
इंदौर। इंदौर नगर निगम द्वारा दो दिन पहले जिस बिल्डिंग को बम लगाकर उडऩे की कार्रवाई की गई उस बिल्डिंग को दी गई अनुमति में हुए भ्रष्टाचार का मामला अब गूंज रहा है। भवन निर्माता द्वारा आरोप लगाया गया कि निगम के क्षेत्र के इंजीनियर ने 5 लाख रुपए लिए थे और अब 15 लाख रुपए मांग रहे थे। यह मांग पूरी नहीं की गई, इसलिए निगम द्वारा बिल्डिंग तोड़ दी गई। इस बिल्डिंग का नक्शा भी निगम द्वारा मंजूर किया गया था। उधर, महापौर परिषद के सदस्य निगम आयुक्त पर भ्रष्ट अफसर को उपकृत करने के आरोप लगा रहे हैं तो दूसरी तरफ नेता प्रतिपक्ष जिम्मेदार इंजीनियरों का निलंबन मांग रहे हैं।
निगम द्वारा योजना क्रमांक 54 पीयू-4 में नाले से 9 मीटर की दूरी के दायरे में बनाई गई चार मंजिला बिल्डिंग को पहले तो पोकलेन के माध्यम से तोड़ा गया, फिर बाद में बम लगाकर ध्वस्त कर दिया गया। निगम की यह कार्रवाई विवादों में आ गई है। इस मामले में निगम आयुक्त द्वारा कदम उठाते हुए इस बिल्डिंग के जोनल कार्यालय के क्षेत्र में तैनात भवन अधिकारी और भवन निरीक्षक को वहां से हटाकर अन्य स्थान पर पदस्थ कर दिया गया है। आयुक्त के इस कदम से कोई भी संतुष्ट नहीं है।
महापौर परिषद के सदस्य एवं भवन अनुज्ञा शाखा के प्रभारी राजेश उदावत ने प्रदेश के नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय को चि_ी लिखकर कहा है कि गलत तरीके से इस भवन का नक्शा मंजूर करने वाले इंजीनियर असित खरे को ही अब इस जोनल कार्यालय पर पदस्थ कर दिया गया है। भवन अधिकारी मुख्यालय के रूप में उनके द्वारा ही यह गलत नक्शा पास किया गया था। अब जरूरी है कि उनके और इस बिल्डिंग के कंसल्टेंट इंजीनियर के खिलाफ कार्रवाई की जाए। निगम में नेता प्रतिपक्ष चिंटू चौकसे ने इस मामले में इस जोनल कार्यालय के भवन अधिकारी और भवन निरीक्षक को निलंबित कर उनके खिलाफ विभागीय जांच करने के लिए आवाज उठाई है। उनका कहना है कि इंजीनियरों को जोनल कार्यालय से हटकर अन्य स्थान पर तैनात कर देना कोई कार्रवाई नहीं है, बल्कि पूरे मामले की गड़बड़ी से ध्यान हटाने की कोशिश है।
फिर चर्चा में है विभाग
निगम का भवन अनुज्ञा विभाग एक ऐसा विभाग है, जहां पर हर गलत काम को सही तरीके से करने का हुनर अधिकारियों के पास है। यह विभाग एक बार फिर चर्चा में आ गया है। ऐसे न जाने कितने भ्रष्टाचार के मामले इस विभाग के उजागर होकर सामने आते रहते हैं। हमेशा हर मामले पर कुछ दिन चर्चा होती है और फिर मामला ठंडे बस्ते में चला जाता है।
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