
नई दिल्ली। अमेरिकी टैरिफ (US Tariffs) से पश्चिम बंगाल (West Bengal) के निर्यात (Export) आधारित अर्थव्यवस्था (Economy) को बड़ा झटका लग सकता है। विशेषज्ञों (Experts) का कहना है कि राज्य के श्रम आधारित चमड़ा, इंजीनियरिंग और समुद्री क्षेत्रों को त्योहारी सीजन से पहले नुकसान होने की संभावना है।
रूसी तेल की खरीद के लिए भारतीय उत्पादों पर बढ़ा हुआ शुल्क बुधवार से लागू हो गया है। इससे भारत पर कुल 50 प्रतिशत अमेरिकी टैरिफ हो गया है। निर्यातकों ने कहा कि मौजूदा भू-राजनीतिक हालात और अमेरिकी टैरिफ की वजह से उनका शिपमेंट और यहां तक की उत्पादन भी फिलहाल ठप हो गया है।
भारत के सीफूड निर्यात में राज्य की 12 प्रतिशत हिस्सेदारी है। इसमें उत्तर और दक्षिण 24 परगना और पूर्व मेदिनीपुर जिले में उगाई जाने वाली झींगा किस्मों का प्रभुत्व है। भारतीय समुद्री खाद्य निर्यातक संघ (पूर्व) के अध्यक्ष राजर्षि बनर्जी ने कहा कि पश्चिम बंगाल से अमेरिका को होने वाले कुल 8,000 करोड़ रुपये के निर्यात में से राज्य से होने वाले कम से कम 5,000 से 6,000 करोड़ रुपये के समुद्री निर्यात पर सीधा असर पड़ रहा है। गुप्ता ने चेतावनी दी कि प्रसंस्करण इकाइयों में लगभग 7,000 से 10,000 नौकरियां और कृषि स्तर पर इससे भी अधिक नौकरियां खतरे में हैं।
उन्होंने कहा कि आंध्र प्रदेश जैसे राज्य गैर-अमेरिकी बाजारों में बंगाल के साथ प्रतिस्पर्धा करना शुरू कर देंगे। वर्तमान में, आंध्र प्रदेश स्थित निर्यातक अमेरिका पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रहे हैं और देश में उनकी उपस्थिति काफी अधिक है।
चमड़ा उद्योग को भी बढ़े हुए शुल्कों का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। अमेरिका इसका सबसे बड़ा खरीदार है। इंडियन लेदर प्रोडक्ट्स एसोसिएशन के वरिष्ठ उपाध्यक्ष मोहम्मद अजार ने कहा कि कोलकाता के पास बंटाला लेदर हब में ही पांच लाख लोग काम करते हैं। केवल भारत और ब्राजील में ही 50 प्रतिशत टैरिफ है, जबकि दक्षिण-पूर्व एशिया में यह दर काफी कम यानी 19 से 20 प्रतिशत है। इससे अमेरिका को होने वाले भारतीय निर्यात पर असर पड़ेगा।
भारत के चमड़ा निर्यात में पश्चिम बंगाल का योगदान लगभग आधा है। इसका मूल्य 5,000 से 6,000 करोड़ रुपये प्रतिवर्ष है, जिसमें से अमेरिका लगभग 20 प्रतिशत निर्यात करता है। देश के सबसे बड़े चमड़ा उत्पाद केंद्रों में से एक कोलकाता में 538 चमड़ा कारखाने, 230 फुटवियर इकाइयां और 436 चमड़ा उत्पाद इकाइयां हैं।
उद्योग के अधिकारियों ने चेतावनी दी है कि इसका असर यूरोपीय बाजारों पर भी पड़ सकता है, क्योंकि कोलकाता में निर्मित सामान को अमेरिका भेजे जाने से पहले अक्सर यूरोप से होकर गुजरना पड़ता है। उन्होंने कहा कि निर्यातक अमेरिकी बाजार में प्रवेश के लिए “मेड इन यूरोप” टैग प्राप्त करने के लिए यूरोप में आंशिक उत्पादन सहित वैकल्पिक उपाय तलाश रहे हैं।
फुटवियर श्रेणी पर सबसे ज्यादा असर पड़ने की आशंका है, क्योंकि वैश्विक चमड़ा निर्यात में इसकी हिस्सेदारी 40 प्रतिशत है। उद्योग के हितधारकों ने बताया कि अकेले वित्त वर्ष 2025 में, भारत से अमेरिका को चमड़े के फुटवियर का निर्यात लगभग 50 करोड़ डॉलर का था।
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