
वाशिंगटन। अमेरिका (America) में 20 जनवरी को नई सरकार (New government) ने अपना काम शुरू कर दिया है। चार साल के अंतराल के बाद डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) एक बार फिर सत्ता में लौट आए हैं। सत्ता में वापसी के बाद डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) आक्रामक अंदाज में नजर आ रहे हैं। ट्रंप ने बीते कुछ दिनों में कई देशों पर देरिफ लगाने की बात कही है, वहीं, ब्रिक्स देशों (BRICS countries) पर भी उन्होंने निशाना साधा है। वहीं, अब ट्रंप स्कूलों में यहूदी विरोधी भावना (Anti-Semitism) को निशाना बना रहे हैं। इसे लेकर विशेषज्ञों ने चिंता जाहिर की है। उन्हें डर है कि राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा किए जा रहे परिवर्तनों का प्रभाव सबसे अधिक काले छात्रों और विकलांग लोगों पर पड़ेगा। दक्षिण कैरोलिना विश्वविद्यालय में कानून के प्रोफेसर डेरेक डब्ल्यू ब्लैक का कहना है कि नागरिक अधिकार कार्यालय ने हमेशा से हाशिए पर रहने वाले छात्रों के लिए काम किया है, लेकिन अब ट्रंप सरकार की प्राथमिकताएं बदल रही हैं।
ये ट्रंप के एजेंडे में
दरअसल, अमेरिका के स्कूलों में नागरिक अधिकारों को लागू करने वाले संघीय कार्यालय को आदेश दिया गया है कि वह यहूदी विरोध की शिकायतों का निपटारा सबसे पहले करे। क्योंकि यह राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के एजेंडे में शामिल है। ट्रंप के इस आदेश के बाद यह डर पैदा हो गया है कि नस्ल और लिंग-भेद को बढ़ावा मिलेगा।
इस्राइल पर हमास के हमले के बाद दर्ज किए गए सभी यहूदी विरोध के मामले फिर से खोले जाएंगे
नागरिक अधिकार कार्यालय (ओसीआर) कार्यवाहक सहायक सचिव क्रेग ट्रेनर के साथ फोन पर बात करने वाले एक सूत्र ने बताया कि ट्रंप के शिक्षा विभाग के ओसीआर ने इस सप्ताह कर्मचारियों से कहा कि उनसे यहूदी विरोधी भावना से जुड़ी शिकायतों का आक्रामक ढंग से निपटारा करने की उम्मीद की जाएगी।
इसमें ट्रेनर ने कहा कि ओसीआर को पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडन के शासनकाल की तुलना में अधिक आक्रामक और तेज़ होना चाहिए। उन्होंने पिछले प्रशासन पर यहूदी विरोधी भावना से लड़ने के अपने कर्तव्य की उपेक्षा करने का आरोप लगाया। इसके चलते करीब 100 से अधिक मामलों का निपटारा नही हो पाया। बता दें कि ट्रंप ने 7 अक्टूबर, 2023 को इस्राइल पर हमास के हमले के बाद दर्ज किए गए सभी यहूदी विरोधी मामलों की समीक्षा करने का आह्वान किया है। इसमें जो बाइडन के समय में हल किए गए मामले भी शामिल हैं।
बीते सप्ताह दिया था ये आदेश
गौरतलब है कि बीते सप्ताह डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी स्कूलों में यहूदी विरोध और ऐसी शिक्षा पर रोक लगाने का आदेश दिया था, जो नस्ल और लिंग-भेद को बढ़ावा देती है। ट्रंप ने बीते बुधवार को इस आदेश पर हस्ताक्षर किए थे। बता दें कि इस्राइल हमास युद्ध के दौरान अमेरिका के कई स्कूलों और विश्वविद्यालयों में यहूदी विरोधी घटनाएं देखने को मिलीं। कुछ विश्वविद्यालयों में बड़े पैमाने पर इस्राइल के खिलाफ विरोध प्रदर्शन भी हुए।
व्हाइट हाउस के इस आदेश के जवाब में ओसीआर ने कोलंबिया और नॉर्थवेस्टर्न सहित पांच विश्वविद्यालयों में एक नई यहूदी विरोधी जांच शुरू की थी। सूत्रों ने बताया कि नया प्रशासन लगातार प्राथमिकताएँ बदल रहा है। ऐसे में फिलहाल दैनिक कार्य रोक दिया गया है। स्कूलों, कॉलेजों या शिकायत दर्ज कराने वालों के साथ वार्ता पर नए प्रतिबंध लगा दिए गए हैं।
इस बात का सता रहा डर
यहूदी विरोधी भावना और लैंगिक पहचान पर सख्ती के साथ ध्यान केंद्रित करने के ट्रंप प्रशासन के फैसले को लेकर विशेषज्ञों ने चिंता जाहिर की है। उन्हें डर है कि अब ओसीओआर नस्लीय भेदभाव और विकलांगता के आधार पर दुर्व्यवहार या इस्लामोफोबिया पर पर्याप्त ध्यान नहीं देगा। कार्यालय को अपने क्षेत्र में आने वाली सभी शिकायतों पर कार्रवाई करनी होती है, लेकिन राजनीति प्राथमिकताएं इनमें से यह तय करने और चुनने में आड़े आ सकती है कि किन मामलों को आगे बढ़ाया जाए।
डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के समय में कार्यालय का नेतृत्व करने वाले रेमंड पियर्स ने भी इस पर चिंता जाहिर की है। उन्होंने कहा कि केवल यहूदी विरोधी भावना पर ध्यान केंद्रित करने से मिशन पूरा नहीं होता। समग्र नागरिक अधिकार कानूनों को लागू करना चाहिए। उन्होंने कहा कि यहूदी विरोध एक मुद्दा हो सकता है, लेकिन नागरिक अधिकार अधिनियम सिर्फ धर्म से ज्यादा व्यापक है। इसके अलावा विशेषज्ञों को इस बात की भी चिंता है कि शिक्षा विभाग में मस्क के सरकारी दक्षता विभाग की जांच के बाद कर्मचारियों की संख्या में कटौती की जा सकती है। इसके अलावा, बजट में कटौती का भी डर है।
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