
नई दिल्ली । रॉकेट फोर्स(Rocket Force) एक ऐसी सैन्य इकाई(military unit) होती है, जो लंबी दूरी तक मार करने वाले मिसाइल (Missile)और रॉकेट हथियारों(Rocket weapons) को संचालित, नियंत्रित और दागने का काम करती है। इसका मुख्य उद्देश्य रणनीतिक और सामरिक हमलों के लिए दुश्मन के ठिकानों या बुनियादी ढांचे को निशाना बनाना होता है। यह आधुनिक युद्ध की जरूरतों को पूरा करने के लिए बनाई जाती है, जहां लंबी दूरी की सटीक मारक क्षमता, तेज जवाबी कार्रवाई और रणनीतिक ठिकानों को निशाना बनाने की क्षमता महत्वपूर्ण हो जाती है। रॉकेट फोर्स का मकसद पारंपरिक और गैर-पारंपरिक (जैसे परमाणु) मिसाइलों को युद्ध के मैदान में प्रभावी ढंग से इस्तेमाल करना होता है। यह सेना, वायुसेना और नौसेना के साथ मिलकर काम करती है, ताकि दुश्मन के कमांड सेंटर, हवाई अड्डों, संचार तंत्र और अन्य महत्वपूर्ण ठिकानों पर सटीक हमले किए जा सकें। आधुनिक युद्ध में मिसाइलों की भूमिका बढ़ने के कारण रॉकेट फोर्स को ‘गेम-चेंजर’ माना जाता है।
भारत में रॉकेट फोर्स: क्या है स्थिति?
भारत के पास अभी तक औपचारिक रूप से कोई स्वतंत्र रॉकेट फोर्स नहीं है, लेकिन इस दिशा में काम तेजी से चल रहा है। भारत की मिसाइल क्षमताएं वर्तमान में कोर ऑफ आर्टिलरी, सामरिक बल कमांड (SFC), और अन्य सैन्य इकाइयों के तहत संचालित होती हैं। भारत के पास अग्नि-V (5,000 किमी रेंज की इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल), ब्रह्मोस (सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल), प्रलय (150-500 किमी रेंज की बैलिस्टिक मिसाइल), और निर्भय जैसी एडवांस मिसाइलें हैं। ये मिसाइलें पाकिस्तान और चीन जैसे पड़ोसियों की चुनौतियों से निपटने में सक्षम हैं।
हाल के वर्षों में, खासकर 2020 में गलवान घाटी में चीन के साथ तनाव और पाकिस्तान के साथ लगातार सीमा पर होने वाली गतिविधियों के बाद, भारत ने रॉकेट फोर्स के गठन पर गंभीरता से विचार शुरू किया। भारतीय सेना और रक्षा मंत्रालय ने प्रलय मिसाइल की 250 यूनिट्स के लिए 7,500 करोड़ रुपये से अधिक की मंजूरी दी थी, जो रॉकेट फोर्स की नींव रखने की दिशा में एक बड़ा कदम माना गया। इसके अलावा, 1,500 किमी रेंज वाली मध्यम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलों को शामिल करने की योजना भी बन रही है।
भारत की प्रस्तावित रॉकेट फोर्स का मुख्य उद्देश्य चीन और पाकिस्तान की सीमाओं पर तैनाती होगी। खासकर, 3,400 किमी लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर चीन के खिलाफ सटीक और तेज हमले की क्षमता विकसित करना इसका लक्ष्य है। प्रलय मिसाइल, जो 10 मीटर की सटीकता के साथ लक्ष्य भेद सकती है, और ब्रह्मोस जैसी मिसाइलें इस फोर्स की रीढ़ होंगी।
बिपिन रावत का योगदान और विजन
भारत के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) दिवंगत जनरल बिपिन रावत रॉकेट फोर्स के गठन के सबसे बड़े समर्थक थे। 2020 और 2021 में उन्होंने कई मौकों पर भारत की सैन्य रणनीति को आधुनिक बनाने और रॉकेट फोर्स के गठन की जरूरत पर जोर दिया। जनरल रावत ने चीन की बढ़ती आक्रामकता और उसके सहयोगी पाकिस्तान की गतिविधियों को देखते हुए भारत की हवाई और मिसाइल शक्ति को मजबूत करने की वकालत की थी।
रावत का मानना था कि भविष्य के युद्धों में मिसाइलों की भूमिका निर्णायक होगी। उन्होंने ‘सभ्यताओं के टकराव’ के सिद्धांत का जिक्र करते हुए कहा था कि चीन न केवल भारत के साथ, बल्कि ईरान, तुर्की और अफगानिस्तान जैसे देशों के साथ भी अपने प्रभाव को बढ़ा रहा है। ऐसे में भारत को एक ऐसी सैन्य इकाई चाहिए, जो लंबी दूरी पर सटीक हमले कर सके और दुश्मन की रणनीतिक संपत्तियों को नष्ट कर सके।
