
डेस्क: दुनिया की दो महाशक्तियों के बीच तनाव एक बार फिर चरम सीमा पर पहुंच गया है. मामला ताइवान (Taiwan) का है, लेकिन इसकी तपिश वाशिंगटन (Washington) से लेकर बीजिंग (Beijing) तक महसूस की जा रही है. अमेरिका (America) ने जैसे ही ताइवान को हथियारों का एक विशाल जखीरा देने का फैसला किया, चीन (China) का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया.चीन ने जवाबी कार्रवाई करते हुए अमेरिका की बड़ी-बड़ी डिफेंस कंपनियों के दरवाजे अपने यहां हमेशा के लिए बंद करने का फरमान सुना दिया है.
चीन ने जो कदम उठाया है, वह बेहद सख्त और व्यापक है. अमेरिका की 20 डिफेंस कंपनियां और 10 बड़े अधिकारी अब चीन की ‘ब्लैकलिस्ट’ में डाल दिए गए हैं. इन प्रतिबंधित कंपनियों की लिस्ट में विमान बनाने वाली मशहूर कंपनी बोइंग (Boeing) की सेंट लुइस ब्रांच का नाम सबसे ऊपर है. इसके अलावा, नॉर्थ्रॉप ग्रुम्मन सिस्टम्स कॉर्पोरेशन (Northrop Grumman Systems Corporation) और एल3 हैरिस मैरीटाइम सर्विसेज (L3 Harris Maritime Services) जैसी दिग्गज कंपनियों पर भी गाज गिरी है.
रिपोर्ट के मुताबिक, चीनी विदेश मंत्रालय ने साफ कर दिया है कि यह सिर्फ कागजी कार्रवाई नहीं है. इन कंपनियों और व्यक्तियों की चीन में मौजूद हर तरह की संपत्ति को फ्रीज (जब्त) कर दिया जाएगा. इसका सीधा मतलब है कि इनका पैसा और प्रॉपर्टी सब ब्लॉक हो जाएगा. साथ ही, चीन का कोई भी घरेलू संगठन या व्यक्ति इनके साथ किसी भी तरह का व्यापार नहीं कर सकेगा. सख्ती इतनी ज्यादा है कि डिफेंस फर्म एंडुरिल इंडस्ट्रीज के फाउंडर और प्रतिबंधित फर्मों के नौ सीनियर एग्जीक्यूटिव्स को अब चीन में एंट्री तक नहीं मिलेगी.
इस पूरी कार्रवाई के पीछे बीजिंग का तर्क बिल्कुल स्पष्ट है. चीन ताइवान को अपना अभिन्न अंग मानता है और यह मुद्दा उसकी संप्रभुता की रूह है. चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने दो टूक शब्दों में कहा कि ताइवान का मुद्दा चीन-अमेरिका रिश्तों के बीच एक ऐसी ‘रेड लाइन’ है, जिसे किसी भी हाल में पार नहीं किया जाना चाहिए. चीन ने अमेरिका को चेतावनी देते हुए कहा है कि वह ताइवान की आजादी की मांग करने वाली ‘अलगाववादी ताकतों’ को गलत संकेत देना बंद करे. बीजिंग ने साफ किया है कि अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा के लिए वह किसी भी हद तक जाने को तैयार है. उनका कहना है कि ताइवान के मामले में अगर अमेरिका की तरफ से उकसावे की कार्रवाई जारी रही, तो चीन इसका और भी कड़ा और ठोस जवाब देगा.
अब सवाल उठता है कि आखिर अमेरिका ने ऐसा क्या कर दिया जिससे ड्रैगन इतना भड़क गया? दरअसल, अमेरिका के डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने ताइवान को अब तक के सबसे बड़े हथियार पैकेज में से एक को मंजूरी दी है. यह सौदा करीब 11.1 अरब डॉलर का है, जो एक रिकॉर्ड रकम है. इस पैकेज में कोई छोटी-मोटी बंदूकें नहीं, बल्कि जंग का रुख पलटने वाले हथियार शामिल हैं. इसमें अत्याधुनिक मिसाइलें, भारी तोपें, HIMARS रॉकेट लॉन्चर और खतरनाक ड्रोन शामिल हैं. चीन को डर है कि इन हथियारों से ताइवान की सैन्य ताकत बढ़ेगी, जो सीधे तौर पर चीन की सुरक्षा के लिए चुनौती है. हालांकि, ताइवान को हथियारों की यह प्रस्तावित बिक्री अभी अमेरिकी कांग्रेस की मंजूरी के अधीन है, लेकिन इस प्रस्ताव ने ही दोनों देशों के रिश्तों में कड़वाहट घोल दी है.
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