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वाराणसी : लगातार बढ़ रही गंगा में डूबने की घटनाएं, बीएचयू के विशेषज्ञ ने बताया इसके पीछे का कारण

June 25, 2022

वाराणसी । वाराणसी (Varanasi) में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) के ड्रीम प्रोजेक्ट काशी विश्वनाथ कॉरिडोर (Kashi Vishwanath Corridor) का निर्माण होने के बाद से देश-विदेश के पर्यटकों (tourists) और श्रद्धालुओं का यहां रेला लगा हुआ है। रोजाना काशी आने वालों की संख्या में कई गुना की बढ़ोतरी हो गई है। लोग यहां आने के बाद विश्व प्रसिद्ध गंगा घाट भी जरूर जाते हैं और डुबकी का पुण्य भी लेते हैं। इस दौरान लगातार लोगों के डूबने की घटनाएं बढ़ रही हैं। विशेषज्ञों ने इसके पीछे के कारणों पर रिसर्च किया है। बताया है कि क्यों आखिर काशी के गंगा घाट खतरनाक हो रहे हैं।

विशेषज्ञों के अनुसार गंगा के अपस्ट्रीम से लेकर डाउनस्ट्रीम तक कई स्थानों पर गंगा के स्वाभाविक प्रवाह के साथ छेड़छाड़ हुई है। यह स्थिति घाटों के लिए लगातार खतरा पैदा कर रही है। यदि समय रहते इसे नहीं सुधारा गया तो भविष्य में घाटों को दरकने से कोई नहीं रोक सकता है। यह चेतावनी आईआईटी बीएचयू के पूर्व निदेशक प्रो. सिद्धनाथ उपाध्याय ने दी है।


प्रो. उपाध्याय ने कहा कि प्रयागराज से काशी तक गंगा सर्पाकार में बहती हैं। कई इलाकों में नदी की धारा में भारी मोड़ है। बनारस में गंगा प्रवेश करने के बाद विश्वसुंदरी पुल से टकराती हैं। इसका बहाव रामनगर किले से टकराता है। चूंकि किला के नीचे कंकड़ और मजबूत पत्थर हैं, इसलिए किले पर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ता है। किला से टकराकर बहाव आगे बढ़ने पर सामनेघाट पुल से टकराता है। यह टकराव कई प्रकार से घाटों को प्रभावित कर रहा है।

प्रो. एसएन उपाध्याय के अनुसार सामनेघाट पुल के पिलर से आगे गंगा की लहर सीधे घाटों की ओर तेज रफ्तार से बढ़ती है। यह अस्सी से लेकर केदारघाट तक प्रभाव डालती है और उसी रफ्तार में सीधे बहती निकलती हैं। इसी कारण गंगा में घाट किनारे के इलाकों में गहराई ज्यादा है। जबकि इससे काफी कम गहराई उस पार और बीच के चैनल में है।

उन्होंने बताया कि आमतौर पर नदी में बहाव सीधा होने का कारण गहराई बीच में अधिक रहती है। लेकिन बनारस में गहराई पक्के घाटों की ओर अधिक है। हर बार बाढ़ के बाद गहराई की माप में अंतर भी आता है। बाहर से आने वाले लोगों को गंगा किनारे की गहराई की जानकारी नहीं होती। इससे डूबने की घटनाएं लगातार हो रही हैं।

गंगा में निर्माण से बचना पड़ेगा : प्रो. एसएन उपाध्याय ने बताया नदी के बहाव की प्रकृति को बनाए रखने के लिए गंगा में किसी भी प्रकार के निर्माण से बचना चाहिए। लगातार गंगा पार रेत के टीले बनते जा रहे हैं। हर बाढ़ के बाद टीलों की ऊंचाई बढ़ रही है। उसका असर निश्चित ही पक्के घाटों पर छोड़ेगा। यदि बहुत आवश्यक निर्माण या कार्य हो तो बिना किसी सर्वे या विशेषज्ञ के सलाह लिए करने से बचना होगा। वरना अगले 50 वर्षों घाटों का नजारा बदल जाएगा।

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