
नई दिल्ली । बिहार(Bihar) में 2016 में हुई शराबंदी की चर्चा पूरे देश में हुई। झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन (JMM Supremo Shibu Soren)ने आज से 43 वर्ष पूर्व शराबबंदी(Alcoholism) के लिए आंदोलन(movement) चलाकर इसे अपने क्षेत्र में लागू कराया। शराब पीते हुए पकड़े जाने पर शिबू सोरेन एक मन (40) लाठी की सजा देते थे। टुंडी और आसपास के इलाके में शिबू सोरेन का ऐसा खौफ था कि शराबी उनका नाम सुनते ही शराब छोड़कर भागने लगते थे।
1972-73 में शिबू सोरेन ने जिले के टुंडी प्रखंड के सुदूर पलमा और बाद में पोखरिया आश्रम से भूमिगत आंदोलन शुरू किया था। इस दौरान उन्होंने पाया कि आदिवासियों के पिछड़े होने की सबसे बड़ी वजह शराबखोरी है। उन्होंने इसके खिलाफ ही सबसे पहले आंदोलन शुरू किया। आदिवासी बहुल इलाके में उन्होंने आंदोलन की शुरुआत ही शराब बंदी से की थी। उन्होंने आदिवासी समाज में शराब के खिलाफ जागरुकता अभियान चलाया।
शराब पीने व पिलानेवालों को वह शारीरिक दंड भी देते थे। जनअदालत में उनकी ऐसी पिटाई की जाती थी कि उसके बाद कोई आदमी शराब पीने का साहस नहीं कर पाता था। स्थिति ऐसी बन गई थी कि शराब के नशे में धुत किसी आदमी से जैसे ही कोई कहता था कि गुरुजी आ रहे हैं, उसका नशा उतर जाता था।
पलमा से शुरू किया गया शिबू का यह आंदोलन धीरे-धीरे संताल परगना तक फैल गया। शराब बंदी के साथ महाजनों के खिलाफ शिबू की कार्रवाई ने झारखंड में आंदोलन का रूप ले लिया था।
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