
लखनऊ। उत्तर प्रदेश सरकार (Uttar Pradesh Government) द्वारा जाति आधारित राजनीतिक रैलियों (Caste-based political rallies), गाड़ियों पर जाति नाम लिखने और पुलिस रिकॉर्ड में जाति उल्लेख पर लगाए गए प्रतिबंध ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) (Bharatiya Janata Party – BJP) के सहयोगी दलों को असमंजस में डाल दिया है। रविवार रात जारी इस आदेश के बाद जहां भाजपा इसे सामाजिक समानता की दिशा में ऐतिहासिक कदम बता रही है, वहीं उसके सहयोगी दल निषाद पार्टी, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) और अपना दल इससे असहज महसूस कर रहे हैं।
निषाद पार्टी जो मुख्यतः निषाद या मछुआरा समाज पर आधारित है, के अध्यक्ष संजय निषाद ने इस फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा, “हमेशा से जातियों का गौरवशाली इतिहास रहा है। अगर जाति नहीं लिखेंगे तो पहचान कैसे होगी?” उन्होंने यहां तक संकेत दिए कि पार्टी इस आदेश के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटा सकती है।
इसी तरह अपना दल के एक वरिष्ठ नेता ने भी इस निर्णय को पूरी तरह स्वीकार्य न मानते हुए जाति-आधारित कार्यक्रम आयोजित करने के नए रास्ते खोजने की बात कही। सुभासपा और अपना दल दोनों का मानना है कि उनकी राजनीति मुख्यतः पिछड़े और वंचित वर्गों के सशक्तिकरण पर आधारित है, और यही उनका परंपरागत वोटबैंक भी है।
सहयोगी दलों का यह भी कहना है कि 2022 विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा ने खुद विभिन्न जातियों के नेताओं और समुदायों से संपर्क साधने के लिए जाति-आधारित बैठकें आयोजित की थीं। ऐसे में 2024 लोकसभा चुनाव से पहले इस तरह का प्रतिबंध एनडीए की जातीय समीकरणों को प्रभावित कर सकता है।
इधर, समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भाजपा पर हमला बोलते हुए सवाल उठाया, “5,000 वर्षों से लोगों के दिमाग में बैठी जातिगत मानसिकता को खत्म करने के लिए क्या कदम उठाए जाएंगे? जाति के नाम पर अपमान और झूठे आरोपों का क्या होगा?”
वहीं, भाजपा की ओर से प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी ने इस निर्णय को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि यह समाज से जातिवाद समाप्त करने और उच्च न्यायालय के आदेश का पालन करने के लिए जरूरी था। उन्होंने कहा, “भाजपा समानता और सामाजिक न्याय में विश्वास करती है। हमारे सहयोगी दलों की अपनी राय हो सकती है, लेकिन वे गठबंधन का हिस्सा हैं, भाजपा का हिस्सा नहीं।”
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