वाशिंगटन। फिलिस्तीन को लेकर ब्रिटिश (Palestine-British) के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर (keir starmer) ने एक अहम ऐलान किया है। उन्होंने कहा कि अगर इजरायल ने गाजा में युद्धविराम की दिशा में कदम नहीं उठाया तो ब्रिटेन सितंबर में संयुक्त राष्ट्र महासभा में फलस्तीन को राष्ट्र के रूप में मान्यता दे देगा। स्टार्मर ने 10 डाउनिंग स्ट्रीट से अपने संबोधन में हमास से भी कहा कि वह 7 अक्टूबर को पकड़े गए सभी इजरायली बंधकों को तुरंत रिहा करे। साथ ही युद्धविराम पर तत्काल सहमत हो और हथियार त्यागने के लिए प्रतिबद्ध हो। ब्रिटिश पीएम ने यह भी कहा कि हमास को यह भी स्वीकार करना होगा कि वह गाजा की शासन व्यवस्था में कोई भूमिका नहीं निभाएगा। इस पर नेतन्याहू ने कड़ा ऐतराज जताया है। वहीं, बड़ा सवाल यह भी है कि क्या ब्रिटेन और अमेरिका के रिश्ते सामान्य रह जाएंगे?
इस बात के मायने क्या
वैसे तो ब्रिटेन द्वारा फिलिस्तीन को पहचान देना एक प्रतीकात्मक कदम है। लेकिन इससे इजरायली सरकार को मिर्ची लगेगी। बता दें इजरायल हमेशा यह तर्क देता है कि फिलिस्तीन को पहचान मिलने से हमास को प्रोत्साहन मिलेगा। इससे यहां पर आतंकवाद की समस्या और बढ़ेगी। वहीं, ब्रिटेन द्वारा मान्यता मिलने से फिलिस्तीन को मजबूती मिलेगी। दोनों देशों के बीच राजनयिक रिश्ते पनपेंगे। इसका मतलब यह होगा कि दोनों देशों में एक-दूसरे के यहां राजदूतों की नियुक्ति भी कर सकेंगी।
अब तक इतने देशों की मान्यता
गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र सभा के 193 देशों में से 140 पहले ही फिलिस्तनी को मान्यता दे चुके हैं। इनमें चीन, भारत और रूस शामिल है। इसके अलावा साइप्रस, आयरलैंड, नॉर्वे, स्पेन और स्वीडन जैसे यूरोपीय देशों ने भी ऐसा किया है। पिछले साल आयरलैंड, नॉर्वे और स्पेन ने भी फिलिस्तीन को मान्यता दी है। सबसे हाल में फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने भी इस दिशा में फैसला लिया है। इस तरह फ्रांस फिलिस्तीन राष्ट्र को मान्यता देने की घोषणा करने वाला पहला जी-7 देश और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का पहला स्थायी सदस्य बन गया।
यह समय क्यों है खास
ब्रिटेन के इस फैसले की टाइमिंग खासी अहम है। इसकी एक वजह तो घरेलू दबाव है। इसके अलावा फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के ऐलान को भी एक अहम फैक्टर माना जा रहा है। खास बात है कि फ्रांस और ब्रिटेन दोनों की डेडलाइन भी सेम है। दोनों ने इसके लिए सितंबर का महीना तय किया है। इसके अलावा डोनाल्ड ट्रंप के रुख ने भी इसमें अहम भूमिका निभाई है। ट्रंप ने कहा था कि मैं इस मुद्दे पर कुछ नहीं करने वाला हूं, लेकिन अगर वो कुछ करते हैं तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। हालांकि फ्रांस ने जब फिलिस्तीन को लेकर ऐलान किया था तो अमेरिकी सचिव मार्को रुबियो ने इसे खारिज कर दिया था। तब उन्होंने कहा था कि यह फैसला हमास के पक्ष में जाएगा।
अमेरिका और ब्रिटेन के संबंधों पर होगा असर?
एक अहम सवाल यह भी है कि क्या स्टार्मर के इस ऐलान से ब्रिटेन और अमेरिका के संबंधों पर असर होगा। बता दें कि दोनों देशों के संबंध हमेशा ही अच्छे रहे हैं। ब्रिटेन ने विदेश नीति के मामले में शायद ही कभी अमेरिका से इतर कोई फैसला लिया हो। हाल ही में दोनों नेताओं की स्कॉटलैंड में मुलाकात हुई थी। तब ट्रंप ने कहा था कि इस मुलाकात के दौरान दोनों नेताओं ने ब्रिटेन के प्लान को कोई चर्चा नहीं की थी।
7 अक्टूबर से इजरायल पर ब्रिटेन का स्टैंड क्या
जब सात अक्टूबर 2023 को गाजा युद्ध की शुरुआत हुई थी तो स्टार्मर विपक्ष में थे। तब उन्होंने इजरायल के आत्मरक्षा के अधिकार की वकालत की थी। हालांकि वक्त बीतने के साथ इजरायल को लेकर उनका रवैया कड़ा हुआ है। स्टार्मर सरकार ने अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय द्वारा इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के खिलाफ जारी गिरफ्तारी वारंटों पर पूर्व प्रशासन की चुनौती खारिज कर दी है। इसके अलावा इजरायल को कुछ हथियारों की बिक्री भी निलंबित कर दी है। पिछले महीने, ब्रिटेन ने दो इजरायली मंत्रियों इटामर बेन-ग्वीर और बेजलेल स्मोट्रिच, पर प्रतिबंध भी लगा दिए। इन पर फिलिस्तीन के खिलाफ बार-बार हिंसा भड़काने का आरोप लगाया।
यह देश भी ले सकते हैं फैसला
ब्रिटेन के फैसले के बाद अनुमान है कि जर्मनी, ऑस्ट्रिया, कनाडा और जापान पर भी ऐसा करने का दबाव बढ़ेगा। जर्मनी ने कहा है कि उसकी योजना तत्काल फिलिस्तीन को मान्यता देने की नहीं है। वह चाहता है कि इजरायल और फिलिस्तीन दो देशों के तौर पर शांतिपूर्ण ढंग से रहें। वहीं, इटली के विदेश मंत्री का कहना है कि फिलिस्तीन को मान्यता देने से समस्या खत्म तो नहीं हो जाएगी? ऐसा तभी होगा जब इजरायल भी फिलिस्तीन को मान्यता दे।
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