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ये पॉलिटिक्स है प्यारे

August 04, 2020


पटेलों की जुगलबंदी का राज
विधायक विशाल पटेल और राधेश्याम पटेल इन दिनों सांवेर विधानसभा में साथ देखे जा रहे हैं। हालांकि ये भाजपा में ही संभव होता है कि पार्टी दो परस्पर विरोधियों को एक साथ काम पर लगा देती है। अब ये कांगे्रस में भी हो रहा है और दोनों पटेल मंच साझा कर रहे हैं। इन्दौर के किसी नेता की ताकत तो इन दोनों को एक नहीं कर सकती थी, लेकिन कहने वाले कह रहे हैं कि भोपाल से इनको आदेश मिला है कि सांवेर में तुलसी सिलावट को हराने के लिए जो करना है करो और दोनों पटेल साथ घूम रहे हैं। वैसे कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए जबधुर विरोधी सत्तू पटेल और विशाल कांगे्रस के किसी कार्यक्रम में नजर आ जाएं। आखिर इसी को तो पॉलिटिक्स कहते है प्यारे…
चाचा गायब, भतीजे ने पकड़ा मैदान
मध्य क्षेत्र की दुकानों को खोलने का अभियान कांग्रेस ने क्या छेड़ा, भाजपा वालों को लगा कि सारा श्रेय कांग्रेसी नहीं ले लें, इसलिए ताबड़तोड़ आदेश जारी कराए। फिर मध्य क्षेत्र के बड़े-बड़े व्यापारी नेताओं की चुनाव में भी तो चिंता करते हैं। खैर विनय बाकलीवाल और संजय शुक्ला की जोड़ी के साथ भतीजे पिंटू जोशी भी नजर आए, लेकिन चाचा गायब रहे और अभी भी कहीं नजर नहीं आ रहे हैं। बात-बात पर मैदान पकडऩे वाले बाबा का क्षेत्र से गायब होना चर्चा का विषय बना है और अब क्षेत्र में जहां कांग्रेस नजर आती है वहां पिंटू जोशी खड़े दिखाई दे रहे हैं।
बेचारे पार्षद… मन की पीड़ा भी नहीं निकाल पाए
सांवेर उपचुनाव में काम देने भाजपा के पूर्व पार्षदों को दीनदयाल भवन बुलाया गया। वे अधिकारियों के रवैये से दु:खी थे और उनका कहना था अब तो कोई अधिकारीहमारे फोन भी नहीं उठाता। कुछ पार्षदों ने सोचा कि पार्टी अब हमारी सुनेगी, पर पार्टी संभालने वालों ने स्पष्ट कह दिया कि आपको जो काम दिया है उसमें मन लगाओ, बाकी हम देख लेंगे। कुछ बैठक के बाद बुदबुदाते रहे कि 5 साल जब पार्षद थे तब भी हमारी नहीं सुनी गई। हम तो काम करवाने ऐसे जाते थे जैसे हम जनप्रतिनिधि नहीं, बल्कि मस्टरकर्मी हों। पीड़ा यही थी कि पहले वहां नहीं बोल पाए और अब संगठन ने चुप करा दिया।
गौरव हो गए कलेक्टर
कांग्रेसियों को भाजपा नगर अध्यक्ष गौरव रणदिवे का शहर में होने वाले फैसलों की घोषणा करना हजम नहीं हो रहा है। पिछले दिनों कांग्रेसियों ने सोशल मीडिया पर गौरव रणदिवे को शहर का नया कलेक्टर बता दिया और कहा कि शहर के फैसले वे लेेते हैं। वैसे गौरव उस कमेटी के सदस्य हैं और जब मीडिया के सामने बात करने की बारी आती है तो कलेक्टर गौरव को आगे कर देते हैं। जब शंकर सामने होते हैं तो मीडिया के माइक उनकी ओर मुड़ जाते हैं, क्योंकि कलेक्टर साब पिछली कुछ मीटिंग से मीडिया के सामने बात करने से मना कर रहे हैं। वे कहते हैं मेरा काम ऑर्डर निकालना है।
दूसरे दिग्गी बन रहे हैं पटवारी
दिग्विजयसिंह का मीडिया प्रेम जगजाहिर है और मीडिया भी दिग्गी को देख टूट पड़ती है। अब यह काम जीतू पटवारी संभाल रहे हैं। किसी ना किसी विषय पर वे हर दिन ट्वीट तो करते ही हैं, लेकिन क्रिया की प्रतिक्रिया भी बहुत जल्दी कर देते हैं। अभी तो हर दिन वे बोल रहे हैं और मीडिया भी उनको खूब दिखा रहा है। जो जवाबदारी कमलनाथ ने पटवारी को सौंपी है, उसमें बोलना भी जरूरी है नहीं तो मतलब क्यां निकलेगा?

शुक्ला की इतनी सक्रियता तो सत्ता में भी नहीं थी
विधायक संजय शुक्ला की सक्रियता कुछ कांग्रेसियों की आंखों में खटक रही है। उनका कहना है कि 15 साल सरकार रही, लेकिन उनकी इतनी सक्रियता नहीं देखी। वे अपने विधानसभा क्षेत्र में जरूर घूमते थे, लेकिन अब 1 नंबर से बाहर वे अपना दायरा बना रहे हैं और यही कुछ बड़े नेताओं के पेट में मरोड़ पैदा कर रहा है। समझने वाले दिमाग पर जोर लगा रहे हैं कि शुक्ला का निशाना कहां जा रहा है?
चूल्हा-चौका छोड़ उतारा राजनीतिक अखाड़े में
31 जुलाई को वार्ड आरक्षण होने के बाद राजनीतिक पार्टियों के कई पुरुष नेताओं के अरमान ठंडे हो गए हंै। उनका वार्ड उनके मनमुताबिक आरक्षित नहीं हुआ और कई जगह महिला आरक्षण हावी रहा। जिन नेताओं के मुताबिक महिला आरक्षण हो गया है वे अब अपनी पत्नी को चुनावी अखाड़े में उतारने में लगे हैं। भाजपा के कुछ नेताओं ने तो अपनी श्रीमती को दीनदयाल भवन की सीढिय़ों तक पहुंचाकर मेल-मुलाकात बढ़ा दी है। कांग्रेसी जरूर पीछे हैं और वे अभी कोरोना के कारण रुके हुए हैं। वैसे गांधी भवन से ज्यादातर कांग्रेेसी इत्तेफाक नहीं रखते और जहां उन्हें धोक देना है वहां श्रीमती को ले जाने से परहेज नहीं कर रहे हैं।
भाजपा के वरिष्ठ नेता कृष्णमुरारी मोघे कल फिर पूर्व लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन के घर पहुंच गए। बताया गया कि ये सौजन्य भेंट थीं, लेकिन कई नेताओं की निगाहें इस भेंट पर लगी हुई है। इसके पहले भी भंवरसिंह शेखावत के विरोध का झंडा उठाने के बाद मोघे ताई से मिल चुके हैं और जो राजनीतिक खिचड़ी पक रही है, उसकी खुशबू बाहर तक नहीं आ रही है। भाजपा की राजनीति को समझने वाले समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर बार-बार ये क्या पक रहा है, जिसके परिणााम आने वाले समय में सामने आएंगे।

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