जनरल रावत ने रॉकेट फोर्स को न केवल एक सैन्य इकाई के रूप में देखा, बल्कि इसे सेना, वायुसेना और नौसेना के बीच बेहतर समन्वय के लिए भी जरूरी माना। उनकी मृत्यु के बाद भी उनका यह विजन भारतीय सेना के लिए प्रेरणा बना हुआ है। तत्कालीन नौसेना प्रमुख एडमिरल आर हरि कुमार ने भी 2023 में इस बात की पुष्टि की थी कि रावत की योजना के तहत रॉकेट फोर्स पर काम चल रहा है।
पाकिस्तान की रॉकेट फोर्स: ऑपरेशन सिंदूर का खौफ
पाकिस्तान ने हाल ही में, 14 अगस्त को अपने 78वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर ‘आर्मी रॉकेट फोर्स कमांड’ (ARFC) के गठन की घोषणा की। यह घोषणा ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत द्वारा दिखाई गई सैन्य ताकत के जवाब में आई, जिसमें भारत के S-400 एयर डिफेंस सिस्टम और ब्रह्मोस मिसाइलों ने पाकिस्तान के रणनीतिक ठिकानों को भारी नुकसान पहुंचाया था।
ऑपरेशन सिंदूर मई में हुआ। यह एक चार दिवसीय सैन्य अभियान था, जिसमें भारत ने पाकिस्तान की मिसाइलों को हवा में ही नष्ट कर दिया और ब्रह्मोस के सटीक हमलों से उसके एयरबेस को तबाह कर दिया। इस अभियान ने पाकिस्तान को अपनी मिसाइल और रक्षा क्षमताओं की कमजोरी का एहसास कराया। इसके जवाब में, पाकिस्तान ने चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी रॉकेट फोर्स (PLARF) की तर्ज पर अपनी रॉकेट फोर्स बनाने का फैसला किया।
पाकिस्तान की रॉकेट फोर्स में मध्यम और लंबी दूरी की मिसाइलें, जैसे शाहीन-III (2,750 किमी रेंज) और अबाबील (2,200 किमी रेंज), शामिल होंगी। इसके अलावा, वह चीन से जे-35 स्टील्थ फाइटर जेट, केजे-500 चेतावनी विमान और एचक्यू-19 एंटी-बैलिस्टिक मिसाइल सिस्टम खरीद रहा है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान की मिसाइल क्षमता भारत की अग्नि-V और ब्रह्मोस जैसी मिसाइलों के मुकाबले कमजोर है।
भारत बनाम पाकिस्तान: रॉकेट फोर्स की तुलना
भारत और पाकिस्तान की रॉकेट फोर्स की तुलना करने पर भारत कई मायनों में आगे है। भारत की मिसाइलें, जैसे ब्रह्मोस, अपनी सटीकता और सुपरसोनिक गति के लिए जानी जाती हैं, जबकि प्रलय मिसाइल हवा में रास्ता बदलने की क्षमता रखती है, जो इसे इंटरसेप्टर मिसाइलों से बचाने में सक्षम बनाती है। दूसरी ओर, पाकिस्तान की मिसाइलें, जैसे शाहीन-III, रेंज और सटीकता में भारत से पीछे हैं।
इसके अलावा, भारत का S-400 एयर डिफेंस सिस्टम और स्वदेशी आकाश और प्राण जैसे मिसाइल डिफेंस सिस्टम उसकी रक्षा क्षमता को और मजबूत करते हैं। पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति भी उसकी राह में बड़ी बाधा है। विशेषज्ञों का कहना है कि भले ही पाकिस्तान रॉकेट फोर्स बना ले, लेकिन भारत की तकनीकी और औद्योगिक श्रेष्ठता के सामने वह ज्यादा प्रभावी नहीं होगी।
पाकिस्तान की रॉकेट फोर्स की घोषणा ने दक्षिण एशिया में हथियारों की होड़ को और तेज कर दिया है। भारत की रॉकेट फोर्स भले ही अभी निर्माण के शुरुआती चरण में है, लेकिन यह न केवल मिसाइलों की संख्या, बल्कि उनकी सटीकता, गति और रक्षा-निरोधक क्षमता पर ध्यान दे रही है। भारत का लक्ष्य है कि उसकी रॉकेट फोर्स न केवल चीन और पाकिस्तान की चुनौतियों से निपटे, बल्कि क्षेत्रीय शक्ति संतुलन को भी बनाए रखे। चीन की रॉकेट फोर्स 2016 में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के सेकेंड आर्टिलरी कोर का नया रूप है, यह भारत के लिए एक चुनौती है। भारत इस दिशा में तेजी से कदम उठा रहा है, ताकि वह न केवल क्षेत्रीय, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी अपनी सैन्य शक्ति को स्थापित कर सके।
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