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पाकिस्तान को समझाने के लिए राजनाथ सिंह ने लिया भगवान कृष्ण का नाम, बोले- ‘आने वाले समय में…’

August 27, 2025

महू: मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) के महू (Mhow) स्थित आर्मी वॉर कालेज (Army War College) में युद्ध, युद्धकला और युद्ध संचालन पर दो दिवसीय विशिष्ट ट्राई-सर्विस सेमिनार, ‘रण संवाद-2025’ में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह (Rajnath Singh) ने आधुनिक युद्ध और तैयारियों को लेकर सरकार का विजन देश के सामने रखा है. राजनाथ सिंह ने कहा है कि भारत कभी पहले वॉर करने वाला देश नहीं रहा है, लेकिन कोई हमें चुनौती देता है, तो मजबूती से जवाब देना जरूरी हो जाता है.

राजनाथ सिंह ने अपने संबोधन में कहा, ”भारत कभी भी युद्ध को आमंत्रित करने वाला देश नहीं रहा. हमने कभी भी किसी के खिलाफ आक्रामकता शुरू नहीं की है. लेकिन मौजूदा स्थिति को देखते हुए हमें अपनी रक्षा तैयारियों को लगातार बढ़ाना होगा. यही कारण है कि प्रशिक्षण, तकनीकी प्रगति और भागीदारों के साथ निरंतर संवाद हमारे लिए बहुत जरूरी है.”

रक्षामंत्री ने अपने संबोधन में कहा, कि ”भविष्य के युद्ध केवल हथियारों से नहीं लड़ें जाएंगे. वे प्रौद्योगिकी, बुद्धिमत्ता, अर्थव्यवस्था और कूटनीति का संयुक्त खेल होंगे. आने वाले समय में, जो राष्ट्र प्रौद्योगिकी, रणनीति और अनुकूलन क्षमता के त्रिकोण में महारत हासिल करेगा, वही सच्ची वैश्विक शक्ति के रूप में उभरेगा.”


ऑपरेशन सिंदूर से सबक लेते हुए राजनाथ सिंह ने कहा कि देश की सेनाओं (थलसेना, वायुसेना और नौसेना) को इंफोर्मेशन और साइबर वॉरफेयर को लेकर भी कमर कसनी होगी. उन्होंने कहा कि ”सीधे शब्दों में कहें तो यह इतिहास से सीखने और नया इतिहास लिखने का समय है, यह भविष्य का अनुमान लगाने और उसे आकार देने का समय है. 21वीं सदी में, यह बदलाव और भी तेजी से हो रहा है. सैनिकों की संख्या या हथियारों के भंडार का आकार अब पर्याप्त नहीं है.”

उन्होंने कहा, ”आधुनिक युद्ध अब जमीन, समुद्र और हवा तक ही सीमित नहीं हैं, अब ये आउटर स्पेस और साइबर स्पेस तक भी फैल गए हैं. उपग्रह प्रणाली, एंटी-सैटेलाइट हथियार और अंतरिक्ष कमान केंद्र शक्ति के नए साधन हैं. इसलिए, आज हमें न केवल रक्षात्मक तैयारी की आवश्यकता है, बल्कि एक सक्रिय रणनीति की भी आवश्यकता है.”

रक्षा मंत्री ने कहा, ”रण-संवाद का ऐतिहासिक आधार है, यह मुझे हमारे इतिहास की कई घटनाओं की याद दिलाता है, जो दर्शाती हैं कि सभ्यतागत युद्धों में ‘रण’ और ‘संवाद’ एक दूसरे से जुड़े हुए हैं. हमारी संस्कृति में, संवाद युद्ध से अलग नहीं है. यह युद्ध से पहले होता है, युद्ध के दौरान होता है और युद्ध के बाद भी जारी रहता है. महाभारत का उदाहरण लें, युद्ध को रोकने के लिए भगवान कृष्ण शांति के दूत के रूप में गए. उन्होंने संवाद के जरिए युद्ध को टाले जाने की कोशिश की थी.”

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