
नई दिल्ली । जनजातीय मामलों(Tribal Affairs) के मंत्रालय(Ministry) ने महापंजीयक और जनगणना आयुक्त(Census Commissioner) को पत्र लिखकर आग्रह किया है कि आगामी जनगणना में विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों(Tribal Groups) (PVTGs) की अलग से गणना की जाए। जनजातीय मामलों के मंत्रालय में संयुक्त सचिव अजीत कुमार श्रीवास्तव ने 17 जुलाई को लिखे पत्र में कहा कि प्रधानमंत्री जनजातीय आदिवासी न्याय महाअभियान (पीएम-जनमन) जैसी लक्षित कल्याणकारी योजनाओं के निर्माण और कार्यान्वयन के लिए ऐसा करना आवश्यक है।
देश में 700 से अधिक जनजातीय समुदायों में से 75 जनजातीय समुदाय ऐसे हैं जिन्हें पीवीटीजी के रूप में पहचाना गया है, जो 18 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में रहते हैं। पत्र में कहा गया है कि पीवीटीजी हमारी आबादी के सबसे हाशिए पर और सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े कमजोर वर्ग में से हैं। चिट्ठी में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि सटीक गणना निश्चित रूप से पीवीटीजी के लिए लक्षित योजनाओं के निर्माण और कार्यान्वयन में बहुत सहायक होगी।
मंत्रालय के बीच बैठक का प्रस्ताव
मंत्रालय ने कहा कि 2011 की जनगणना के दौरान अनुसूचित जनजातियों के आंकड़े एकत्र किए गए थे, लेकिन पीवीटीजी के लिए अलग से आंकड़े एकत्र नहीं किए गए थे, और आगामी गणना में इसे शामिल करने का आह्वान किया गया। पत्र में पीवीटीजी परिवारों और व्यक्तियों की संख्या और उनकी विशिष्ट जनसांख्यिकीय, सांस्कृतिक और सामाजिक-आर्थिक विशेषताओं को दर्शाने के लिए उपयुक्त व्यवस्था का अनुरोध किया गया है, और इस प्रक्रिया पर चर्चा के लिए जनगणना अधिकारियों और मंत्रालय के बीच एक बैठक का प्रस्ताव रखा गया है।
जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए पीएम-जनमन योजना
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 15 नवंबर, 2023 को शुरू की गई पीएम-जनमन योजना, 75 पीवीटीजी के जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए एक योजना है। यह कार्यक्रम आवास, सुरक्षित पेयजल, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और पोषण जैसी बुनियादी सुविधाओं के साथ-साथ बेहतर सड़क और दूरसंचार संपर्क, अभी भी अविद्युतीकृत घरों में बिजली और आजीविका के अवसर प्रदान करने पर केंद्रित है। इन ज़रूरतों को तीन साल के भीतर पूरा करने का लक्ष्य है।
ये समुदाय उच्च स्वास्थ्य बोझ के तले दबा
यह योजना नौ केंद्रीय मंत्रालयों द्वारा संयुक्त रूप से किए जा रहे 11 विशिष्ट हस्तक्षेपों के माध्यम से कार्यान्वित की जा रही है। पीवीटीजी को गहरी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। ओडिशा में 13 पीवीटीजी की एक सहकर्मी-समीक्षित समीक्षा, जिसमें 2000 और 2023 के बीच प्रकाशित अध्ययनों का विश्लेषण किया गया था, में पाया गया कि ये समुदाय उच्च स्वास्थ्य बोझ, कम साक्षरता, खराब मातृ एवं शिशु परिणामों और बुनियादी सेवाओं तक अपर्याप्त पहुँच से ग्रस्त हैं।
दूरस्थ, दुर्गम क्षेत्रों में रहते हैं PVTGs
समाजशास्त्रीय शोध इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि पीवीटीजी अक्सर दूरस्थ, दुर्गम क्षेत्रों में रहते हैं, निर्वाह अर्थव्यवस्था पर निर्भर रहते हैं, स्थिर या घटती आबादी का सामना करते हैं और उनकी साक्षरता दर बेहद कम होती है, ये सभी कारक उनके हाशिए पर होने को पुष्ट करते हैं। 1960 के दशक के आरंभ में धेबर आयोग ने पहली बार पीवीटीजी (जिन्हें तब ‘आदिम जनजातीय समूह’ कहा जाता था) को पूर्व-कृषि अर्थव्यवस्था, स्थिर आबादी और कम साक्षरता के कारण अनुसूचित जनजातियों में विशेष रूप से वंचित के रूप में पहचाना था। इस वर्गीकरण में अब 75 समूह शामिल हैं।
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