नई दिल्ली । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) इस महीने के आखिर में चीन (China) के दौरे पर जा रहे हैं। वह वहां शंघाई सहयोग संगठन (SCO) सम्मेलन में हिस्सा लेंगे। गलवान घाटी में में दोनों देशों के सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प के बाद पीएम मोदी की यह पहली चीन यात्रा है, जो इस बात की तस्दीक करता है कि दोनों देश अब गिले-शिकवे भुलाकर फिर से नजदीक आ रहे हैं। इससे पहले विदेश मंत्री एस जयशंकर भी चीन दौरे पर गए थे।
भारत और चीन के रिश्तों में आई नरमी पिछले कुछ महीनों की कूटनीतिक कोशिशों का नतीजा है, जबकि मई में ऑपरेशन सिंदूर के दौरान यह बात सामने आई थी कि चीन ने पाकिस्तान की कैसे मदद की थी। पाकिस्तान ने तब चीनी लड़ाकू विमानों और मिसाइलों का इस्तेमाल भारत के खिलाफ किया था लेकिन पिछले महीने जब भारत और चीन ने रिश्तों में फिर से नरमी के संकेत दिए तो पाकिस्तान बेचैन हो उठा।
पाकिस्तान की धार्मिक कूटनीति क्या?
पाकिस्तान ने अब बीजिंग और इस्लामाबाद के बीच सदाबहार गठबंधन को नया मोड़ देना शुरू कर दिया है और इसके लिए पड़ोसी पाकिस्तान ने धार्मिक कूटनीति का सहारा लिया है। जुलाई के आखिरी हफ्ते में पाकिस्तान का एक उच्च स्तरीय धार्मिक प्रतिनिधिमंडल चीन के शिनजियांग प्रांत का दौरा किया है। इस प्रतिनिधिमंडल में धार्मिक नेताओं के अलावा मीडिया के लोग भी शामिल थे। इस प्रतिनिधिमंडल ने चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव और शंघाई सहयोग संगठन के तहत शिनजियांग के विकास को देखा और पाकिस्तान के विकास पर चर्चा की।
भारत के लिए गंभीर रणनीतिक चिंता का विषय
पर्यवेक्षकों का मानना है कि पाकिस्तान के साथ चीन की ये नई धार्मिक कूटनीति, भारत के क्षेत्रीय प्रभाव को चुनौती देने के उद्देश्य से जुड़ी हुई हैं। उनके मुताबिक, पाकिस्तान के धार्मिक नेतृत्व तक चीन की पहुँच सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं है, बल्कि एक गहरे गठबंधन का संकेत है जो भारत के लिए गंभीर रणनीतिक चिंताएँ पैदा कर सकता है।
दक्षिण एशिया में धर्म को औजार बनाना चाह रहा पाकिस्तान
पर्यवेक्षकों के मुताबिक, पाकिस्तान की ये धार्मिक कूटनीति दक्षिण एशिया में धर्म को एक औजार के रूप में इस्तेमाल करने की सोची समझी चाल है, जबकि वही पाकिस्तान उइगर मुसलमानों के खिलाफ मानवाधिकार हनन पर चुप्पी साधे रहता है। साफ है कि पाकिस्तान और चीन के बीच यह धार्मिक गठजोड़ भारत को खासकर कश्मीर को बदनाम करने के लिए उठाया गया कदम है।
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