
इंदौर, राजेश ज्वेल। कहते हैं कि इंदौर अपने खान-पान और मेहमाननवाजी के लिए देश और दुनिया में मशहूर है। जब भी कोई बाहरी व्यक्ति इस शहर में कदम रखता है तो सराफा, छप्पन दुकान जैसी चाट-चौपाटी पर जाने के साथ-साथ पोहे-जलेबी का लुत्फ लेना नहीं भूलता। वहीं इंदौर की एक और खासियत शाम का अखबार अग्रिबाण भी है, जो अनवरत 47 सालों से इंदौरियों के दिल में धड़क रहा है और उसके रोजमर्रा के जीवन का हिस्सा बन गया है। वैसे तो 24 ही घंटे की चिल्लपों और खबरों की भेड़चाल है। बावजूद इसके कुछ तो बात है कि अग्रिबाण की हस्ती इतने वर्षों बाद भी ना सिर्फ कायम है, बल्कि विश्वसनीयता और खरी-खरी का जादू पाठकों के सिर चढ़कर बोलता है।
किसी भी तरह से उनकी मोहब्बत, अपनापन और लगाव में कोई कमी नहीं आई है। अग्रिबाण का पूरा परिवार भी अपने अनगिनत प्रशंसकों की कसोटी पर खरा उतरने की जद्दोजहद में जुटा रहता है। इस नाचीज को ही अग्रिबाण से जुड़े 26 साल से अधिक हो गए और पाठकों का भरपूर आशीर्वाद, सहयोग मिलता रहा है। हम भी अपने जज्बे और जुनून पर कायम हैं। गलाकाट प्रतिस्पर्धा के बावजूद अग्रिबाण की खबरें बोलती है, जो कि तमाम ठियों से लेकर सरकार के सबसे बड़े ठिये वल्लभ भवन तक गूंजती है।
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