
नई दिल्ली. नवरात्रि(Navratri), पूर्णिमा, अमावस्या और एकादशी हिंदू धर्म के सबसे प्रमुख व्रत हैं. इनमें सबसे बड़ा व्रत एकादशी का माना जाता है. चन्द्रमा की स्थिति के कारण व्यक्ति की मानसिक और शारीरिक (mental and physical) स्थिति पर अच्छा-बुरा असर होता है. ऐसी दशा में एकादशी व्रत से चन्द्रमा के हर खराब प्रभाव को रोका जा सकता है. यहां तक कि ग्रहों के असर को भी काफी हद तक कम किया जा सकता है, क्योंकि एकादशी व्रत का सीधा प्रभाव मन और शरीर दोनों पर पड़ता है. इसके अलावा एकादशी के व्रत से अशुभ संस्कारों (inauspicious rituals) को भी नष्ट किया जा सकता है. इस बार वरुथिनी एकादशी 26 अप्रैल को मनाई जा रही है.
वरुथिनी एकादशी इतनी महत्वपूर्ण क्यों?
वैसे तो हर एकादशी अपने आप में महत्वपूर्ण है. फिर भी हर एकादशी की अपने आप में कुछ अलग महिमा भी है. इस एकादशी के व्रत से व्यक्ति को सर्वदा समृद्धि और सौभाग्य(prosperity and good luck) की प्राप्ति होती है. इस दिन भगवान के मधुसूदन स्वरूप की उपासना की जाती है. रात्रि में जागरण करके उपासना करने से व्यक्ति के जीवन में मंगल ही मंगल होता है. इस दिन श्री वल्लभाचार्य का जन्म भी हुआ था. पुष्टिमार्गीय वैष्णवों (Pushtimargiya Vaishnavas) के लिए यह दिन बहुत महत्वपूर्ण है.
वरुथिनी एकादशी पर कैसे करें पूजा?
इस दिन उपवास रखना बहुत उत्तम होता है. अगर उपवास न रख पाएं तो कम से कम अन्न न खाएं. भगवान कृष्ण के मधुसूदन स्वरूप की उपासना करें. उन्हें फल और पंचामृत अर्पित करें. उनके समक्ष “मधुराष्टक” का पाठ करना सर्वोत्तम होगा. अगले दिन सुबह अन्न का दान करके व्रत का पारायण करें.
एकादशी पर स्तुति का पाठ करें
वरुथिनी एकादशी पर प्रेम, आनंद और मंगल के लिए मधुराष्टक का पाठ करें. कठिन से कठिन समस्या के निवारण के लिए गजेन्द्र मोक्ष का पाठ करें. संतान संबंधी समस्याओं के लिए गोपाल सहस्त्रनाम का पाठ करें. भक्ति और मुक्ति के लिए विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें. पापों के प्रायश्चित के लिए भगवद्गीता के 11वें अध्याय का पाठ करें.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. हम इसकी पुष्टि नहीं करते है.)
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