
नई दिल्ली: उद्योग अधिकारियों (Industry Officials) ने बताया कि खाद्य, समुद्री और कपड़ा सहित विभिन्न क्षेत्रों के भारतीय निर्यातकों ने 25 प्रतिशत ट्रम्प शुल्क से निपटने के लिए सरकार से वित्तीय सहायता और किफायती ऋण की मांग की है. उन्होंने बताया कि मुंबई में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल के साथ बैठक में कुछ निर्यातकों ने उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन (पीएलआई) जैसी योजनाओं की मांग की.
एक अधिकारी ने कहा, निर्यातकों ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा घोषित उच्च शुल्क के कारण अमेरिकी बाजार में आने वाली समस्याओं पर अपनी राय रखी. उन्होंने आगे बताया कि मंत्री ने सुझाव दिया है कि निर्यातक समुदाय अपने सुझाव लिखित रूप में भेजें. उन्होंने सस्ती दरों पर ऋण और राजकोषीय प्रोत्साहन की भी मांग की.
निर्यातकों के अनुसार, भारत में ब्याज दरें आठ से 12 प्रतिशत या उससे भी अधिक होती हैं. प्रतिस्पर्धी देशों में, ब्याज दर बहुत कम है. उदाहरण के लिए, चीन में केंद्रीय बैंक की दर 3.1 प्रतिशत, मलेशिया में तीन प्रतिशत, थाईलैंड में दो प्रतिशत और वियतनाम में 4.5 प्रतिशत है. उन्होंने कहा कि परिधान और झींगा जैसे क्षेत्रों की स्थिति अच्छी नहीं है. अमेरिकी खरीदारों ने ऑर्डर रद्द करना या रोककर रखना शुरू कर दिया है. आने वाले महीनों में, इसका असर अमेरिका को भारत के निर्यात पर पड़ सकता है, और निर्यात में गिरावट के कारण, नौकरियां जा सकती हैं.
साथ ही, उन्होंने यह भी कहा कि सरकार के लिए राजकोषीय प्रोत्साहन देना मुश्किल होगा. इस सप्ताह घोषित 25 प्रतिशत शुल्क सात अगस्त (भारतीय समयानुसार सुबह 9.30 बजे) से लागू होगा. यह शुल्क अमेरिका में मौजूदा मानक आयात शुल्क के अतिरिक्त होगा. इस उच्च कर का खामियाजा जिन क्षेत्रों को भुगतना पड़ेगा, उनमें कपड़ा/वस्त्र (10.3 अरब डॉलर), रत्न एवं आभूषण (12 अरब डॉलर), झींगा (2.24 अरब डॉलर), चमड़ा एवं जूते-चप्पल (1.18 अरब डॉलर), रसायन (2.34 अरब डॉलर), और विद्युत एवं यांत्रिक मशीनरी (लगभग नौ अरब डॉलर) शामिल हैं. भारत के चमड़ा और परिधान निर्यात में अमेरिका की हिस्सेदारी 30 प्रतिशत से अधिक है.
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