
देहरादून। उत्तराखंड (Uttarakhand) के उच्च हिमालयी क्षेत्रों (Higher Himalayan regions) में खतरे की नई घंटी बजने लगी है। पिथौरागढ़ की दारमा घाटी (Darma Valley of Pithoragarh) के ऊपर लगभग 700 मीटर लंबी और 600 मीटर चौड़ी ग्लेशियर झील के तेजी से फैलने ने वैज्ञानिकों को चौंका दिया है। इस झील, जिसे अर्णव झील कहा जा रहा है, का आकार 30 फीसदी तक बढ़ गया है। यह इलाका भारत-चीन सीमा के पास दावे गांव से शुरू होता है।
वैज्ञानिकों की रिपोर्ट के अनुसार, गंगोत्री की केदार ताल और चमोली की वसुधारा झील का आकार भी लगातार बढ़ रहा है। 2014 और 2023 के बीच लिए गए उपग्रह चित्रों के अध्ययन से यह चिंताजनक तथ्य सामने आया है।
गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के भू-विज्ञान विभाग के एचओडी डॉ. एम.पी.एस. बिष्ट ने इन झीलों का उपग्रह आंकड़ों से अध्ययन किया। उन्होंने बताया कि देशी-विदेशी सेटेलाइट चित्रों के विश्लेषण में झीलों के आकार में आए बड़े बदलाव साफ नज़र आए हैं।
विशेषज्ञों के मुताबिक, ये तीनों झीलें हिमनद के असंगठित मलबे यानी मोराइन डैम की वजह से बनी हैं। खतरा यह है कि यदि इनमें पानी का स्तर बर्फ़ पिघलने या अतिवृष्टि के कारण अचानक बढ़ा, तो ये झीलें टूट सकती हैं और नीचे के इलाकों के लिए भीषण तबाही का कारण बन सकती हैं।
डॉ. बिष्ट ने राज्य सरकार और अन्य वैज्ञानिक संस्थानों को आगाह किया है। उन्होंने कहा कि समय रहते इन झीलों का आकलन करना और सुरक्षा के उपाय अपनाना बेहद ज़रूरी है, वरना आने वाले समय में स्थिति खतरनाक हो सकती है।
वाडिया की रिसर्च में भी पुष्टि
गढ़वाल केंद्रीय विवि में भू-विज्ञान विभाग के डॉ.एमपीएस बिष्ट का कहना है कि वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान ने चमोली में वसुधारा झील और केदारताल का अध्ययन कर दोनों झीलों के आकार में वृद्धि की पुष्टि की। संस्था के वैज्ञानिकों ने हाल में 25 खतरनाक ग्लेशियल झीलें चिन्हित की थीं। हिमालयी क्षेत्रों में झीलों की निगरानी जरूरी है अन्यथा वर्ष 2013 की केदारनाथ आपदा जैसी त्रासदी देखनी पड़ सकती है।
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