
नई दिल्ली. उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव (assembly elections) की सियासी बिसात बिछाई जाने लगी है. असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) की ‘ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन’ (AIMIM) की कोशिश बसपा (BSP) के साथ मिलकर किस्मत आजमाने की है, लेकिन मायावती (Mayawati) इस पर रजामंद नहीं हैं. मायावती पहले ही कह चुकी हैं कि उनकी पार्टी यूपी में 2027 का चुनाव अकेले लड़ेगी.
सपा प्रमुख अखिलेश यादव पहले ही ओवैसी से दूरी बनाए हुए हैं, तो वहीं यूपी की मुस्लिम आधार वाली ‘पीस पार्टी’ और ‘उलेमा काउंसिल’ ने 2027 में AIMIM के साथ चुनाव लड़ने की ख्वाहिश जाहिर की है. यूपी में तीसरा फ्रंट बनाने की कोशिश हो रही है, लेकिन असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी का स्टैंड अलग है.
AIMIM के यूपी अध्यक्ष शौकत अली, पीस पार्टी के साथ गठबंधन के बजाय उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. मोहम्मद अय्यूब को अपनी पार्टी में शामिल होने का ऑफर दे रहे हैं. इसी तरह वह उलेमा काउंसिल से भी AIMIM में विलय करने की बात कह रहे हैं. ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर क्या वजह है कि ओवैसी की पार्टी पीस पार्टी और उलेमा काउंसिल के साथ गठबंधन करने से परहेज कर रही है?
दिल्ली के बटला हाउस एनकाउंटर के बाद राष्ट्रीय उलेमा काउंसिल सियासी वजूद में आई थी. इस पार्टी की बुनियाद मौलाना आमिर रशादी ने रखी है, जो आजमगढ़ के रहने वाले हैं. राष्ट्रीय उलेमा काउंसिल के महासचिव तलहा आमिर रशादी ने बातचीत में कहा कि हम लंबे समय से कोशिश कर रहे हैं कि असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM से हमारा गठबंधन हो. इसके लिए हमारी पार्टी 2010 से ओवैसी को पत्र लिख रही है, लेकिन वह कोई जवाब नहीं दे रहे हैं.
तलहा आमिर रशादी कहते हैं कि AIMIM इस समय सियासी सुर्खियों में है. ऐसे में हमारी कोशिश है कि सभी मुस्लिम आधार वाले दल एक साथ मिलकर चुनाव लड़ें ताकि वोटों में बिखराव न हो सके. इसके लिए हम प्रयास कर रहे हैं, लेकिन ओवैसी की AIMIM अलग ही मोड में है. 2022 में भी उनका रवैया यही था. वे डॉ. अय्यूब की पीस पार्टी को विलय का ऑफर दे रहे हैं, ऐसे में कोई (विलय के लिए) कैसे तैयार होगा?
AIMIM से गठबंधन को बेताब पीस पार्टी
डॉ. अय्यूब अंसारी ने साल 2008 में पीस पार्टी का गठन किया था. इसके बाद 2012 में यूपी में पीस पार्टी के चार विधायक जीते थे, लेकिन उसके बाद से पार्टी का खाता नहीं खुला। पीस पार्टी की कोशिश 2027 में ओवैसी की पार्टी के साथ गठबंधन करने की है। पीस पार्टी का सियासी आधार मुस्लिम मतदाताओं के बीच है.
डॉ. अय्यूब अंसारी की इच्छा ओवैसी की पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की है ताकि मुस्लिम वोटों के जरिए अन्य राजनीतिक दलों को चुनौती दी जा सके. उनका तर्क है कि 2012 में उनकी पार्टी के चार विधायक जीत चुके हैं, जबकि AIMIM का यूपी में अभी तक खाता तक नहीं खुला है. उनका मानना है कि अगर ये तीनों दल मिल जाएं, तो अन्य कुछ दल भी साथ आ सकते हैं.
ओवैसी की पार्टी गठबंधन के लिए तैयार नहीं?
असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM, यूपी के आगामी 2027 के चुनाव में उलेमा काउंसिल और पीस पार्टी के साथ गठबंधन के लिए तैयार नहीं दिख रही है. AIMIM के प्रदेश अध्यक्ष शौकत अली ने कहा, ‘हम चाहते हैं कि राष्ट्रीय उलेमा काउंसिल हो या पीस पार्टी, सब एक मंच पर आएं और ओवैसी की कयादत (नेतृत्व) को मजबूत करें. इसके लिए हमने अय्यूब अंसारी को AIMIM में शामिल होने और अपनी पार्टी का विलय करने का ऑफर दिया है. इसमें गलत क्या है?’
शौकत अली कहते हैं कि उलेमा काउंसिल और पीस पार्टी के पास न संगठन बचा है और न ही कोई सियासी जनाधार. दोनों ही पार्टियां प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह चल रही हैं. हमने एक जनसभा के जरिए अय्यूब अंसारी को साथ आने का न्योता दिया है. 2022 में AIMIM ने बिना शर्त उन्हें समर्थन दिया था, अब उन्हें वक्त की नजाकत को देखते हुए एक प्लेटफॉर्म पर आने के बारे में सोचना चाहिए ताकि मुस्लिम नेतृत्व को मजबूत किया जा सके.
मुस्लिम पार्टियों के बीच क्यों नहीं हो पा रही दोस्ती?
उत्तर प्रदेश में करीब 20 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं. सूबे की कुल 143 सीटों पर मुस्लिम मतदाता अपना असर रखते हैं. इनमें से 70 सीटों पर मुस्लिम आबादी 20 से 30 फीसदी के बीच है, जबकि 73 सीटों पर यह 30 फीसदी से ज्यादा है.
सूबे की करीब तीन दर्जन ऐसी सीटें हैं, जहां मुस्लिम उम्मीदवार अपने दम पर जीत दर्ज कर सकते हैं। कुल मिलाकर करीब 107 सीटें ऐसी हैं जहां अल्पसंख्यक मतदाता चुनावी नतीजों को खासा प्रभावित करते हैं.,अगर मुस्लिम आधार वाली ये तीनों पार्टियां मिलकर मैदान में उतरती हैं, तो कांग्रेस, सपा और बसपा जैसे दलों का सियासी खेल बिगड़ सकता है.
हालांकि, ये पार्टियां एक प्लेटफॉर्म पर आने की बातें तो करती हैं, लेकिन साथ नजर नहीं आतीं. पीस पार्टी और उलेमा काउंसिल का आरोप है कि ओवैसी अपने अलावा किसी दूसरी मुस्लिम लीडरशिप को उभरने नहीं देना चाहते। उनका कहना है कि जैसे सपा, बसपा और कांग्रेस मुस्लिम नेतृत्व नहीं चाहते, वैसे ही ओवैसी का भी रवैया है.
वहीं, AIMIM का तर्क है कि इन पार्टियों के पास न लीडरशिप है और न संगठन. इसलिए गठबंधन के बजाय वे AIMIM में शामिल होकर काम करें. AIMIM की यह शर्त पीस पार्टी और उलेमा काउंसिल को किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं है. यही कारण है कि यूपी में इन दलों के बीच गठबंधन का तालमेल नहीं बन पा रहा है.
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