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