
नागदा। लोगों को बेवजह ज्ञान देने की बजाए इसे खुद आत्मसात करें तो जीवन में अशांति दूर हो जाएगी और शांति से जीवन जीने की कला आ जाएगी, क्योंकि जीवन में शांति मिलना बहुत कठिन है। यह बात महावीर भवन में विराजित गुरुदेव प्रकाशमुनिजी ने गुरुवार को धर्मसभा में कही। उन्होंने कहा महापुरूषों का जीवनकाल अपने लिए नहीं होता है वे तो मानव मात्र के कल्याण के लिए अपना संपूर्ण जीवन का त्याग कर देते है। क्योंकि धर्ममय जीना अलग हैं और धर्म करना अलग। जीवन के समभाव आवश्यक है धर्म हमें जीवन जीने की कला सीखाता है। यहीं कला हमें मोक्ष का मार्ग दिखाती है। हर चीज का उपयोग लिमिट में अच्छा लगता है। इससे बाहर बुराईयों को जन्म देता है।
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