
उज्जैन। आज विश्व पर्यावरण दिवस पर शहर के जिम्मेदारों को सोचना होगा कि शहर भट्टी की तरह तपने लगा है और तापमान में पिछले 25 वर्षों के दौरान 4 डिग्री का उछाल आया है। पहले 40 डिग्री से ज्यादा तापमान नहीं होता था। आज विश्व पर्यावरण दिवस है। पर्यावरण को ठीक करने के लिए पेड़ पौधे लगाए जा रहे हैं लेकिन सबसे बड़ी समस्या शहर में सीमेंट कंक्रीट बना हुआ है, इससे पिछले 25 वर्षों में तापमान में बढ़ोतरी हुई है वही कई अन्य समस्याएं भी उत्पन्न हो रही है। विश्व पर्यावरण दिवस पर आज शहर में जगह-जगह पौधे लगाने का अभियान चलाया जा रहा है लेकिन शहर का पर्यावरण बिगडऩे का सबसे बड़ा कारण शहर की और गलियों तक की सड़कों को सीमेंट कांंक्रीट कर दिया गया है और शहर में कच्ची जमीन मुश्किल से ही बची है।
सीमेंट कांक्रीट से वर्षा का जल जमीन के अंदर नहीं जा पाता है, इसके चलते शहर में भूजल रिचार्ज की समस्या भी बढ़ रही है। नई कालोनियां जो विकसित की जा रही है, उनमें जितने मकान बन रहे हैं उतने बोरिंग किए जा रहे हैं, लेकिन रिचार्ज सिस्टम वाटर हार्वेस्टिंग के काम नहीं किए जा रहे हैं। इसके चलते शहर का भूजल स्तर लगातार गिर रहा है। वर्तमान में ही कई इलाकों में अंदर पानी साढ़े 300 फीट के बाद ही मिल पा रहा है जबकि पहले उज्जैन में बोरिंग कराते थे तो पानी मात्र डेढ़ सौ फीट के अंदर ही मिल जाता था। सीमेंट कांक्रीट से एक बड़ा नुकसान तापमान बढऩे का भी हो रहा है। 25 साल पहले उज्जैन में अधिकतम तापमान गर्मी में 40 डिग्री के आसपास रहता था जो अब वर्तमान में 45 डिग्री के आसपास पहुंच गया है। ऐसा ही रहा तो मालवा में वह दिन दूर नहीं जब राजस्थान जैसे हालात बन जाएंगे। पर्यावरण को सुधारने के 2-3 तरीके हैं जिनमें एक से अधिक पौधारोपण दूसरा वाटर रिचार्जिंग सिस्टम तैयार करना मुख्य बिंदु है। यदि यह नहीं किए गए तो आने वाले दिनों में तकलीफ भोगना पड़ सकती है। बात उज्जैन की की जाए तो सीमेंट कांक्रीट के अलावा यहां जल प्रदूषण भी पर्यावरण को बिगाड़ता है। रोड देवास का पूरा औद्योगिक अपशिष्ट कान्ह नदी के माध्यम से शिप्रा में मिलता है और शिप्रा की हालत बदतर हो गई है। नर्मदा का पानी यदि उज्जैन नहीं लाया जाए तो शिप्रा नदी एक नाले में तब्दील हो सकती है। इसके अलावा शहर के हर कोने पर पहाड़ खोदकर खनिज निकाले जा रहे हैं। पहाड़ों के विलुप्त होने से भी शहर का पर्यावरण खराब होता है। शहर के चारों ओर बडऩगर रोड पर धरमबड़ला हो या आगर रोड पर नजरपुर या जैथल तथा देवास रोड पर अभिलाषा के सामने वाली पहाड़ी हो, सभी जगह खनन का काम चल रहा है और इस खनन से यह पहाडिय़ाँ विलुप्त हो रही हैं, इससे भी शहर में हवाएं सीधी प्रवेश करेंगी और तापमान को प्रभावित करती है।
उज्जैन का शबे मालवा मौसम भी गायब हुआ
पहले कहा जाता है कि मालवा का पठार दिन में तपता है और रात में ठंडक हो जाती है, इसलिए यहाँ शबे मालवा कहा जाता था लेकिन अब रात में भी लू जैसे थपेड़े चल रहे हैं। इस कारण पर्यावरण को तेजी से नुकसान पहुँच रहे हैं..हमारे यहाँ के पौधा लगाने वाले सामाजिक संगठनों के पदाधिकारी फोटो खिंचाऊ है, पौधा लगाते वक्त बैनर टांग देते हैं और इसके बाद झांकने भी नहीं जाते। प्रेसनोट छाप ऐसे संगठन उज्जैन में सैकड़ों हैं लेकिन ईमानदार जिम्मेदारी से काम नहीं करते।
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