
नई दिल्ली. कैश कांड (Cash scandal) में जांच का सामना कर रहे इलाहाबाद हाई कोर्ट (allahabad high court) के जस्टिस यशवंत वर्मा (Justice Yashwant Verma) को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से बड़ा झटका लगा है. सुप्रीम कोर्ट के तत्काल चीफ जस्टिस की ओर से उन्हें पद से हटाने की सिफारिश और इन हाउस कमेटी की जांच को जस्टिस वर्मा ने चुनौती दी थी, जिसे सर्वोच्च अदालत ने खारिज कर दिया है. जस्टिस वर्मा की मुश्किलें अब और बढ़ने वाली हैं, क्योंकि संसद के दोनों सदनों में पहले ही उनके खिलाफ महाभियोग का नोटिस दिया जा चुका है.
सुप्रीम कोर्ट से याचिका खारिज
सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को जस्टिस वर्मा की याचिका को खारिज करते हुए जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने कहा कि जांच समिति ने तय प्रक्रियाओं का पालन किया है और जस्टिस वर्मा की याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता. बेंच ने कहा कि जांच समिति का गठन और उसकी जांच अवैध नहीं है.
सर्वोच्च अदालत ने कहा कि तत्कालीन सीजेआई और उनकी इन-हाउस कमेटी की जांच को आपने उस समय चुनौती नहीं दी. बेंच ने कहा कि तत्कालीन सीजेआई संजीव खन्ना ने इस मामले में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और पीएम नरेंद्र मोदी को जो लेटर भेजा था, वह असंवैधानिक नहीं था. इस फैसले के साथ ही अब जस्टिस वर्मा के पास पद छोड़ने या महाभियोग का सामना करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचा है.
खुद से इस्तीफा देने में फायदा
अगर जस्टिस वर्मा खुद अपने पद से इस्तीफा देते हैं तो वह महाभियोग का सामना करने से बच जाएंगे. साथ ही उन्होंने रिटायर्ड जज के तौर पर पेंशन भी मिलेगी. लेकिन जस्टिस वर्मा को अगर महाभियोग के जरिए पद से हटाया जाता है तो उन्हें पेंशन और अन्य लाभ नहीं मिल सकेंगे. हालांकि जस्टिस वर्मा ने पहले ही इस्तीफा देने से साफ इनकार कर दिया है और उन्होंने खुद पर लगे आरोपों को निराधार बताया है.
कानूनी जानकारों के मुताबिक अगर हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के किसी जज पर भ्रष्टाचार या कदाचार के आरोप हैं तो वह आंतरिक जांच रिपोर्ट के साथ किसी भी सदन में सांसदों के सामने अपना पक्ष रखते हुए इस्तीफे का ऐलान कर सकते हैं. ऐसी स्थिति में उनके मौखिक बयान को ही उनका इस्तीफा माना जाएगा.
संसद में महाभियोग का नोटिस
कैश कांड में घिरे जस्टिस वर्मा के खिलाफ संसद के दोनों सदनों में महाभियोग का नोटिस दिया गया है. मौजूदा मानसून सत्र के दौरान लोकसभा के 152 सांसदों ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ लाए गए महाभियोग प्रस्ताव पर साइन किए हैं. वहीं राज्यसभा में 54 सांसदों ने जज के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को सपोर्ट किया. हालांकि अब तक किसी भी सदन में इस नोटिस को स्वीकार नहीं किया गया है.
राज्यसभा में बीती 21 जुलाई को तत्कालीन सभापति जगदीप धनखड़ ने कहा था कि उन्हें जस्टिस वर्मा को हटाने की मांग वाला एक प्रस्ताव मिला है, जिस पर 50 से ज्यादा सांसदों के हस्ताक्षर हैं. जगदीप धनखड़ ने कहा कि हाई कोर्ट जज को पद से हटाने की प्रक्रिया शुरू करने के लिए जरूरी संख्या से ज्यादा सांसदों का नोटिस मिला है.
हालांकि इसी दिन शाम को जगदीप धनखड़ ने अचानक स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया था. अब नए उपराष्ट्रपति के चुनाव के लिए 9 सितंबर की तारीख तय की गई है. अब देखना यह है कि सबसे पहले संसद के किस सदन में जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग के नोटिस को स्वीकार किया जाता है.
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