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आदिवासी हैं तो क्या कुछ भी करेंगे, हमें सब पता है; सुप्रीम कोर्ट में मिलॉर्ड को क्यों कहना पड़ा ऐसा?

September 09, 2025

नई दिल्‍ली । उच्चतम न्यायालय(Supreme Court) ने सोमवार को एक महिला के संपत्ति के अधिकार(Property rights) से वंचित (Deprived)किए जाने को लेकर उसके ससुरालवालों को जमकर फटकार(fierce reprimand) लगाई है। पति के गुजर जाने के बाद ससुराल वालों ने अपने बेटे की जीवन बीमा पॉलिसी से जुड़े पैसे को हड़पने के लिए उसकी विधवा को ससुराल से निकाल दिया था। ससुराल वालों पर विधवा के साथ मारपीट करने का भी आरोप है।


जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने इस मामले में अग्रिम जमानत की मांग करने वाले याचिकाकर्ताओं से कहा, ‘‘आपने इस गरीब विधवा को उसके पति की मृत्यु के बाद घर से निकाल दिया सिर्फ उसकी संपत्ति हड़पने के लिए। आपने उसके पति के नाम से की गई जीवन बीमा पॉलिसी के पैसे हड़प लिए। अब आप गरीब आदिवासी होने का दावा कर रहे हैं। यह स्वीकार नहीं किया जाएगा।’’ जस्टिस सूर्याकांत ने आगे कहा, ‘‘ये लोग सोचते हैं कि आदिवासी होने के नाते वे कुछ भी कर सकते हैं। हम जानते हैं कि इन ग्रामीण इलाकों में क्या होता है।’’

शीर्ष अदालत ने विधवा के ससुराल वालों द्वारा प्रस्तुत एक बयान को रिकॉर्ड में लिया, जिसमें महिला के नाम पर संपत्ति वापस दिलाने का आश्वासन दिया गया था। अदालत ने कहा, ‘‘हम इस याचिका के साथ-साथ आरोपियों को दी गई नियमित जमानत को भी पूरी तरह से खारिज कर देते और राज्य पुलिस को उन्हें गिरफ्तार करने का निर्देश देते, लेकिन बयान के एक पैराग्राफ में दिए गए आश्वासन के कारण ऐसा नहीं हो सका। याचिकाकर्ता और उसके सह-आरोपियों को एक सप्ताह के भीतर आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दिया जाता है; ऐसा न करने पर गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।’’

सुप्रीम कोर्ट ने आरोपियों के खिलाफ 5,000-5,000 रुपये के जमानती वारंट जारी करने का निर्देश दिया है और झारखंड के लातेहार के पुलिस अधीक्षक को अगली सुनवाई से पहले वारंट तामील करके अनुपालन रिपोर्ट पेश करने को कहा। पीठ ने मामले की सुनवाई की अगली तारीख 15 सितंबर तय करते हुए याचिकाकर्ता बीरेंद्र उरांव की जमानत अवधि एक हफ्ते के लिए बढ़ाने का निर्देश दिया।

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