
नई दिल्ली। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के 2012 से उपलब्ध रिकॉर्ड के अनुसार, उत्तर भारत ने बीते 14 दिनों में पिछले 14 वर्षों की सबसे भारी बारिश (Heaviest Rain) का सामना किया है। 22 अगस्त से 4 सितंबर के बीच, इस क्षेत्र में सामान्य से लगभग तीन गुना अधिक 205.3 मिमी बारिश दर्ज की गई, जो सामान्य 73.1 मिमी के मुकाबले कहीं अधिक है। इस तीव्र बारिश ने पूरे क्षेत्र में मौसमी कहर बरपाया, जिसमें जम्मू-कश्मीर (Jammu and Kashmir) के वैष्णो देवी मार्ग पर बादल फटने, पंजाब में दशकों की सबसे भीषण बाढ़, दिल्ली में यमुना नदी का तीसरा सबसे ऊंचा जलस्तर और हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) व उत्तराखंड (Uttarakhand) में बड़े पैमाने पर भूस्खलन शामिल हैं।
मॉनसून का 35% कोटा दो हफ्तों में पूरा
आईएमडी के अनुसार, इन 14 दिनों में उत्तर भारत में हुई 205.3 मिमी बारिश पूरे चार महीने के मॉनसून सीजन के सामान्य कोटे का 35% है। इस तीव्र बारिश ने उत्तर भारत को 37 साल में सबसे गीला मॉनसून दर्ज करने की राह पर ला दिया है। 1 जून से शुरू हुए मॉनसून सीजन में अब तक इस क्षेत्र में 691.7 मिमी बारिश हो चुकी है, जो सामान्य से 37% अधिक है। यदि सितंबर के अंत तक सामान्य बारिश भी होती है, तो कुल बारिश 750 मिमी को पार कर सकती है। इस स्थिति में 1988 के बाद (813.5 मिमी) यह उत्तर भारत का सबसे अधिक वर्षा वाला मॉनसून होगा और पिछले 50 वर्षों में दूसरा स्थान हासिल करेगा। 1994 में 737 मिमी बारिश दर्ज की गई थी।
क्या है इस असाधारण बारिश का कारण?
आईएमडी के प्रमुख मृत्युंजय महापात्रा ने बताया कि इस अवधि में दो मौसमी प्रणालियों का दुर्लभ संयोजन देखा गया। उन्होंने कहा, “पश्चिमी विक्षोभ, जो भूमध्य सागर के पास से नम हवाएं लाता है, और पूर्व से आने वाली मॉनसूनी हवाओं का लगातार दो बार संयोजन हुआ। पहला संयोजन 23 से 27 अगस्त तक रहा, और दूसरा 29 अगस्त से शुरू होकर शुक्रवार तक चलेगा।” इस तरह का संयोजन पश्चिमी हिमालयी राज्यों में भारी बारिश और बादल फटने की घटनाओं को जन्म देता है, जैसा कि जून 2013 में केदारनाथ बाढ़ में देखा गया था। जुलाई-अगस्त के चरम मॉनसून काल में इस तरह के संयोजन असामान्य हैं, और लगातार दो बार होना अत्यंत दुर्लभ है।
क्षेत्रवार प्रभाव समझिए
पिछले दो हफ्तों में उत्तर भारत के लगभग सभी उप-क्षेत्रों में अत्यधिक बारिश दर्ज की गई, सिवाय पूर्वी उत्तर प्रदेश के। पंजाब सबसे अधिक प्रभावित हुआ, जहां पहले हफ्ते में 388% और दूसरे हफ्ते में 454% अतिरिक्त बारिश हुई। 3 सितंबर को समाप्त हुए हफ्ते में हरियाणा, दिल्ली और चंडीगढ़ में 325% अधिक बारिश, हिमाचल प्रदेश में 314%, पश्चिमी राजस्थान में 285%, जम्मू-कश्मीर में 240% और उत्तराखंड में 190% अधिक बारिश दर्ज की गई।
प्राकृतिक आपदाओं का कहर
इस तीव्र बारिश ने उत्तर भारत में बड़े स्तर पर तबाही मचाई। जम्मू-कश्मीर में वैष्णो देवी मार्ग पर बादल फटने से तीर्थयात्रियों को भारी परेशानी हुई। पंजाब में दशकों की सबसे भीषण बाढ़ ने कई इलाकों को जलमग्न कर दिया। दिल्ली में यमुना नदी का जलस्तर तीसरे सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंचा, जिससे निचले इलाकों में बाढ़ का खतरा बढ़ गया। हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में भूस्खलन ने सड़कों और संपत्तियों को भारी नुकसान पहुंचाया।
महापात्रा के अनुसार, पश्चिमी विक्षोभ और मॉनसूनी हवाओं का यह संयोजन शुक्रवार तक जारी रह सकता है, जिससे कुछ क्षेत्रों में और बारिश की संभावना है। मौसम विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि इस तरह की असामान्य मौसमी घटनाएं जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को दर्शाती हैं, और भविष्य में ऐसी घटनाओं की आवृत्ति बढ़ सकती है। उत्तर भारत अब इस मॉनसून सीजन के शेष समय में सामान्य बारिश की उम्मीद कर रहा है, लेकिन मौजूदा आंकड़े इसे ऐतिहासिक रूप से यादगार मॉनसून बनाने के लिए पर्याप्त हैं।
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