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भारतीय किसानों की सब्सिडी के खिलाफ अमेरिकी सांसद, बाइडेन से कहा, WTO में बातचीत करें

July 03, 2022

वॉशिंगटन । भारत (India) में सरकार की तरफ से किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी का अमेरिका (America) के रिपब्लिकन सांसदों ने विरोध किया है. उन्होंने राष्ट्रपति जो बाइडन (President Joe Biden) को लेटर लिखकर कहा है कि भारत की तरफ से दी जाने वाली कृषि सब्सिडी (agricultural subsidy) की वजह से वैश्विक कारोबार पर असर पड़ रहा है और अमेरिका के किसानों को नुकसान हो रहा है.

जानकारी के अनुसार, इन सांसदों ने बाइडन से कहा है कि वह भारत के खिलाफ इस मुद्दे को विश्व व्यापार संगठन (WTO) में उठाएं. हालांकि जानकारों का मानना है कि अमेरिका में जल्द ही प्रतिनिधि सभा (हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव्स) के चुनाव होने हैं, उसी को देखते हुए ये सांसद अपने यहां किसानों को लुभाने की कवायद कर रहे हैं. भारत सब्सिडी की तुलना के डब्लूटीओ के नियम पर ही सवाल उठाता रहा है और उलटे अमेरिका पर आरोप लगाता रहा है.


एचटी की रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी कांग्रेस के 12 रिपब्लिकन सांसदों ने बाइडन को लिखे पत्र में आरोप लगाया है कि भारत कृषि सब्सिडी के मामले में डब्लूटीओ के नियमों के अनुसार नहीं चलता. ये नियम कहते हैं कि किसी खास उत्पाद या निर्यात होने वाले उत्पादों पर 10 फीसदी से ज्यादा सब्सिडी नहीं दी जा सकती. लेकिन भारत गेहूं और चावल जैसी चीजों पर 50 फीसदी से ज्यादा सब्सिडी देता है. ऐसे में इस मुद्दे को डब्लूटीओ में उठाया जाए. ये लेटर लिखने वाले 12 सांसदों में 10 ऐसे हैं, जो इलाकों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जहां खेती काफी ज्यादा होती है. बाकी 2 सांसदों को कैलिफोर्निया की किसान लॉबी का समर्थक माना जाता है.

दरअसल, भारत की कृषि सब्सिडी अमेरिका के साथ व्यापार में लंबे समय से विवाद का विषय रही है. भारत का कहना है कि प्रति व्यक्ति के नजरिए से देखा जाए तो भारत से कहीं ज्यादा अमेरिका अपने किसानों को सपोर्ट देता है. एचटी के अनुसार, जेएनयू में प्रोफेसर और व्यापार मामलों के एक्सपर्ट बिश्वजीत धर कहते हैं कि अमेरिकी प्रशासन डब्लूटीओ के एग्रीमेंट ऑन एग्रीकल्चर के नियमों के तहत भारतीय सब्सिडी की गणना करके भेदभाव का आरोप लगाते हैं. असल बात ये है कि इन नियमों के तहत मौजूदा समय में सरकार द्वारा घोषित कीमतों की तुलना 1986-88 के कृषि उत्पादों की अंतरराष्ट्रीय कीमतों से तुलना की जाती है. तीन दशक पुरानी कीमतों को मानक मानना अपने आप में बहुत गलत तरीका है. उन्होंने बताया कि भारत डब्लूटीओ में लगातार इस बात को उठाता रहा है कि इस तरीके को बदला जाना चाहिए और मौजूदा संदर्भ के मुताबिक तय किया जाना चाहिए.

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