
डेस्क: दुनिया के महासागरों (Oceans) में अपार खजाना छिपा हुआ है. वैज्ञानिकों (Scientists) के अनुसार, समुद्र (Sea) के पानी (Water) में लगभग 2 करोड़ टन सोना (Gold) घुला हुआ है. हर 10 करोड़ मीट्रिक टन समुद्री जल में एक ग्राम सोना पाया जाता है. इस वजह से सोने की मात्रा बेहद सूक्ष्म है, लेकिन जब इसे वैश्विक स्तर (Global Level) पर देखा जाए तो इसका मूल्य खरबों डॉलर (Trillions of Dollars) में आंका जाता है. अनुमानों के अनुसार, समुद्र में मौजूद सोने की कीमत लगभग 2000 अरब डॉलर हो सकती है, लेकिन सवाल यह है कि अगर इतना सोना है तो हम इसे क्यों नहीं निकाल पाते?
महासागरों में सोने की मौजूदगी प्राकृतिक कारणों से हुई है. बारिश और नदियां चट्टानों को घिसती हैं और उनमें मौजूद सोना समुद्र तक पहुंचता है. समुद्र तल पर हाइड्रोथर्मल वेंट खनिज और गर्म पानी छोड़ते हैं, जिनसे सोना पानी में घुल जाता है. समुद्री ज्वालामुखी गतिविधियां भी इसमें योगदान देती हैं. हजारों वर्षों से यही प्रक्रिया जारी है.
वैज्ञानिकों ने कई बार समुद्र से सोना निकालने के प्रयोग किए हैं. 1941 में एक विद्युत-रासायनिक विधि सुझाई गई थी, लेकिन इसकी लागत सोने की कीमत से कई गुना अधिक थी. 2018 में एक नई तकनीक बताई गई थी जिसमें एक विशेष पदार्थ सोना सोख लेता है, लेकिन इसे बड़े पैमाने पर लागू करना आज भी संभव नहीं है. समुद्री पानी के एक लीटर में केवल 1 नैनोग्राम से भी कम सोना मिलता है. इतनी सूक्ष्म मात्रा को अरबों लीटर पानी से अलग करना बेहद कठिन और महंगा है. यही कारण है कि यह खनन आज की स्थिति में लाभकारी नहीं है.
तकनीक के विकास के बावजूद समुद्री पानी से सोना निकालना आर्थिक रूप से व्यावहारिक नहीं है. भविष्य में यदि नैनो-टेक्नोलॉजी और रासायनिक इंजीनियरिंग में क्रांतिकारी बदलाव आते हैं, तो यह प्रक्रिया आसान हो सकती है. तब यह खनन सोने की वैश्विक आपूर्ति और मूल्य निर्धारण पर गहरा असर डालेगा, लेकिन अभी यह केवल वैज्ञानिक कल्पना और शोध का विषय है.
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