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25 जनवरी को क्यों मनाया जाता है नेशनल वोटर्स डे, लोकतंत्र की दिशा में उठा था बड़ा कदम

January 25, 2025

नई दिल्ली: देश 1947 में आजाद हुआ तो उसके सामने करने के लिए ढेर सारे काम थे और बहुत सी चुनौतियां थीं. सबसे बड़ी चुनौती थी देश की लोकतांत्रिक नींव का निर्माण करना. दरअसल 26 जनवरी 1950 को देश में संविधान तो लागू हो गया, लेकिन लोकतंत्र बनने के लिए जरूरी थे आम चुनाव. पहले आम चुनाव लगभग 73 साल पहले 25 अक्टूबर 1951 से 21 फरवरी 1952 तक लगभग पांच माह चले थे. सात दशकों से अधिक समय में अब तक भारत ने 16 प्रधानमंत्रियों को देखा है जबकि मौजूदा लोकसभा 19वीं लोकसभा है.

हिंदुस्तान का पहला आम चुनाव कई चीजों के अलावा एक विश्वास का विषय था. एक नया नया आजाद हुआ मुल्क सार्वभौम मताधिकार के तहत सीधे तौर पर अपने हुक्मरानों को चुनने जा रहा था. इसने वो रास्ता अख्तियार नहीं किया जो पश्चिमी देशों ने किया था. वहां पहले कुछ शक्तिशाली तबकों को ही मतदान का अधिकार दिया गया था. लेकिन हिंदुस्तान में ऐसा नहीं हुआ. देश 1947 में आजाद हुआ और इसके दो सालों के बाद यहां एक चुनाव आयोग का गठन कर दिया गया. साल 1950 में इसी दिन (25 जनवरी) भारत का चुनाव आयोग (ECI) अस्तित्व में आया था.


1950 में 25 जनवरी को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत भारत के चुनाव आयोग (ECI) का गठन किया गया था. इसे राष्ट्रीय और राज्य दोनों स्तरों पर चुनावी प्रक्रियाओं का प्रबंधन और रेगुलेट करने का अधिकार दिया गया था. 2011 से, 25 जनवरी को हर साल राष्ट्रीय मतदाता दिवस के रूप में मनाया जाता है , जो ईसीआई की स्थापना का प्रतीक है. इस कार्यक्रम का उद्देश्य नागरिकों में चुनावी जागरूकता बढ़ाना और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में अधिक से अधिक भागीदारी को प्रोत्साहित करना है.

शुरुआत में इसमें केवल एक मुख्य चुनाव आयुक्त होता था, लेकिन अब इसमें एक मुख्य चुनाव आयुक्त और दो चुनाव आयुक्त शामिल हैं. इनकी नियुक्तियां भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती हैं, जिनका कार्यकाल छह साल या 65 साल की उम्र तक होता है. भारत निर्वाचन आयोग की जिम्मेदारियां चुनाव कराने से कहीं आगे तक फैली हुई हैं, क्योंकि यह निष्पक्ष चुनावी प्रथाओं को सुनिश्चित करने के लिए आदर्श आचार संहिता को भी लागू करता है.

इतिहासकार रामचंद्र गुहा की किताब, ‘भारत: गांधी के बाद’ के मुताबिक मार्च 1950 में सुकुमार सेन को मुख्य चुनाव आयुक्त बनाया गया. इसके अगले ही महीने जनप्रतिनिधि कानून संसद में पारित कर दिया गया. इस कानून को पेश करते हुए संसद में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने ये उम्मीद जाहिर की थी कि साल 1951 के वसंत तक चुनाव करवा लिए जाएंगे. इस मामले में नेहरू की जल्दबाजी समझी जा सकती थी, लेकिन जिस व्यक्ति के जिम्मे चुनाव करवाने का काम था, उसके लिए यह मुश्किल काम था.

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