
नई दिल्ली: क्या आप भी वो महिला हैं, जिन्होंने कभी पब्लिक प्लेस में अपने बच्चों को ब्रेस्ट फीडिंग कराई है. आपने भी कई सारी नजरों को खुद को घूरते देखा होगा. कभी बच्चे के मुंह को दुपट्टे से कवर किया होगा, तो कभी घंटों आपने वॉशरूम में बैठ कर बच्चे को दूध पिलाया होगा, तो कभी आप बच्चे को दूध पिला रही होंगी और आपके पति आपको दुनिया की नजर से छुपाने के लिए घंटों आपके सामने खड़ रहे होंगे. इस तरह की चीजें रोजाना के समय में होना आम सा है. बाजारों से लेकर मेट्रो, बस, ऑफिस, मॉल से लेकर कई जगह पर महिलाओं को इन चीजों का सामना करता पड़ता है. वहीं, कई बार बच्चे के रोने पर महिलाएं पब्लिक प्लेस में ब्रेस्ट फीडिंग कराने से कतराती भी हैं और उन्हें समझ नहीं आता है कि वो कहां जा कर बच्चों को दूध पिलाएं.
अब इसी के चलते सरकार ने पब्लिक बिल्डिंग में ब्रेस्ट फीडिंग के लिए रूम बनाने की सलाह दी है. सरकार की इस सलाह को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों पर इस पर एक्ट करने के लिए कहा है. वहीं, कोर्ट ने यह भी कहा है कि पब्लिक प्लेस में या वर्किंग प्लेस में ब्रेस्ट फीडिंग कराने को ऐसे नहीं देखना चाहिए कि जैसे यह कोई गुनाह हो, इसको “Stigmatised” यानी कलंकित नहीं किया जाना चाहिए.
कोर्ट के इस कथन के पीछे का मतलब हुआ कि इसको इस तरह से नहीं लेना चाहिए कि यह कोई गलत बात है, बल्कि कोर्ट ने इस बात की वकालत की के यह बच्चों का अधिकार है और इसको नॉर्मल किया जाना चाहिए. साथ ही महिलाओं की प्राइवेसी को लेकर पब्लिक बिल्डिंग में अलग से कमरे बनाए जाने चाहिए.
कोर्ट ने कहा, इस देश के नागरिकों को भारत के संविधान के अनुच्छेद 51 ए (ई) में निहित “महिलाओं की गरिमा के लिए अपमानजनक प्रथाओं को त्यागने” के उनके कर्तव्य की याद दिलाना गलत नहीं होगा. राज्य को नर्सिंग मदर के अधिकारों का ख्याल रखते हुए उनके लिए अलग से कमरे, क्रेच जैसी सुविधाएं उपलब्ध करानी चाहिए. साथ ही नागरिकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पब्लिक प्लेस और वर्क प्लेस पर फीडिंग कराने को गलत बनाया जाए.
जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और पी.बी. वराले की बेंच ने यह फैसला उस याचिका पर सुनाया जिसमें सार्वजनिक स्थानों और इमारतों में फीडिंग और चाइल्ड केयर रूम के निर्माण के निर्देश देने की मांग की गई थी.
ब्रेस्ट फीडिंग का समर्थन करते हुए कोर्ट ने महिलाओं के बच्चे को ब्रेस्ट फीड कराने के अधिकार को लेकर कहा, ब्रेस्ट फीडिंग बच्चे की जिंदगी उसके स्वास्थ्य और उसके विकास के लिए जरूरी है. साथ ही ब्रेस्ट फीडिंग को लेकर कोर्ट ने कहा, यह महिलाओं में एक रिप्रोडक्टिव प्रोसेस है और उनका इंटर्नल अंग है, जिसकी मदद से वो बच्चे को दूध पिलाती है. साथ ही यह प्रोसेस मां और बच्चे दोनों के स्वास्थ्य और कल्याण के लिए जरूरी है.
जैसे बच्चे को ब्रेस्ट फीड कराने का अधिकार मां के साथ अटूट रूप से जुड़ा हुआ है, इसलिए उसे भी अपने बच्चे को ब्रेस्ट फीड कराने का अधिकार है. इसका मतलब यह है कि राज्य का दायित्व है कि वह मां को अपने बच्चों को ब्रेस्ट फीड कराने की सुविधा दे, साथ ही ऐसी सुविधाएं और माहौल सुनिश्चित किया जाए कि वो कहीं पर भी अपने बच्चे को दूध पिला सके.
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