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अब केवल 45 दिन तक ही सुरक्षित रखे जाएंगे चुनाव प्रक्रिया से जुडे वीडियो-फोटो, EC ने क्यों घटाया समय?

June 20, 2025

नई दिल्‍ली । चुनाव आयोग (election Commission) ने मतदान प्रक्रिया से संबंधित वीडियो फुटेज(video footage) और तस्वीरों को संरक्षित (तस्वीरों को संरक्षित )करने की अवधि को संशोधित(Modify the period) करते हुए इसे घटाकर 45 दिन कर दिया है। यह निर्णय मतदान परिणामों की घोषणा के बाद लागू होगा, और यदि इस अवधि में कोई चुनाव याचिका दायर नहीं की जाती है, तो डेटा को नष्ट किया जा सकता है। आयोग ने इस बदलाव का कारण हाल के दिनों में इस सामग्री के “दुरुपयोग” को बताया है। यानी वीडियो फुटेज और तस्वीरों से संबंधित डाटा चुनाव परिणामों की घोषणा के 45 दिन बाद तक स्टोर करके रखा जाएगा और उसके बाद डिलीट किया जा सकता है।


चुनाव आयोग ने 30 मई को सभी राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों (सीईओ) को इस फैसले की सूचना दी। नई गाइडलाइंस के अनुसार, मतदान प्रक्रिया के विभिन्न चरणों जैसे नामांकन पूर्व अवधि, नामांकन चरण, प्रचार अवधि, मतदान (मतदान केंद्रों के अंदर और बाहर), और मतगणना से संबंधित फुटेज को अब केवल 45 दिनों तक संरक्षित किया जाएगा। यह अवधि चुनाव याचिका दायर करने की समयसीमा के अनुरूप रखी गई है। यदि कोई याचिका दायर होती है, तो संबंधित फुटेज को मामले के निपटारे तक सुरक्षित रखा जाएगा।

रिपोर्ट के मुताबिक, सभी राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों (CEOs) को भेजे गए निर्देशों में “हालिया दुरुपयोग” का हवाला दिया गया है। आयोग ने कहा कि चुनावी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी कानून द्वारा अनिवार्य नहीं है, बल्कि यह आंतरिक प्रबंधन का एक उपकरण मात्र है। आयोग ने लिखा, “हाल के समय में गैर-उम्मीदवारों द्वारा इन सामग्रियों के दुरुपयोग की घटनाएं सामने आई हैं, जहां सोशल मीडिया पर इन्हें तोड़-मरोड़कर, संदर्भ से हटाकर प्रसारित किया गया, जिससे गलत सूचनाएं और दुर्भावनापूर्ण नैरेटिव फैलाए गए। इसका कोई कानूनी परिणाम नहीं निकलता, इसलिए समीक्षा करना आवश्यक था।”

पहले एक साल तक सुरक्षित रहती थी रिकॉर्डिंग

यह नया निर्देश 6 सितंबर, 2024 को जारी हुए पुराने दिशा-निर्देशों से अलग है, जिनमें अलग-अलग चरणों की रिकॉर्डिंग को 3 महीने से लेकर 1 साल तक सुरक्षित रखने की बात कही गई थी। उदाहरण के लिए, नामांकन से पहले की रिकॉर्डिंग 3 महीने तक, और मतदान एवं मतगणना से जुड़ी रिकॉर्डिंग 6 महीने से लेकर 1 साल तक सुरक्षित रखने के निर्देश थे। अब आयोग ने इसे चुनाव याचिका दाखिल करने की अधिकतम 45 दिनों की कानूनी समय-सीमा से जोड़ दिया है। यदि इस अवधि में कोई याचिका दाखिल होती है, तो रिकॉर्डिंग तब तक सुरक्षित रखी जाएगी जब तक मामला अदालत में लंबित है। यह दिशा-निर्देश भविष्य में लागू होंगे।

चुनावी प्रक्रिया के विभिन्न चरणों की होती है रिकॉर्डिंग

मतदान केंद्रों के भीतर और बाहर की गतिविधियों, इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) की जांच, स्टोरेज, परिवहन और मतगणना के दौरान की गतिविधियों की वीडियोग्राफी होती है। मतदान के समय वेबकास्टिंग के जरिए निगरानी की जाती है, वहीं चुनाव प्रचार की रिकॉर्डिंग उम्मीदवारों के खर्च और आचार संहिता के उल्लंघन की निगरानी के लिए होती है।

दिसंबर 2024 में भी हुआ था एक बड़ा बदलाव

यह चुनावी सीसीटीवी फुटेज से जुड़ा आयोग का दूसरा बड़ा बदलाव है। दिसंबर 2024 में सरकार ने चुनाव संचालन नियमों के नियम 93(2)(a) में संशोधन करते हुए सार्वजनिक पहुंच को सीमित कर दिया था। पहले नियम कहता था कि “चुनाव से संबंधित सभी अन्य कागजात सार्वजनिक निरीक्षण के लिए खुले होंगे।” लेकिन संशोधन के बाद इसमें “इन नियमों में निर्दिष्ट सभी अन्य कागजात” जोड़ दिया गया, जिससे यह स्पष्ट कर दिया गया कि सीसीटीवी फुटेज चुनावी कागजात की श्रेणी में नहीं आता और इस पर आम जनता का अधिकार नहीं है। आयोग का तर्क था कि सीसीटीवी फुटेज को सार्वजनिक करना मतदाता की गोपनीयता का उल्लंघन हो सकता है और इसका दुरुपयोग आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए किया जा सकता है।

हाईकोर्ट के निर्देश के बाद हुआ था संशोधन

दिसंबर 2024 में यह संशोधन उस वक्त किया गया था जब पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने अधिवक्ता महमूद प्राचा की याचिका पर हरियाणा विधानसभा चुनाव से जुड़ी वीडियो रिकॉर्डिंग और दस्तावेज जारी करने का निर्देश दिया था। चुनाव आयोग के इस फैसले ने पारदर्शिता को लेकर सवाल खड़े किए हैं। विपक्षी दलों और नागरिक संगठनों ने पहले भी मतदाता मतदान डेटा और फॉर्म 17सी की सार्वजनिक उपलब्धता की मांग की थी। मार्च 2025 में, सुप्रीम कोर्ट ने एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की याचिका पर सुनवाई की, जिसमें बूथ-वार मतदान डेटा को 48 घंटे के भीतर प्रकाशित करने की मांग की गई थी। आयोग ने इस मांग को यह कहकर खारिज कर दिया था कि वह केवल मतदान एजेंटों के साथ फॉर्म 17सी साझा करने के लिए कानूनी रूप से बाध्य है, न कि आम जनता या मीडिया के साथ।

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