
मुंबई. महाराष्ट्र (Maharashtra) में शिवसेना शिंदे गुट (Shiv Sena Shinde faction) से राज्यसभा सांसद मिलिंद देवड़ा (Milind Deora) ने उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) पर तंज कसा है. देवड़ा ने एक्स पर एक पोस्ट करते हुए लिखा कि ‘देश के बेटों से लेकर भारत के पर्यटकों तक’ ठाकरे कितने गिर गए हैं. जब पहलगाम में गोलियां चल रही थीं, तब वे यूरोप में छुट्टियां मना रहे थे. साथ ही महाराष्ट्र दिवस पर वे बिना कुछ कहे गायब हो गए.
महाराष्ट्र के 65वें स्थापना दिवस के अवसर पर शिवसेना प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का अपने परिवार के साथ विदेश यात्रा पर जाने का निर्णय राजनीतिक विवाद का विषय बन गया है. सत्तारूढ़ महायुति ने भी मुंबई में आयोजित भव्य समारोह में उनकी अनुपस्थिति पर सवाल उठाया था. जबकि राज्य के बाकी राजनीतिक दल संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन के शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए पूरी ताकत से जुटे और ठाकरे अनुपस्थित रहे.
उधर बीते दिनों महेश मांझरेकर के साथ एक पॉडकास्ट में राज ठाकरे ने एक बयान दिया था, उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र के अस्तित्व के सामने ये सब झगड़े छोटे नजर आते हैं. साथ में आना ये कोई कठिन बात नहीं है, लेकिन सवाल इच्छा की है. इसके बाद सियासी हलकों में ये सवाल उठने लगा कि क्या उद्धव और राज ठाकरे साथ आ रहे हैं?
राज ठाकरे के इस बयान पर उद्धव ठाकरे ने भी प्रतिक्रिया दी थी. उन्होंने कहा था कि छोटे-मोटे झगड़ों को खत्म करने के लिए तैयार हैं, लेकिन उन्होंने राज ठाकरे के सामने शर्त भी रखी है. उन्होंने कहा कि जो भी महाराष्ट्र के हित के खिलाफ होगा उसे घर बुलाकर खाना नहीं खिलाएंगे. एक कार्यक्रम के दौरान उद्धव ठाकरे ने मराठी एकता और महाराष्ट्र के हित के लिए हाथ बढ़ाते हुए बड़ा बयान दिया था. उद्धव ने कहा था कि मराठी और महाराष्ट्र के लिए जो भी निरर्थक झगड़े हैं, मैं उन्हें खत्म करने को तैयार हूं.
मैं सभी मराठी लोगों से अपील करता हूं कि वे एक हों और महाराष्ट्र के हित में साथ आएं. हमने लोकसभा चुनाव के वक्त कहा था कि महाराष्ट्र के उद्योग और व्यवसाय गुजरात जा रहे हैं, उस वक्त अगर आपने (राज ठाकरे) विरोध किया होता, तो केंद्र में आज जो सरकार बैठी है, वह नहीं बैठी होती और केंद्र में महाराष्ट्र का हित समझने वाली सरकार हमने स्थापित की होती. साथ ही राज्य में भी महाराष्ट्र के हित सोचने वाली सरकार बैठी होती. हमने कामगार कानून जैसे काले कानून उखाड़ फेंके होते. उन्होंने दो टूक कहा कि कभी समर्थन, कभी विरोध, कभी समझौता- यह नीति अब नहीं चलेगी.
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