
काबुल। अफगानिस्तान (Afghanistan) में लड़कियों, महिलाओं और मानवाधिकारों (human rights) के लिए अमेरिका (America) की विशेष प्रतिनिधि (Special Representative) रीना अमीरी (Reena Amiri) ने यहां के हालात को ‘बड़ी त्रासदी’ करार देते हुए इस्लामिक देशों (Islamic countries), खासकर सऊदी अरब से, उनके लिए आवाज उठाने की अपील की है। सऊदी गजट अखबार के हवाले से बताया गया कि उन्होंने कहा, महिलाओं के अधिकारों और मानवाधिकारों का सम्मान किया जाना चाहिए। यहां मीडिया में काम कर रही 80 फीसदी महिलाओं का काम छिन चुका है। देश की 1.8 करोड़ महिलाएं चिकित्सा, शिक्षा और सामाजिक अधिकारों से वंचित हैं।
अमीरी ने कहा कि महिलाओं और लड़कियों को भी शिक्षा पाने और काम करने का अधिकार है। उन्होंने इस्लामिक अमीर से दोहा समझौते को पूरा कराने की अपील की। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार मामलों के अवर महासचिव और आपातकालीन राहत समन्वयक मार्टिन ग्रिफिथ ने कहा था, अफगानिस्तान में महिलाओं और लड़कियों की स्थिति खराब हो रही है। उन्होंने तालिबान से लड़कियों के स्कूल खोलने का अनुरोध करते हुए कहा कि महिलाओं के अधिकार छीनने से स्थिति चिंताजनक है।
एक साल से लड़कियों के लिए स्कूल बंद हैं। एक छात्रा शबाना ने कहा कि भारत के एक राष्ट्रपति ने कहा था, अगर मैं मर भी जाऊं तो लड़कियों के स्कूल बंद मत करना, क्योंकि पूरी पीढ़ी से शिक्षा का एक दिन छिन जाएगा। एक अन्य छात्रा परवाना ने कहा, मैं उनसे स्कूल खोलने के लिए कहती हूं। क्योंकि यह हमारा अधिकार है।
लौट आया है अवैध हिरासत और प्रताड़ना का दौर
इससे पहले एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा था कि महिलाओं और लड़कियों से उनके अधिकार छीन लिए गए हैं और उनका भविष्य अंधकारमय है। एमनेस्टी की दक्षिण एशिया क्षेत्र की निदेशक यामिनी मिश्रा ने कहा, अवैध हिरासत, प्रताड़ना, गायब कर दिया जाने और बेबात हत्या कर दिए जाने का दौर लौट आया है। महिलाओं और लड़कियों से अधिकार छीन लिए गए हैं और उनका भविष्य अंधकारमय है। वह शिक्षा पाने और सार्वजनिक जीवन में भाग लेने से वंचित हैं।
अब तक किसी ने नहीं उठाया ठोस कदम
अफगानिस्तान के हालात की निंदा करते हुए महिला अधिकार कार्यकर्ता नूर उज्बेक ने कहा, स्कूलों के दरवाजे एक साल से बंद हैं। अधिकारियों और किसी भी अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने खराब होते हालात को देखकर भी सुधार के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। तालिबान के दावों के विपरीत 23 मार्च को छठी से ऊपर पढ़ने वाली लड़कियों को स्कूल जाने से रोक दिया गया है। इसके एक महीने बाद महिलाओं के लिए ड्रेस कोड लागू कर दिया गया। उनके कहीं जाने, शिक्षा, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध हैं। महिला स्वास्थ्य कर्मियों की कमी के कारण उन तक सामान्य चिकित्सा सेवाओं की पहुंच भी नहीं है। देश में चल रहे क्लीनिकों में से 90 फीसदी विदेशी पैसे से चलते हैं। अब वे पैसा लगाने से हिचक रहे हैं, क्योंकि उन्हें अपने धन के दुरुपयोग का डर है।
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