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मंत्री विजय शाह के विवादित बयान की जांच तीन सदस्यीय एसआईटी करेगी – सुप्रीम कोर्ट

May 19, 2025


नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि मंत्री विजय शाह के विवादित बयान (Controversial statement of Minister Vijay Shah) की जांच तीन सदस्यीय एसआईटी करेगी (Three-member SIT will Investigate) ।


भारतीय सेना की महिला अधिकारी कर्नल सोफिया कुरैशी पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने वाले मध्यप्रदेश सरकार में मंत्री कुंवर विजय शाह को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। सर्वोच्च न्यायालय ने शाह की ओर से मांगी गई माफी को “मगरमच्छ के आंसू” बताते हुए अस्वीकार कर दिया और मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय एसआईटी (विशेष जांच दल) के गठन के आदेश दिए हैं।

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा, “कभी-कभी माफ़ी सिर्फ बचने के लिए मांगी जाती है। आपने जिस तरह के भद्दे, अमर्यादित और विचारहीन शब्द बोले, वो एक मंत्री से नहीं बल्कि किसी जिम्मेदार नागरिक से भी अपेक्षित नहीं हैं।” कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि इस तरह के मामलों में सिर्फ माफी पर्याप्त नहीं, बल्कि न्यायिक जांच जरूरी है ताकि समाज में एक संदेश जाए कि लोकतंत्र में भाषा की भी एक लक्ष्मण रेखा होती है।

यह विवाद 11 मई को इंदौर जिले के महू में आयोजित हलमा कार्यक्रम में शुरू हुआ। मंच से बोलते हुए मंत्री विजय शाह ने कथित रूप से कहा : “उन्होंने कपड़े उतार-उतार कर हमारे हिंदुओं को मारा और मोदी जी ने उनकी बहन को उनकी ऐसी की तैसी करने उनके घर भेजा… हमारी बहनों को विधवा किया, तो अब उनकी जाति की बहन आकर उन्हें नंगा करके छोड़ेगी…”

यह टिप्पणी उस वक्त आई जब ऑपरेशन सिंदूर के तहत भारतीय सेना ने एक सीमापार मिशन को अंजाम दिया था, जिसके बाद कर्नल सोफिया कुरैशी, विंग कमांडर व्योमिका सिंह और विदेश विभाग के सचिव विक्रम मिसरी ने साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी। ऑपरेशन सिंदूर भारतीय सेना की एक साहसिक कार्रवाई थी, जिसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से एक बड़ी उपलब्धि माना गया। इस ऑपरेशन में महिला अफसरों की अग्रणी भूमिका थी, जिसे लेकर देशभर में गर्व और सम्मान की भावना दिखाई दी।

ऐसे में एक मंत्री द्वारा ऑपरेशन से जुड़ी किसी महिला अधिकारी पर अशालीन और जातीय-लैंगिक टिप्पणी को न केवल सेना, बल्कि समाज की गरिमा पर चोट माना गया। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एसआईटी में तीन वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी शामिल होंगे, जो इस मामले की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच करेंगे। एसआईटी का गठन ऐसे मामलों में दुर्लभ है और यह दिखाता है कि न्यायपालिका इस विषय को बेहद गंभीरता से ले रही है।

कांग्रेस ने इसे “भाजपा की महिला विरोधी मानसिकता” करार दिया है, वहीं भाजपा ने अभी तक कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है। हालांकि अंदरखाने में पार्टी नेतृत्व इस बयान से असहज बताया जा रहा है, क्योंकि यह मुद्दा अब राष्ट्रीय मंच पर पहुंच गया है और इससे सेना और महिला अधिकारी वर्ग की भावनाएं आहत हुई हैं।
यह मामला केवल एक विवादित बयान का नहीं, बल्कि लोकतंत्र में जवाबदेही और गरिमा की परीक्षा है। जब एक जनप्रतिनिधि अपनी शब्दों की मर्यादा खोता है, तो यह केवल व्यक्तिगत गलती नहीं होती, बल्कि वह व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह बन जाता है। सुप्रीम कोर्ट का यह रुख आने वाले समय में राजनीतिक अभिव्यक्ति की सीमाओं और जिम्मेदारी को लेकर मिसाल बन सकता है।

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