
नई दिल्ली । विस्थापन(Displacement) एक ऐसा दर्द है, जिसका सामना दुनिया के हर इंसान (every person in the world)को कभी ना कभी, किसी ना किसी (some one)रूप में करना ही पड़ता है। लेकिन भारत में यह समस्या और बड़ी है। जब बात भारत के पूर्वी राज्यों की हो तो विस्थापन का दर्द और तीखा हो जाता है। विस्थापन के दर्द की कहानी बयां करता झारखंड का एक गांव है। यहां के घाटशिला की कालचिती पंचायत के रामचंद्रपुर गांव में 28 सबर परिवार रहते हैं। आबादी महज 80 लोगों की है। जंगल के बीच बसे इस गांव के सभी पुरुष तमिलनाडु और केरल में किसी कंपनी में मजदूरी करते हैं। गांव में रह रहे एकमात्र पुरुष जुंआ सबर (40 वर्ष) की भी बुधवार की रात मौत हो गई। अब यह शायद जिले का ऐसा पहला गांव होगा, जहां अभी एक भी पुरुष नहीं है।
मजबूरी में ही सही, सबर की मौत के बाद महिलाओं ने जो उदाहरण पेश किया, वह चर्चा का विषय बना हुआ है। अर्थी बनाने से शव को दफनाने तक की जिम्मेदारी महिलाओं ने निभाई।
जुंआ की पहली पत्नी की मौत पहले ही हो चुकी है। उसका एक बेटा श्यामल सबर (17) तमिलनाडु गया हुआ है। दूसरी पत्नी गुलापी सबर को एक पुत्र 10 वर्ष का है, जो रिश्तेदार के यहां गया है। ऐसे में गुरुवार को जुंआ की बेटी और गांव की अन्य महिलाओं ने अपने हाथों ने अर्थी तैयार की। इसके बाद अंतिम यात्रा निकाली। इस यात्रा के दौरान राह की अन्य महिलाएं भी साथ होती गईं। सभी ने मिलकर शव को कंधा देकर श्मशान तक पहुंचाया। अंतिम यात्रा में पत्नी भी शामिल थीं। 14 साल की बेटी ने संतान होने का फर्ज निभाया और जुंआ सबर को गड्ढा खोदकर दफन संस्कार पूरा किया।
रामचंद्रपुर के सभी पुरुष दूसरे राज्य में करते हैं काम
विलुप्त हो रही सबर जनजाति के गांव रामचंद्रपुर में रोजी-रोजगार के लिए सभी पुरुष तमिलनाडु और केरल जैसे सुदूरवर्ती राज्यों में हैं। जहां से तत्काल पहुंच पाना संभव नहीं है। गांव में 28 सबर परिवार रहते हैं, यहां लगभग 80 से 85 लोग रहते हैं। यहां के 20 युवक और अधेड़ तमिलनाडु गये हैं। बाकी यहां महिला हैं या फिर छोटी बच्चियां।
©2025 Agnibaan , All Rights Reserved